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Biography Of Lord Shri Ram
भगवान श्रीराम की जीवनी

श्रीराम के जीवन का संक्षिप्त परिचय

नमस्कार दोस्तो श्री राम मंदिर अयोध्या चैनल में आपका स्वागत है।
दोस्तो जैसा कि हमने आपको अपने वीडियो मैं बताया था कि हम अपने दर्शकों के लिए राम और रामायण के बारे में रोचक तथ्य आपके सामने लेकर आएंगे। आज के वीडियो में हम आपके सामने भगवान राम का जीवन परिचय लेकर हाजिर है।
इससे पहले कि हम भगवान राम की जीवनी आपके सामने प्रस्तुत करें उससे पहले हमारे चैनल को लाइक सब्सक्राइब और फॉलो कर दीजिए, ताकि आपको हमारे चैनल से लेटेस्ट अपडेट हमेशा आपको मिलता रहे। तो आइए जानते है भगवान श्रीराम की जीवनी के बारे में जोकी भगवान विष्णु के 7 वें अवतार थे।
गौतम बुद्ध, परशुराम और भगवन कृष्ण जैसे बहुत प्रसिद्ध अवतारों में से एक राम के जीवन का वर्णन हमारे हिन्दू वेद पुराण और ग्रंथो में मिलता है। आज हम भगवान राम वंश वृक्ष और भगवान राम कितने वर्षों तक जीवित रहे के बारे में जानने जा रहे हैं।
हमारे हिन्दू धर्म में राम को सर्वोच्च भगवान के रूप में पूजा जाता है। एक युवराज के रूप में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने कई कस्ट और तकलीफो का सामना करते हुए भी अपना धर्म का पालन किया था।
हिंदू धर्म के महाकाव्य रामायण में राम भगवान की जानकारी दी गई है। उस महाकाव्य के रचेता महर्षि वाल्मीकि है। उन्होंने राम के जन्म से पहले ही लिख दिया था। उन्होंने अपने जीवन से समाज के कई बदलाव किये थे। राम ने नैतिका और दुविधाओं में कैसे जिया जाता है उसका प्रमाण दिया है।
ऐसा कहा जाता है की श्री राम का अवतार राक्षसों के विनाश के लिए हुआ था। उन्होंने असुर सम्राट लंकापति रावण को मारकर उसका राज्य उसके भाई विभीषण को दे दिया था। तो आइए बताते हैं भगवान विष्णु के श्री राम अवतार की कथा।

Hello friends, welcome to Shri Ram Mandir Ayodhya channel.
Friends, as we told you in our video that we will bring interesting facts about Ram and Ramayana for our viewers. In today's video, we are present in front of you with the life introduction of Lord Ram.
Before we present the biography of Lord Ram in front of you, like, subscribe and follow our channel, so that you will always get the latest updates from our channel. So let's know about the biography of Lord Shriram who was the 7th incarnation of Lord Vishnu.
One of the most famous incarnations like Gautama Buddha, Parashurama and Lord Krishna, Rama's life is described in our Hindu Vedas, Puranas and scriptures. Today we are going to know about Lord Ram's family tree and how many years Lord Ram lived.
In our Hindu religion Rama is worshiped as the Supreme God. Even after being born as a prince, he followed his dharma despite facing many hardships and hardships.
Lord Rama is mentioned in the epic Ramayana of Hinduism. The creator of that epic is Maharishi Valmiki. He had written before the birth of Rama. He had made many changes in the society through his life. Ram is the epitome of ethics and how to live in dilemmas.
It is said that the incarnation of Shri Ram took place for the destruction of demons. He killed the demon king Lankapati Ravana and gave his kingdom to his brother Vibhishana. So let's tell the story of Shri Ram Avatar of Lord Vishnu.

राम का जन्म कब हुआ - Age Of Lord Ram

Today we are telling you when Ram was born, What happened in which era, what evidence was telling and scientific and Vedic evidence is going through you.

