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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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Kanak Bhawan Ayodhya

कनक भवन

जय श्रीराम

About Kanak Bhawan

Kanak Bhawan in ayodhya

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Kanak Bhawan

जय श्री राम ||

कनक भवन अयोध्या में राम जन्म भूमि, रामकोट के उत्तर-पूर्व में है। कनक भवन अयोध्या के बेहतरीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह भवन भगवान श्री राम जी से विवाह के तुरंत बाद महारानीकैकेयी जी द्वारा देवी सीता जी को उपहार में दिया गया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है।

कहा जाता है कि रानी कैकेयी ने कनक भवन को माता सीता को मुंह दिखाई में दिया था। कालांतर में कई बार इस मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार होता रहा है। वर्तमान मंदिर 1891 में ओरक्षा की रानी का बनवाया हुआ है। अयोध्या आने वाले श्रद्धालु हनुमानगढ़ी, श्रीरामजन्मभूमि के साथ कनक भवन अवश्य जाते हैं।

कथा है कि त्रेता युग में मिथिला में महाराज जनक की सभा में जब श्रीराम ने भगवान शंकर के धनुष को भंग कर दिया, तब जानकी ने उनके गले में जयमाला डाल दी। उस रात्रि प्रभु यह विचार करने लगे कि जनकनंदिनी वैदेही अब हमारी अयोध्या जाएंगी। इसलिए उनके लिए वहां अति सुंदर भवन होना चाहिए।

कथा है कि जिस क्षण भगवान के मन में यह कामना उठी, उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयी को स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पड़ा। महारानी कैकेयी ने महाराजा दशरथ से स्वप्न में दिखे कनक भवन की प्रतिकृति अयोध्या में बनाने की इच्छा व्यक्त की।

It is said that Queen Kaikeyi had given Kanak Bhawan to Mother Sita in front of her face. Over the years, this temple has been built and renovated several times. The present temple was built in 1891 by the queen of Orksha. Devotees coming to Ayodhya must visit Hanumangarhi, Shri Ram Janmabhoomi along with Kanak Bhawan.

Legend has it that in Treta Yuga, when Shri Ram broke the bow of Lord Shankar in the assembly of King Janak in Mithila, Janaki put a garland around his neck. That night the Lord started thinking that Janaknandini Vaidehi would now go to our Ayodhya. That's why there should be a very beautiful building for them.

Legend has it that the moment this wish arose in the mind of God, at the same moment Queen Kaikeyi saw in her dream the divine Kanak Bhavan of Saket Dham in Ayodhya. Queen Kaikeyi expressed her desire to Maharaja Dasaratha to build a replica of the Kanaka Bhavan seen in her dream in Ayodhya.

शिल्पी विश्वकर्मा कनक भवन बनाने के लिए अयोध्या आए

दशरथ जी के आग्रह पर शिल्पी विश्वकर्मा कनक भवन बनाने के लिए अयोध्या आए। उन्होंने अति सुंदर कनक भवन बनाया। माता कैकेयी ने वह भवन अपनी बहू सीता को मुंह-दिखाई में दिया। विवाह के बाद राम-सीता इसी भवन में रहने लगे। इसमें असंख्य दुर्लभ रत्न जड़े हुए थे।

आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाकर सीताराम के युगल विग्रहों को वहां पुन: प्रतिष्ठित किया था। महाराज विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया विशाल कनक भवन एक हजार वर्ष तक ज्यों का त्यों बना रहा। बीच-बीच में उसकी मरम्मत होती रही।

इसके जीर्णोद्धार की दूसरी सहस्त्राब्दि में अयोध्या पर अनेक बार यवनों का आक्रमण हुआ, जिसमें लगभग सभी प्रमुख देव स्थान क्षतिग्रस्त हुए। कनक भवन भी तोड़ा गया।

माना जाता है कि द्वापर में श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी सहित जब अयोध्या आए, तब तक कनक भवन टूट-फूट कर एक ऊंचा टीला बन चुका था। भगवान श्रीकृष्ण ने उस टीले पर परम आनंद का अनुभव किया।

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि इसी स्थान पर कनक भवन व्यवस्थित था। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योग-बल द्वारा उस टीले से श्रीसीताराम के प्राचीन विग्रहों को प्राप्त कर वहां स्थापित कर दिया। दोनों विग्रह अनुपम और विलक्षण हैं। इनका दर्शन करते ही लोग मंत्रमुग्ध होकर अपनी सुध-बुध भूल जाते है। वास्तव में कनक भवन सीता-राम का अन्त:पुर है।

On the request of Dashrath ji, Shilpi Vishwakarma came to Ayodhya to build Kanak Bhawan. He built the very beautiful Kanak Bhawan. Mother Kaikeyi gave that building to her daughter-in-law Sita in person. After marriage, Ram-Sita started living in this building. Innumerable rare gems were studded in it.

