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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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भगवान राम की वंशावली
Lineage of Lord Rama

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कहानी रघुकुल की, जानिए श्रीराम की वंशावली

भगवान राम की वंशावली

भगवान श्री राम हिन्दुओं के आराध्य देव हैं। धार्मिक विरासत के अनुसार त्रेया युग में भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। भगवान राम को विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था। राम मंदिर भूमि पूजन के दृश्यों पर आइए जानते हैं भगवान श्रीराम की वंश परंपरा यानी ब्रह्राजी से लेकर भगवान राम तक की।

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रघुकुल की कहानी और उनकी वंशावली

शुरुआत में, भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी के पहले राजा, भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु को बनाया। भगवान सूर्य के पुत्र होने के कारण मनु जी सूर्यवंशी कहलाए और उन्हीं से यह वंश सूर्यवंश कहलाया। बाद में अयोध्या के सूर्यवंश में प्रतापी राजा रघु ने कहा। राजा रघु से इस वंश को रघुवंश कहा गया।

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वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस

रामायण ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई थी, जो भगवान राम के समकालीन थे। जबकि रामचरितमानस की रचना तुलसीदास ने की थी, जो मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थे। रामायण संस्कृत भाषा में लिखी गई थी और रामचरितमानस 'त्रेता-युग' और 'कलि-युग' में अवधी भाषा में लिखी गई थी।

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इक्ष्वाकु वंश के गुरु वशिष्ठ और श्री राम की वंशावली

कुक्षी इक्ष्वाकु के पुत्र थे। कुक्षी के पुत्र का नाम विकुक्षी था। अरण्य स्टार्टर, बाना का पुत्र, विकुक्षि का पुत्र। अनरण्य से पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ, त्रिशंकु का पुत्र तुंधुमार, तुंधुमर का पुत्र युवनाश्व, युवनाश्व का पुत्र मान्धाता हुआ और मान्धाता ने सुसन्धि को जन्म दिया।

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भगवान राम के वंशज

आज हम आपको विष्णु के अवतार भगवान राम के पूर्वज और उनकी जाति के बारे में बताते हैं। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, दखलाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषद। राम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।

ब्रह्माजी से श्रीराम तक के जन्म की कहानी

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विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए

मरीचि का जन्म ब्रह्मा से हुआ था और मरीचि के पुत्र कश्यप थे। इसके बाद कश्यप का पुत्र विवस्वान हुआ। विवस्वान के जन्म के समय से ही सूर्यवंश का प्रारंभ माना जाता है। वैवस्वत मनु विवस्वान के पुत्र थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए- इल, इक्ष्वाकु, करचम (नभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषद। भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। आपको बता दें कि जैन तीर्थंकर निमि का जन्म भी इसी कुल में हुआ था।

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अयोध्या नगरी स्थापना इक्ष्वाकु के समय में हुई

इक्ष्वाकु से सूर्यवंश की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु वंश में विकुक्षि, निमि और दण्डक सहित अनेक पुत्रों का जन्म हुआ। धीरे-धीरे समय के साथ यह पारिवारिक परंपरा बढ़ती चली गई, जिसमें हरिश्चंद्र रोहित, वृष, बहू और सागर का भी जन्म हुआ। इक्ष्वाकु के समय में अयोध्या नगरी की स्थापना हुई थी। इक्ष्वाकु कौशल देश के राजा थे जिनकी राजधानी साकेत थी, जिसे अयोध्या कहा जाता है। रामायण में गुरु वशिष्ठ ने राम के वंश का विस्तार से वर्णन किया है।

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युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए

कुक्षी इक्ष्वाकु का पुत्र था, विकुक्षी कुक्षी का पुत्र था। इसके बाद विकुक्षी का सतीत्व समाप्त हो गया और बाण का पुत्र अनरण्य हो गया। यह क्रम समय के साथ चलता रहता है जिसमें अनरण्य से पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। थोकुमार के पुत्र का नाम युवनास्व था। मान्धाता का जन्म युवनश्व से हुआ था और सुसन्धि का जन्म मान्धाता से हुआ था। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसंधि और प्रसेनजित। ध्रुवसंधि के पुत्र भरत हुए।