सबसे पहले हम आपको वाल्मीकि रामायण द्वारा आपको बताएंगे कि उन्होंने क्या लिखा। राम की तिथि के बारे में उन्होंने लिखा कि चैत्र मास की नवमी तिथि में पुण्य वर्षी नछत्र में पांचों ग्रह आपने उच्चम स्थान में रहने पर तथा कर्क लगन में चंद्रमा के साथ बृहस्पति के स्थित होने पर राम का जन्म हुआ। इसके बाद वाल्मीकि जी फिर लिखते हैं जिसमें विष्णु जी देवताओं से कहते हैं कि देवताओं तथा ऋषियों को भय देने वाले उस क्रूर राक्षस का नाश कर के मैं ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का पालन करता हुआ मनुष्य लोक में निवास करूंगा। अर्थार्थी विष्णु जी ने स्वयं कह दिया राम ग्यारह हजार वर्षों तक पृथ्वी पर रहेंगे।

वैदिक धर्म अथवा सनातन धर्म कहता है राम का जन्म त्रेता युग के अंत में हुआ है। यह राम का जन्म युवा अवतार कहलाता है तो यह त्रेता युग के अंत में हुआ है। इसलिए त्रेतायुग का जो अंत का समय है ग्यारह हजार उतना समय राम रहे।

जैसे ही राम गए उसके बाद द्वापर युग शुरू हुआ। इसलिए त्रेता युग में जो ग्यारह हजार साल रहे राम वो मिलाया जाये।

द्वापर युग के साथ द्वापर युग का कुछ समय होता है आठ लाख चौंसठ चार साल और जब द्वापर युग खत्म हुआ तब कलयुग शुरू हुआ तो कलयुग से अब तक यथार्थ द्वापरयुग के अंत से अब तक इक्यावन सौ वर्ष बीत चुके हैं तो इन सब को जोडे तो कुल हुआ आठ लाख अस्सी हजार एक सौ वर्ष। वेदों पुराणों के ज्ञान अनुसार राम का जन्म आज से लगभग आठ लाख अस्सी हजार एक सौ वर्ष पहले हुआ है। यह बात सत्य है। इसी को हमें मानना चाहिए। हमारा वेद के अनुसार जो समय बताया जा रहा है यह बिल्कुल सही है।

वैज्ञानिक राम जन्म पर क्या कहते हैं। एक हुए हैं डॉक्टर पद्माकर विष्णु मराठी शोध करता है वो उन्होंने कहा कि एक दृष्टि से वैदिक रामजन्म समय संभव है। उनका कहना यह है कि वाल्मीकि रामायण में एक स्थल पर वर्णित है विंध्याचल तथा हिमालय की ऊंचाई सामान बताया है वाल्मीकि जी ने। डॉक्टर पद्माकर विष्णु जी ने कहा कि वर्तमान समय में विन्ध्याचल की ऊंचाई है। दो हजार चार सौ फिर और वर्तमान समय में हिमालय की भी ऊंचाई है उनतीस हजार उनतीस फीट तथा उनको यह भी ज्ञात हुआ कि विन्ध्याचल की ऊंचाई नहीं है।

जबकि वैज्ञानिकों की मान्यता अनुसार हिमालय की ऊंचाई हर सौ वर्ष में तीन फीट है। फिर उन्हें पता चला कि जो हिमालय की ऊंचाई वर्तमान समय में है और विन्ध्याचल की ऊंचाई, इनमें जब उन्होंने अंतर निकाला तो मिला उनको छब्बीस हजार पांच सौ बासठ फीट। अतर जब उन्होंने शोध किया तो पता चला की छब्बीस हजार पांच सौ बासठ फीट हिमालय को बढने में करीबन आठ लाख पचासी हजार चार सौ वर्ष लगे होंगे। अत: अब से करीब आठ लाख पचासी हजार चार सौ वर्ष पहले हिमालय की ऊंचाई और विंध्याचल की ऊंचाई सामान रही होगी जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है।

इस तरह डॉक्टर पद्माकर विष्णु कहते हैं कि इस दृष्टिकोण से यह संभव है परंतु उनका स्वयं यह मानना है कि अन्य किसी सत्र से राम के जन्म की पुष्टि नहीं कर सकते।