About two thousand years ago, Emperor Vikramaditya renovated it and reinstated the couple idols of Sitaram there. The huge Kanak Bhawan built by Maharaj Vikramaditya remained as it was for a thousand years. It was being repaired from time to time.

In the second millennium of its restoration, Ayodhya was attacked several times by Yavanas, in which almost all the major deities were damaged. Kanak Bhavan was also demolished.

It is believed that by the time Shri Krishna came to Ayodhya with his queen Rukmini in Dwapar, by then Kanak Bhavan had become a high mound after breaking down. Lord Krishna experienced supreme bliss on that mound.

He came to know from his divine vision that Kanak Bhavan was arranged at this place. Yogeshwar Shri Krishna by his yoga-force obtained the ancient deities of Shri Sitaram from that mound and installed them there. Both the idols are unique and unique. On seeing him, people get mesmerized and forget their mind. Actually Kanak Bhavan is the ranivaas Sita-Ram.


Temple 🔗

The Ram Mandir Trust has set December 2023 as the deadline and the temple will be open for devotees from January 2024.

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Places To See In Ayodhya 🔗

The top attractions to visit in Ayodhya are: Shri Ram Janma Bhoomi, Hanuman Garhi Mandir, Kanak Bhavan Temple, Sita Ki Rasoi

Facts and History of Ayodhya And Ramayana

कौन थे शिल्पी विश्वकर्मा

धर्मग्रंथों में विश्वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का वंशज माना गया है। ब्रह्माजी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे, जिन्हें शिल्प शास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ।

विश्वकर्मा प्रकाश को वास्तु तंत्र का अपूर्व ग्रंथ माना जाता है। इसमें अनुपम वास्तु विद्या को गणितीय सूत्रों के आधार पर प्रमाणित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाए भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं। भगवान विश्वाकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है। पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं। वज्र का निर्माण भी उन्होने ही किया था।

कुछ रोचक विवरण :

पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक स्वर्गलोक की इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, असुरराज रावण की स्वर्ण नगरी लंका, भगवान श्रीकृष्ण की समुद्र नगरी द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही जाता है। पौराणिक कथाओं में इन उत्कृष्ट नगरियों के निर्माण के रोचक विवरण मिलते हैं।

उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है। विष्णु पुराण में उल्लेख है कि जगन्नाथ मंदिर की अनुपम शिल्प रचना से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हे शिल्पावतार के रूप में सम्मानित किया था।

माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। इसके पीछे कहानी है कि शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को कहा तो विश्वकर्मा ने सोने का महल बना दिया। इस महल के पूजन के दौरान भगवान शिव ने राजा रावण को आंमत्रित किया।

रावण महल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और जब भगवान शिव ने उससे दक्षिणा में कुछ देने को कहा तथा उसने महल ही मांग लिया। भगवान शिव ने उसे महल दे दिया और वापस पर्वतों पर चले गए।

In the scriptures, Vishwakarma is considered to be the descendant of Brahmaji, the creator of the universe. Brahmaji's son was Dharma and Dharma's son was Rindhadev, who is considered to be the progenitor of Shilpa Shastra. Vishwakarma was born to this limited Riksintadeva's wife named Angirasi.

Vishwakarma Prakash is considered a unique book of Vastu Tantra. In this, unique Vastu Vidya has been certified on the basis of mathematical formulas. It is believed that all the mythological structures are built by Lord Vishwakarma. The birth of Lord Vishwakarma is believed to be from the churning of the ocean between the gods and the demons. The weapons and weapons of the mythological era were created by Lord Vishwakarma only. He also created the Vajra.

Some interesting details:

According to mythological evidence, the credit for the construction of Indrapuri, Yampuri, Varunpuri, Kuberpuri, the golden city of Asuraraj Ravana, Dwarka, the sea city of Lord Krishna and Hastinapur, the capital of Pandavas, also goes to Vishwakarma. Interesting details of the construction of these excellent cities are found in mythology.