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दिलीप से प्रतापी भगीरथ पुत्र हुए

भरत के पुत्र असित के जन्म के बाद असित के पुत्र सगर का जन्म हुआ। सगर अयोध्या के सूर्यवंशियों के पराक्रमी राजा थे। राजा सगर के पुत्र भ्रमित थे। इसी प्रकार असमंज का पुत्र अंशुमान हुआ, फिर अंशुमान का पुत्र दिलीप हुआ। दिलीप के प्रतापी भागीरथ के पुत्र थे, जो कठोर तपस्या के बल पर माँ गंगा को धरती पर लाने में सफल रहे। भागीरथ के पुत्र काकुत्स्थ हुए और काकुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ।

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दशरथ ने चार पुत्रों को जन्म दिया

रघु के जन्म के बाद ही इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा क्योंकि रघु बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी राजा थे। उनके पुत्र रघु के साथ बड़े हुए। प्रवृद्ध से अनेक वंश हुए जो नाभाग हुए तो नाभाग के पुत्र अज हुए। अज का एक पुत्र दशरथ था और दशरथ अयोध्या के राजा बने। दशरथ ने चार पुत्रों को जन्म दिया। भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। इस प्रकार भगवान राम का जन्म ब्रह्राजी के 67 में हुआ था।

जय श्री राम

इक्ष्वाकु वंश के आचार्य वशिष्ठ जी थे जिन्होंने इस प्रकार श्री राम के वंश का वर्णन किया।

पीढ़ी की शुरूआत :- सबसे पहले ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
दूसरी पीढ़ी :- ब्रह्मा जी के पुत्र थे मरीचि।
तीसरी पीढ़ी :- मरीचि के पुत्र कश्यप हुए।
चौथी पीढ़ी  :- कश्यप के पुत्र हुए विवस्वान।
पांचवी पीढ़ी  :- विवस्वान के पुत्र थे वैवस्वत।
छठी पीढ़ी  :- वैवस्वतमनु के दस पुत्र हुए , इनमें से एक का नाम था इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना हुई।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

सातवी पीढ़ी  :- इक्ष्वाकु के पुत्र हुए कुक्षि ।
आठवीं पीढ़ी  :- कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।
नवीं पीढ़ी  :- विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।
दशवीं पीढ़ी  :- बाण के पुत्र थे अनरण्य।
ग्यारहवीं पीढ़ी  :- अनरण्य के पुत्र का नाम पृथु था।
बरहवीं पीढ़ी  :- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

तेरहवीं पीढ़ी  :- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए।
चौदहवीं पीढ़ी  :-  धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था।
पंद्रहवीं पीढ़ी  :-युवनाश्व के पुत्र हुए मान्धाता ।
सोलहवीं पीढ़ी  :-  मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ।
सत्रहवीं पीढ़ी  :- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित।
अठारहवीं पीढ़ी  :-  ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

उन्नीसवीं पीढ़ी  :-  भरत के पुत्र हुए असित।
बीसवीं पीढ़ी  :-  असित के पुत्र सगर हुए।
इक्कीसवीं पीढ़ी  :-  सगर के पुत्र का नाम असमंज था।
बाइसवीं पीढ़ी  :-  असमंज के पुत्र अंशुमान हुए।
तेइसवीं पीढ़ी  :- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए।
चौबीसवीं पीढ़ी  :- दिलीप के पुत्र भगीरथ थे।
पच्चीसवीं पीढ़ी :- भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

छब्बीसवीं पीढ़ी  :- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु एक तेजस्वी और पराक्रमी राजा थे, उनमे नाम पर ही इस वंश का नाम रधुकुल पड़ा।
सत्ताईसवीं पीढ़ी  :-  रघु के पुत्र हुए प्रवृद्ध।  
अठ्ठाइसवीं पीढ़ी  :-  प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे।
उनतीसवीं पीढ़ी  :-  शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए।
तीसवीं पीढ़ी  :- सुदर्शन के पुत्र का नाम था अग्निवर्ण।
इकत्तीसवीं पीढ़ी  :- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