First of all we give you Valmiki Ramayana selected by you what he wrote. Regarding Ram's date, he wrote that on the ninth date of Chaitra month, Ram was born when all the five planets were in exalted position in the auspicious year Nachhatra and Jupiter was situated with Moon in Cancer lagna. After this, Valmiki ji writes again in which Vishnu ji tells the gods that after destroying that cruel demon who used to give fear to the gods and sages, I will reside in the human world following this earth for eleven thousand years. Artharthi Vishnu ji himself said that Ram will remain on earth for eleven thousand years.

Vedic religion or Sanatan Dharma says that Rama was born at the end of Treta Yuga. This Ram's birth is called youth incarnation, so it happened at the end of Treta Yuga. That's why, the time of the end of Tretayug, Ram remained for eleven thousand times.

As soon as Ram left, the Dwapar Yuga started. That's why Ram who lived for eleven thousand years in Treta Yug should be merged.

Along with Dwapar Yug, there is some time of Dwapar Yug, eight lakh sixty four years and when Dwapar Yug ended, then Kalyug started, then from Kalyug till now, from the end of Dwaparyug till now, fifty one hundred years have passed, so if we add all these Total is eight lakh eighty thousand one hundred years. According to the knowledge of Vedas and Puranas, Ram was born about eight lakh eighty thousand one hundred years ago. This is true. This is what we should believe. The time that is being told according to our Vedas is absolutely correct.

What do scientists say on the birth of Ram. One is Dr. Padmakar Vishnu, who researches Marathi, he said that from one point of view, Vedic Ram's birth time is possible. They say that the height of Vindhyachal and Himalayas is described at one place in Valmiki Ramayana. Dr. Padmakar Vishnu ji said that at present the height of Vindhyachal is. Two thousand four hundred again and at the present time the height of the Himalayas is also twenty nine thousand thirty nine feet and they also came to know that Vindhyachal has no height.

Whereas according to the belief of scientists, the height of the Himalayas is three feet every hundred years. Then they came to know that the height of the Himalayas at present and the height of Vindhyachal, when they found the difference between them, they found twenty-six thousand five hundred and sixty-two feet. Atar, when he researched, it came to know that it would have taken about eight lakh eighty-five thousand four hundred years for the Himalayas to grow twenty-six thousand five hundred and sixty-two feet. Therefore, about eight lakh eighty-five thousand four hundred years ago, the height of the Himalayas and Vindhyachal must have been the same, which is mentioned in Valmiki Ramayana.

In this way Dr. Padmakar Vishnu says that it is possible from this point of view but he himself believes that no one else can confirm the birth of Ram from any session.

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भगवान राम की शिक्षा - Education Of Lord Ram

भगवान राम के जन्म की बात करें तो यह हमारे भारत के अयोध्या राज्य में महान राजा दशरथ के दरबार में एक राजकुमार के रूप में हुआ था । श्री राम का जन्म राजा दशरथ की सबसे बड़ी पत्नी कौशल्या से हुआ था । भगवान राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था, ऐसा निवेदन वेद पुराणों में मिलता है । राम के तीन छोटे भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे । गुरु वशिष्ट के गुरुकुल में चारो भाईओ की शिक्षा हुई थी । उस गुरुकुल में उन्हें उपनिषद ,पुराण और वेदो की शिक्षा दी गयी थी । वह अभ्यास प्राप्त करते हुए वह सामाजिक और मानवीय गुणों के महान ज्ञाता बने थे ।

Talking about the birth of Lord Rama, it happened as a prince in the court of the great king Dasaratha in the Ayodhya kingdom of our India. Shri Ram was born to Kaushalya, the eldest wife of King Dasaratha. Lord Rama was born in Tretayuga, such request is found in Veda Puranas. Rama had three younger brothers Lakshmana, Bharata and Shatrughna. The four brothers were educated in the Gurukul of Guru Vashisht. In that Gurukul, he was taught Upanishads, Puranas and Vedas. While gaining that practice, he became a great knower of social and human qualities.