The world famous Jagannath temple of Odisha is considered to be an excellent example of Vishwakarma's craftsmanship. It is mentioned in the Vishnu Purana that Lord Vishnu honored him in the form of Shilpavatara, being pleased with the unique sculpture of the Jagannath temple.

It is believed that Vishwakarma was the one who built Lanka. The story behind this is that Shiva asked Lord Vishwakarma to build a palace for Mother Parvati, so Vishwakarma made a golden palace. During the worship of this palace, Lord Shiva invited King Ravana.

Ravana was mesmerized to see the palace and when Lord Shiva asked him to give something as dakshina, he asked for the palace itself. Lord Shiva gave him the palace and went back to the mountains.

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Agastya - मुनि अगस्त्य

मुनि अगस्त्य रामायण में एक महत्वपूर्ण और प्रमुख चरित्र हैं। वे एक महर्षि हैं जिन्होंने अपने तपस्या और विद्या के माध्यम से महान शक्तियों को प्राप्त किया था। अगस्त्य मुनि का जन्म महर्षि उर्वशी और राजा नहुष के पुत्र के रूप में हुआ था। वे एक आदर्श पति, पिता और गुरु थे। अगस्त्य का नाम संस्कृत शब्द 'अगस्ति' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है 'अद्भुत' या 'अत्यंत ध्यानयोग्य'।

अगस्त्य मुनि धर्म और तपस्या के पक्षपाती थे। उन्होंने अपना जीवन इंद्रिय वश में नहीं रखा और अपने मन, शरीर और आत्मा को एकीकृत किया। वे देवताओं और ऋषियों के बीच बड़ी मान्यता रखते थे और सदैव धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते थे। अगस्त्य मुनि की अत्यंत बुद्धिमता, ज्ञानवान होने के साथ-साथ वे एक शान्त, संतुलित और स्वयंनियंत्रित व्यक्तित्व रखते थे। उन्होंने संसार में न्याय, धर्म और अहिंसा की शिक्षा प्रदान की और अपने ज्ञान का उपयोग लोगों की सहायता करने के लिए किया।

मुनि अगस्त्य का दिखावटी रूप बड़ा ही प्रभावशाली और आकर्षक होता था। वे मानवीय रूप में ही नहीं, बल्कि वनदेवता के रूप में भी प्रकट हो सकते थे। उनके मस्तिष्क में बहुत सारी शक्तियाँ होती थीं और उन्हें अन्य देवताओं के साथ मिलकर आपात समय में राज्य की सुरक्षा करने का आदेश देते थे। अगस्त्य मुनि के आदेश को मान्यता देना धर्मपरायण राजाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था।

अगस्त्य मुनि का एक महत्वपूर्ण कार्य रामायण में भी दिखाया गया है। जब भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण राज्य वन में वनवास जीवन बिता रहे थे, तब दण्डक वन में विविध राक्षसों ने अपराधियों के रूप में उनकी परेशानी की थी। उन्हें राक्षसी तड़ना से बचने के लिए अगस्त्य मुनि की सहायता चाहिए थी।

अगस्त्य मुनि ने राम को अपने विशेष शस्त्रों की सौगंध दी जिनका उपयोग वे राक्षसों के विरुद्ध कर सकते थे। वे एक अद्भुत धनुष भी दिए जिसका नाम ब्रह्मास्त्र था, जिसे राम ने बाद में रावण के खिलाफ उपयोग किया। अगस्त्य मुनि ने राम को अन्य रहस्यमय शस्त्र और मंत्रों की शिक्षा भी दी, जिनका उपयोग वे अपनी रक्षा में कर सकते थे। इस प्रकार, अगस्त्य मुनि ने राम को उनके वनवास के दौरान सकुशल रखने में मदद की और उनकी रक्षा की।

मुनि अगस्त्य रामायण के महान चरित्रों में से एक हैं, जो तपस्या, ज्ञान और धर्म के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। उनके महत्वपूर्ण योगदान से राम ने राक्षसों के साथ संग्राम करने में सफलता प्राप्त की और अपनी पत्नी सीता की रक्षा की। अगस्त्य मुनि के उदाहरण ने मनुष्यों को आदर्श जीवन का पाठ पढ़ाया है और उन्हें धार्मिक और न्यायप्रिय आचरण की महत्वपूर्णता सिखाई है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.