बत्तीसवीं पीढ़ी  :-  शीघ्रग के पुत्र हुए मरु।
तेतीसवीं पीढ़ी  :- मरु के पुत्र हुए प्रशुश्रुक।
चौंतीसवीं पीढ़ी  :- प्रशुश्रुक के पुत्र हुए अम्बरीष।
पैंतीसवीं पीढ़ी  :- अम्बरीष के पुत्र का नाम था नहुष।
छत्तीसवीं पीढ़ी  :- नहुष के पुत्र हुए ययाति।
सैंतीसवीं पीढ़ी  :-ययाति के पुत्र हुए नाभाग।
अठतीसवीं पीढ़ी  :- नाभाग के पुत्र का नाम था अज ।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

उनतालीसवीं पीढ़ी  :- अज के पुत्र हुए दशरथ।
चालसवीं पीढ़ी  :- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए।

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म चैत्र माह, शुक्ल नवमी के दिन अयोध्या में हुआ था
पिता: दशरथ
माता: कौशल्या
गुरु: वशिष्ठ, विश्वामित्र
पत्नी : सीता
पुत्र : लव और कुश
सौतेली मां: सुमित्रा और कैकेयी
भाई: लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न
कुल: इक्ष्वाकु

भगवान राम की वंशावली - VANSHAVALI OF LORD RAM - Lineage of Lord Rama

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भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज

राम के दो पुत्रों में कुश का वंश चलता रहा, फिर कुश से अतिथि और अतिथि, निष्ठा से, नभ से, पुंडरिक से, पुंडरिक से, क्षेमंधवा से, देवानिका से, अहीनक से, रुरू से, परियात्र से, दल से, छल से, उक्त। वज्रनाभ से, गण से, वुषितस्व से, विश्वसः से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, आदि से, मरु से, प्रयूश्रुत से, उदावसु से, नंदीवर्धन से, विशेष्टु से, देवरात से, बृहदुक्था से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हरयाव से, मरु से, प्रतिधानक से, कुतिरथ से, देवमीधा से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरत से , महरोम से, स्वर्णरोम से और हरस्वरोम से सिरध्वज का जन्म हुआ।

कुश वंश के राजा सिरध्वज की एक पुत्री थी जिसका नाम सीता था। सूर्यवंश इससे भी आगे बढ़ा, जिसमें कृत्या नाम का एक पुत्र पैदा हुआ जिसने योग का मार्ग अपनाया। कुश वंश से ही कुशवाहा, मौर्य, शनि, शाक्य संप्रदाय स्थापित हुए हैं। एक शोध के अनुसार महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुआ था। गणना की जाए तो कुश महाभारत काल से 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व तक था।

इसके अलावा शल्य चिकित्सा के बाद बहतक्षय, उरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवश्च, भानुरथ, प्रतश्व, सुप्रतिप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नरश्रवा, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्रा, बृहदराज, धर्म, कृतजय, व्रत, रंजय, पाप शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्रा। माना जाता है कि खुद को शाक्यवंशी कहने वाले भी श्रीराम के ही वंशज हैं।

राम का वंशज है जयपुर राजपरिवार जयपुर राजपरिवार की रानी पद्मिनी और उनके परिवार के सदस्य भी राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। कुछ समय पहले रानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल दिया था जिसमें कहा गया था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 307वें वंशज थे। परिवार के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्मे महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थीं। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर और मानसिंह ने तीसरी बार गायत्री देवी से विवाह किया। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र का नाम भवानी सिंह रखा गया। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ था। लेकिन दोनों में से किसी के भी बेटे के नाम की कोई बेटी नहीं है और जिसकी शादी नरेंद्र सिंह से हुई है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।

और भी हैं राम के वंशज : वैसे तो कई राजा-महाराजा थे जिनके पूर्वज श्री राम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाहा वंश के हैं। मुगल काल में इन्हें अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा था, लेकिन आज भी ये सभी अपने आप को प्रभु श्रीराम का वंशज मानते हैं।

कहानी रघुकुल की, जानिए श्रीराम की वंशावली , VANSHAVALI OF LORD RAM

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भगवान राम के पुत्र लव के वंशज