भगवान राम का वंश वृक्ष | पूर्वज या वंशज - Family Tree of Lord Ram | Ancestors or Descendants

जलप्रलय के बाद केवल वैवस्वत और कुछ ऋषियों के कुलों का संसार पर विस्तार हुआ। इला, इक्ष्वाकु, कुषाणम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषधा मनु के दस पुत्र थे। राम का जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ था। इस वंश में जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी शामिल थे। मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दंडक का जन्म हुआ। इस प्रकार इस वंश में हरिश्चंद्र रोहित, वृष, बहू और सगर का जन्म हुआ। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल साम्राज्य का शासक था, जिसकी राजधानी अयोध्या थी।

Only Vaivasvat and a few sages’ clans expanded on the world after the flood. Ila, Ikshvaku, Kushanam, Arishta, Dhrishta, Narishyanta, Karusha, Mahabali, Sharyati, and Prishadha were Manu’s ten sons. Rama was born into the Ikshvaku family. This clan also included Jainism’s Tirthankara Nimi. Vikukshi, Nimi, and Dandaka were born to Manu’s second son Ikshvaku. In this way, Harishchandra Rohit, Vrisha, Bahu, and Sagara were born into this lineage. Ikshvaku was the ruler of the ancient Kaushal kingdom, which had Ayodhya as its capital.

भगवान राम के वंश के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :


भगवान राम का सीता से विवाह – Marriage of Lord Ram with Sita

मिथिला नरेश महाराज जनक ने अपनी बेटी सीता का स्वयंवर रचा था। उसमे देश विदेश के कई राजा महाराजाओ ने हिस्सा लिया था। क्योकि जनक राजा ने उन्हें न्योता दिया था। गुरु विश्वामित्र भी उसे अपने शिष्य श्री राम और लखन को ले के उस स्वयंवर में पहुंचे थे। उसमे यह शर्त रखी गयी थी की जो भी भगवान् शिव के धनुष पर सबसे पहले प्रत्यंशचा चढ़ाएगा उसके साथ सीताजी विवाह संपन्न करेंगे। सभी राजाओ ने एक एक करके धनुष उठाने का प्रत्यन और सभी उसमे असफल रहे थे। तब गुरु विश्वामित्र ने आदेश किया की श्री राम वह धनुष उठाये और देखते ही देखते राम ने धनुष को उठाके उस पर प्रत्यंशचा चढ़ाया और धनुष टूट चूका था। और सीता माता ने श्री राम से विवाह किया था।

King Janak of Mithila had organized the Swayamvar of his daughter Sita. Many kings and emperors of the country and abroad took part in it. Because King Janak had invited him. Guru Vishwamitra also reached him in that Swayamvar taking his disciples Shri Ram and Lakhan. A condition was laid in it that Sitaji would marry whoever would be the first to offer Pratyansha to Lord Shiva's bow. All the kings tried to lift the bow one by one and all were unsuccessful in that. Then Guru Vishwamitra ordered Shri Ram to lift that bow and in no time, Ram lifted the bow and put the string on it and the bow was broken. And Sita Mata had married Shri Ram.


भगवान राम को मिला 14 वर्ष का वनवास – Lord Rama got 14 years of exile

पहले एक परंपरा थी की राजा का सबसे बड़े पुत्र को राज्य का कार्य काल और राज्य की भागदौड़ सौपी जाती थी। वैसे ही राम सबसे बड़े होने के कारन से श्री राम को अयोध्या का राज्य दिया जाने वाला था। और सुबह राज्याभिषेक होने वाला था। तब दशरथ राजा की दूसरी पत्नी अपने बेटे भरत को अयोध्या के राजा बनाना चाहती थी। उन्होंने एक समय पर राजा दसरथ की जान बचाई थी। तब राजा ने उन्हें वरदान मांगने को कहा था। लेकिन उस वक्त उन्होंने कुछ नहीं माँगा था।

