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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : रावण का कुम्भकरण वियोग । अतिकाय का लक्ष्मण को ललकारना । नरान्तक देवान्तक मृत्यु ।

रामायण : Episode 63

रावण का कुम्भकरण वियोग । अतिकाय का लक्ष्मण को ललकारना । नरान्तक देवान्तक मृत्यु ।

युद्धभूमि में कुम्भकरण के मारे जाने के समाचार पर रावण को सहज विश्वास नहीं होता। काफी देर बाद वह मानता है कि उसका भाई धराशाही हो चुका है। वह कहता है कि आज उसकी दायीं भुजा कट गयी। रावण को आभास होने लगता है कि अब असुर जाति के अन्त का समय आ गया है। तब मेघनाद आगे बढ़कर पिता को सांत्वना देते हुए कहता है कि किसी योद्धा से मारे जाने से देश नहीं हारता। छोटा पुत्र अतिकाय भी कहता है कि उनके पिता के रहते हुए लंका अपराजेय है। एक अन्य पुत्र देवांतक कहता है कि वो राम को मारकर रामांतक कहलाना चाहता है। रावण और उसकी छोटी रानी धन्यमालिनी के चार पुत्र अतिकाय, देवांतक, नरांतक और त्रिशिरा युद्ध में जाने की आज्ञा लेते हैं। उधर युद्धभूमि में विभीषण शोकग्रस्त हैं। वह स्वयं को भाई कुम्भकरण की मृत्यु का दोषी मानते हैं। राम उन्हें जीवात्मा के नश्वर होने और शोक त्यागने का उपदेश देते हैं। राम कुम्भकरण की मौत को वीरगति का गौरव देते हैं। अशोक वाटिका में त्रिजटा सीता को कुम्भकरण के मारे जाने का समाचार देती है। सीता प्रसन्न होती हैं लेकिन रावण के चार पुत्रों के एक साथ युद्ध में जाने की सूचना पर वे माता जगदम्बा से सदा अपने पति राम के दाहिने रहने की प्रार्थना करती हैं। रणभेरी बजती है। अतिकाय अपना दूत राम के पास भेजकर कहलाता है कि जिस प्रकार उनके पिता अपने भाई की मौत पर शोकग्रस्त है, उसी प्रकार वो लक्ष्मण को मारकर राम को भ्रातशोक देना चाहता है। राम लक्ष्मण को युद्ध के लिये भेजते हैं। विभीषण लक्ष्मण को सचेत करते हैं कि अतिकाय कुम्भकरण से सवाया बड़ा लड़ाका है। वह बताते हैं कि एक बार भगवान शिव ने क्रोधित होकर अतिकाय पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया था लेकिन उसने त्रिशूल तोड़कर शिवजी का मान भंग कर दिया। इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे धनुर्विद्या के तमाम रहस्य सिखाए थे। विभीषण एक और प्रसंग सुनाते हैं। आदिकाल में मधु और कैटभ नामक दो असुरों ने बैकुण्ठ में घुसकर क्षीरसागर पर चढ़ाई कर दी। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी दोनों असुरों का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। अहंकार में आकर मधु कैटभ ने विष्णु से वरदान माँगने को कहा। भगवान विष्णु ने वरदान में मधु और कैटभ से उनकी मृत्यु का उपाय पूछ लिया। मधु कैटभ ने दम्भ में आकर कहा कि वे उनके जाँघ पर ही मरेंगे। तब भगवान विष्णु ने अपना आकार बड़ा करके अपनी जाँघों के बीच दोनों असुरों को फँसाकर मार डाला। वही पराक्रमी मधु इस जन्म में कुम्भकरण बन कर पैदा हुआ और ब्रह्मा से अभेद्य कवच पाने वाला ही अतिकाय है। इस पर राम कहते हैं कि विभीषण लक्ष्मण के असली स्वरूप को नहीं जानते हैं, इसलिये वे उनको रोक रहे हैं। लक्ष्मण बड़े भाई राम की प्रदक्षिणा करके रणभूमि में जाते हैं। लक्ष्मण और अतिकाय के बीच ललकारपूर्ण संवाद होता है। उधर अंगद अपनी गदा प्रहारों से नरांतक और हनुमान देवांतक का अन्त कर देते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Manthara - मंथरा

मंथरा रामायण में एक प्रमुख पात्र है जिसने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह एक रंकिनी थी जो कैकेयी, कैशपति दशरथ की द्वितीय पत्नी, की सेविका थी। मंथरा का अस्तित्व राजमहल में एक उच्च और प्रभावशाली स्थान देता था। वह एक महाविद्यालयीन बुद्धिमान व्यक्ति थी जिसका मुख्य उद्देश्य कैकेयी की इच्छाओं को पूरा करना था।

मंथरा को विवेकी, कपटी, और नीच चरित्र का प्रतीक माना जाता है। उसका रंग सांवला था और उसकी आंखें भ्रमरी जैसी थीं जो हमेशा चोरी करने के लिए ढ़ेरों चीजें तलाशती थीं। उसके रूप, आचरण, और व्यवहार से जाहिर होता था कि वह लोगों में विद्वान्त, विद्रोहीता और सम्मानहीनता को उत्पन्न करने का उद्देश्य रखती है।

मंथरा एक अभिनय प्रेमी थी और उसकी कार्यशैली में वह बदलाव लाने की कला को दर्शाती थी। वह अक्सर मुखौटे धारण करती थी ताकि लोग उसकी असली पहचान नहीं कर पाते। इसके बावजूद, उसकी गतिविधियों का परिणाम हमेशा आशान्ति और विपरीत प्रभाव होता था।

मंथरा ने विवेकपूर्ण चोरी करके कैकेयी के आपक्ष में जाने की योजना बनाई थी। उसने कैकेयी को उसके पति राजा दशरथ और उनके राज्य की प्रशंसा के बारे में मनभावन और प्रलोभनकारी विचारों से प्रभावित किया। उसने कैकेयी को यह भ्रम दिया कि अगर उसे उनके पुत्र राम का राज्याभिषेक नहीं किया जाता है, तो उसके और उसके पति की मर्यादा और सम्मान को छलनी किया जाएगा।

मंथरा की मनियत के चलते, कैकेयी ने राजा दशरथ से अनुरोध किया कि वह राम को वनवास भेजें और उनके पुत्र भरत को राज्य का उपदेश्य बनाएं। यह घटना रामायण की कथा के महत्वपूर्ण पट को पलटने के लिए साबित हुई।

मंथरा के पापी चरित्र ने उन्हें राम और सीता द्वारा जगह जगह निन्दा का शिकार बनाया। उन्होंने शूर्पणखा को भी प्रेरित किया था जो फिर सीता के साथ जंगल में बदले और उसके परिवार को भी आपत्ति में डाला। मंथरा ने अपनी चालाकी और कपट के द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी संभावित मार्गों का प्रयास किया।

मंथरा का वर्णन रामायण में एक योग्यता के रूप में प्रदर्शित किया गया है जो उसे एक अभिनयी और चालाक खिलाड़ी बनाती है। वह अपने चालों के जरिए कैकेयी के मन को भ्रमित करती है और उसे अपनी ही हानि का कारण बनाती है। उसका पात्र मंथरा रामायण का महत्वपूर्ण रूपांकन है जो दर्शाता है कि चालाकी और विद्वान्त का प्रयोग किया जाए तो कितनी हानिकारक हो सकती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.