माना जाता है कि लव का पुत्र सरोक्मन था। लव के वंशज राघव राजपूत हैं ऐसा माना जाता है कि राघव राजपूत राजा प्रेम से पैदा हुए थे। इनमें बरगुजर, जयस और सिकरवारों के राजवंश चले। इसकी दूसरी शाखा सिसोदिया राजपूत वंश की थी, जिसमें से बैचला (बैसला) और गहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुशवाहा (कछवाहा) राजपूतों का वंश कुशजी से बढ़ा। पौराणिक कथा के अनुसार लवजी ने लवपुरी शहर की स्थापना की थी। जो वर्तमान में पाकिस्तान के लाहौर शहर में है, यहाँ के किले में आज भी लवजी का मंदिर बना हुआ है। लवपुरी लगाने के बाद इसे लोहापुरी कहते हैं। इतना ही नहीं बाद में स्थापित थाई शहर लोबपुरी का नाम भी लव के नाम पर रखा गया।

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रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Maricha - मारीच

मारीच रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र है जो रावण के मामा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मारीच देवताओं के वंशज और वानर जाति के एक प्रमुख सदस्य हैं। वह विद्या, शक्ति और योग्यता में प्रवीण हैं, जिसके कारण उन्हें रावण का समर्थन करने का अवसर मिला। मारीच के चरित्र में रामायण के कई पहलुओं को प्रकट किया गया है, जैसे कि उनकी शांतिपूर्ण प्रकृति, अच्छे संगीत और उनका नीतिनिष्ठा।

मारीच को एक प्राणी के रूप में प्रदर्शित किया गया है, जिसे रावण ने अपने विचारशक्ति के आधार पर प्राणी में परिवर्तित किया। इस प्राणी के रूप में, मारीच ने रावण को अपने विज्ञान और ज्ञान के माध्यम से नये विचारों का अनुभव कराया। वे रावण के उत्कृष्ट मनोबल का प्रतीक बन गए और उन्होंने रावण को अपनी मायावी शक्तियों का परिचय दिया। मारीच ने रावण के दुर्योधन के रूप में भूमिका निभाई, जो उनके प्रतापी और विनीत चरित्र का एक प्रतिष्ठित उदाहरण है।

मारीच की रामायण में प्रमुख भूमिका उनके परिवर्तनशील स्वभाव की बजाय उनकी शांतिपूर्ण प्रकृति को दर्शाने में है। उनकी विचारधारा धर्म और न्याय के पक्षपाती दरबार के विरोध में है, जिसे वे रावण को समझाते हैं। मारीच को रामायण में ध्यान और धार्मिकता के प्रतीक के रूप में भी दिखाया गया है, जब उन्होंने रावण को राम की सत्य और धर्म को मान्य करने की सलाह दी। यह दर्शाता है कि मारीच को धर्म और सत्य के महत्व का अच्छा ज्ञान था।

मारीच को सुंदरकांड में एक महत्वपूर्ण घटना में प्रस्तुत किया गया है, जब उन्होंने भगवान राम के द्वारा किए गए वानरों के प्रत्येक घोर आक्रमण का वर्णन किया। मारीच ने रावण को सावधान करने की सलाह दी और उन्हें बताया कि राम एक महान योद्धा है और उनकी अपार शक्ति का अनुभव करने की योग्यता रखता है। उन्होंने रावण को चेतावनी दी कि वे राम से मतभेद में न पड़ें और उनके प्रति सम्मान का भाव रखें। मारीच की यह सलाह रावण की विजय के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई, जो राम के द्वारा हत्या किए जाने की घटना के बाद हुई।

मारीच का चरित्र रामायण में महत्वपूर्ण है और वह रावण के मामा के रूप में एक गहरी राष्ट्रीयता, नीतिशास्त्र, और धर्म की प्रतिष्ठा का प्रतीक है। उनकी प्रशंसा उनकी योग्यताओं, विचारधारा और सच्चे मन की प्रशंसा है। यह चरित्र मारीच को रामायण का महत्वपूर्ण और आदर्श व्यक्ति बनाता है, जो धर्म, न्याय और सत्य के मानकों का पालन करता है।



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News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.