अपनी दासी मंथरा के चढ़ाने के कारन उन्होंने राज्य को भरत को देने और राम को चौदह साल वनवास भेजने का वरदान माँगा था। राजा अपने वचनो में बंधे हुए थे। उसी लिए उन्हें यह करना ही पड़े ऐसी परिस्थि का निर्माण हुआ था। वही दूसरी और अपने माता पिता के आदेश को पालन करने के लिए भगवन राम ने भी उसका स्वीकार कर लिया था। राम ,सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए राज से निकल पड़े थे।

Earlier there was a tradition that the eldest son of the king was entrusted with the work of the state and the running of the state. Similarly, due to Ram being the eldest, Shri Ram was going to be given the kingdom of Ayodhya. And the coronation was about to happen in the morning. Then the second wife of King Dasaratha wanted to make her son Bharata the king of Ayodhya. He had once saved the life of King Dasaratha. Then the king asked him to ask for a boon. But at that time he did not ask for anything.

For sacrificing his maid Manthara, he asked for a boon to give the kingdom to Bharata and send Rama to exile for fourteen years. The king was bound by his words. That's why they had to do this, such a situation was created. On the other hand, to obey the orders of his parents, Lord Rama also accepted him. Ram, Sita and Laxman had left the kingdom for exile.


सीता का हरण – Abduction of Sita

सीता हरण की कथा अलग अलग रामायणों से |Sita Haran Story Valmiki Tulsi And Kamban Ramayan | Naarad Vani

सीता ने अपनी कुटिया के पास एक स्वर्ण मृग देखा। उन्होंने इस स्वर्ण मृग को लेने के लिए श्री राम को भेजा और रावण ने एक चाल चली क्योंकि वह मृग नहीं बल्कि रावण का मामा मारीच था। अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए राम चल पड़े और पिचा करते करते राम हिरण के पीछे बहुत दूर निकल गए। राम के काफी दूर निकलने के बाद, श्री राम को पता चला कि ये हिरण नहीं बल्की कोई मायावी है। तब भगवान राम ने बाण चला के हिरन का अर्थ है मारीच को मार दिया। मरते मरते हमें मायावी मारीच ने तेज आवाज में लक्ष्मण लक्ष्मण कह केर पुकारा जिसे की माता सीता को ऐसा लगा कि उनके पति भगवान राम किसी मुसिबत में है। जबकी ऐसा कुछ नहीं था, परंतु माता सीता ने अपने देवता लक्ष्मण को अपने भाई की मदद करने के लिए भेजा।

जाते जाते लक्ष्मण ने कुटिया के चारो तरफ एक रेखा खिच दी, जिसे कोई कुटिया के अंदर नहीं आ पाया। उसी रेखा को हम सब लक्ष्मण रेखा के नाम से जानते हैं। जैसे ही लक्ष्मण भगवान राम की मदद के लिए कुछ दूर गए तभी रावण आता है या माता सीता का अपहरण करके अपने हवाई जहाज से वाउ मार्ग के थ्रू साउथ दिशा की तरफ अपने देश ले गया, और उसी देश को हम आज श्रीलंका के नाम से जानते हैं।

Sita saw a golden deer near her hut. He sent Sri Rama to take this golden deer and Ravana played a trick as it was not a deer but Ravana's maternal uncle Marich. To fulfill the wish of his wife, Ram started walking and while pitching, Ram went far behind the deer. After Ram had gone a long way, Shri Ram came to know that it was not a deer but an illusionist. Then Lord Ram shot an arrow and killed Marich, which means deer. While dying we were called by the elusive Marich in a loud voice saying Lakshman Lakshman which made mother Sita feel that her husband Lord Ram was in some trouble. While there was nothing like this, but mother Sita sent her deity Lakshmana to help her brother.

While leaving, Laxman drew a line around the hut, which no one could enter inside the hut. We all know the same line by the name of Laxman Rekha. As soon as Laxman went some distance to help Lord Rama, then Ravana comes or kidnapped Mother Sita and took her from his airplane to his country through the south direction of Vau Marg, and the same country we know today as Sri Lanka. Huh.


राम और रावण का युद्ध – Battle of Rama and Ravana

सीता हरण की कथा अलग अलग रामायणों से |Sita Haran Story Valmiki Tulsi And Kamban Ramayan | Naarad Vani

छल से माता सीता का हरण करने के बाद रावण ने सीता को लंका की अशोक वाटिका में रखा। उस जगहा की रक्षा अनेक दैत्य करते थे। रावण ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा था लेकिन माता सीता नहीं मानीं। दूसरी ओर, राम ने वानर सेना और हनुमान की मदद से सीता का पता लगाया था। हनुमान जी ने सबसे पहले रावण से सीता को वापस राम को सौंपने को कहा, लेकिन रावण ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ, तब राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमें अनेक दैत्यों की बलि दी गई थी तथा अनेक वीरों की बलि दी गई थी। वीरों की मृत्यु हो गई थी।

उस युद्ध में रावण के सभी भाई, योद्धा और मित्र शहीद हो गए थे। उस युद्ध में राम की सेना को कई विपत्तियों का सामना करना पड़ा था लेकिन वानर सेना ने भीषण युद्ध किया और अंत में भगवान राम की जीत हुई। रावण ने अपने सभी योद्धाओं और पुत्रों को इसमें दफन कर दिया था। उसी समय लंका के साथी द्वार की सुरक्षा में सेंध लग गई। रावण युद्ध के मैदान में राम के हाथों मारा गया था। कुंभकर्ण मारा गया। रावण के पुत्र मेघनाथ ने नागपाश अस्त्र से लक्ष्मण और श्रीराम को कैद कर लिया था। फिर गरुड़ देवता की सहायता से उन्हें मुक्त किया गया। युद्ध में विजयी होने पर राम ने रावण के भाई विभीषण को राज्य देकर बहुत ही नेक काम किया था।

After abducting Mother Sita by deceit, Ravana kept Sita in the Ashok Vatika of Lanka. Many demons used to protect that place. Ravana had proposed marriage to her but mother Sita did not agree. On the other hand, Rama had traced Sita with the help of the monkey army and Hanuman. Hanuman ji first asked Ravana to hand over Sita back to Rama, but Ravana was not ready to do so, then there was a fierce war between Rama and Ravana. In which many demons were sacrificed and many heroes were sacrificed. The heroes had died.

In that war all the brothers, warriors and friends of Ravana were martyred. In that war Rama's army had to face many calamities but the monkey army fought a fierce battle and finally Lord Rama won. Ravana had buried all his warriors and sons in it. At the same time there was a breach in the security of the companion gate of Lanka. Ravana was killed by Rama in the battlefield. Kumbhakarna was killed. Ravana's son Meghnath had imprisoned Lakshmana and Shriram with Nagpash weapon. Then with the help of Garuda Devta he was freed. On being victorious in the war, Rama had done a very noble deed by giving the kingdom to Ravana's brother Vibhishana.


अयोध्या में भगवान राम का स्वागत – Welcome of Lord Rama in Ayodhya

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रावण के साथ युद्ध में अपनी जीत के बाद राम अपने राज्य अयोध्या लौट आए। युद्ध जीतने के बाद श्रीराम रावण का पुष्पक विमान ही साथ ले आए थे। सब कुछ विभीषण को भेंट कर दिया। रामजी के अयोध्या आने की खुशी में अमावस्या के दिन अयोध्यावासियों ने अपने राजा के आने की खुशी में पूरे राज्य को दीपों से प्रकाशित किया। अयोध्या नगरी अपनी रोशनी से जगमगा रही थी। अयोध्या में लाखों दीपों की रोशनी से श्री राम का स्वागत किया गया। उनकी याद में हम आज भी हिंदू दीपावली मनाते हैं।

Rama returned to his kingdom Ayodhya after his victory in the battle with Ravana. Even after winning the war, Shri Ram had brought Ravana's Pushpak Viman with him. Presented everything to Vibhishan. In the joy of Ramji coming to Ayodhya, on the day of Amavasya, the people of Ayodhya illuminated the whole state with lamps in the joy of the arrival of their king. The city of Ayodhya was shining with its light. Shri Ram was welcomed in Ayodhya with the lighting of lakhs of lamps. In his memory we celebrate Hindu Deepawali even today.


भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई – How Lord Rama died

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भगवान राम ने माता सीता का त्याग कर कई वर्षों तक अयोध्या का शासन संभाला था। बाद में, राम ने अपने दो पुत्रों, लव-कुश और अपने दूसरे भाई, भरत, लक्ष्मण, शत्रुध और के पुत्रों के बीच अपने राज्य का विभाजन किया। उस कार्य को पूरा करने के बाद उन्होंने स्वयं जल में समाधि लेने का निश्चय किया। उन्होंने सरयू नदी में समाधि ले ली और अवतार कार्यों को पूरा करने के बाद वैकुण्ठ धाम को चले गए।

Lord Rama had taken over the rule of Ayodhya for many years after sacrificing Mother Sita. Later, Rama divided his kingdom between his two sons, Luv-Kush, and the sons of his other brother, Bharata, Lakshmana, Shatrudha and Ka. After completing that task, he himself decided to take samadhi in the water. He took samadhi in the Saryu river and after completing the incarnation tasks went to Vaikuntha Dham.

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Hanuman`s Mother - हनुमान की मां

हनुमान जी, भगवान श्री राम के भक्त और सेवक, एक प्रमुख पात्र हैं जो महाकाव्य रामायण में प्रमुखता से प्रदर्शित हुए हैं। हनुमान जी को माता अंजनी ने जन्म दिया था, जो एक आदिवासी महिला थीं। हनुमान जी की माता जी का नाम अंजना था। माता अंजना ने विनायक पूजा करके ईश्वर की कृपा प्राप्त की थी और तब ही हनुमान जी को अपने गर्भ में धारण किया था। इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।

हनुमान जी की माता अंजना बहुत ही भक्तिमय और पवित्र महिला थीं। वे वानर राजा केशरी की पत्नी थीं। माता अंजना ब्रह्मा जी की आशीर्वाद से हनुमान जी को धारण करने का भाग्य प्राप्त की थीं। उनकी पूजा-अर्चना विशेष थी और वे सदैव भगवान शिव की अर्चना करती थीं। एक दिन जब वे शिव जी की पूजा कर रही थीं, तो वायुदेवता के आवाज से उन्हें बताया गया कि उन्हें हनुमान जी को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह सुनकर अंजना ने अत्यंत आ नंदित होकर अपने गर्भ में हनुमान जी को धारण किया।

हनुमान जी के जन्म के समय केरल के वनों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा की गई। हनुमान जी ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भगवान श्री राम की सेवा में बिताया। हनुमान जी ने राम भक्ति के लिए विशेष योगदान दिया और रामायण के महाकाव्य में अपने साहस, शक्ति और नीतिशास्त्र के अद्भुत ज्ञान के आधार पर अपनी महिमा प्रकट की।

हनुमान जी की माता अंजना ने अपने बेटे को धारण करके उसे स्वर्णिम वर्षा वल्लरी नदी में स्नान कराया था, जिससे हनुमान जी को अद्भुत बल, प्रतिभा और बुद्धि प्राप्त हुई। उनकी विद्या और ब्रह्मचर्य ने उन्हें अन्य सभी वानरों से अलग बना दिया। हनुमान जी ने बचपन से ही विद्या और अद्भुत शक्ति का संचार किया और अपनी माता अंजना की कृपा से हर कठिनाई को सुलझा दिया।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अंजना ने अपनी भक्ति और प्रेम से अपने बेटे को पाला और उन्हें देवताओं की अनुग्रह से भगवान राम की सेवा में भेजा। हनुमान जी ने रामायण में अपने अद्भुत कारनामों के माध्यम से भगवान श्री राम की सेवा की और उनकी विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे माता अंजना के प्रेम और आदर्शों के प्रतीक हैं और हिंदू धर्म में उनकी पूजा विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है।



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News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.