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रामायण में Hanuman`s Mother - हनुमान की मां की भूमिका

Hanuman`s Mother - हनुमान की मां

हनुमान जी, भगवान श्री राम के भक्त और सेवक, एक प्रमुख पात्र हैं जो महाकाव्य रामायण में प्रमुखता से प्रदर्शित हुए हैं। हनुमान जी को माता अंजनी ने जन्म दिया था, जो एक आदिवासी महिला थीं। हनुमान जी की माता जी का नाम अंजना था। माता अंजना ने विनायक पूजा करके ईश्वर की कृपा प्राप्त की थी और तब ही हनुमान जी को अपने गर्भ में धारण किया था। इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।

हनुमान जी की माता अंजना बहुत ही भक्तिमय और पवित्र महिला थीं। वे वानर राजा केशरी की पत्नी थीं। माता अंजना ब्रह्मा जी की आशीर्वाद से हनुमान जी को धारण करने का भाग्य प्राप्त की थीं। उनकी पूजा-अर्चना विशेष थी और वे सदैव भगवान शिव की अर्चना करती थीं। एक दिन जब वे शिव जी की पूजा कर रही थीं, तो वायुदेवता के आवाज से उन्हें बताया गया कि उन्हें हनुमान जी को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह सुनकर अंजना ने अत्यंत आ नंदित होकर अपने गर्भ में हनुमान जी को धारण किया।

हनुमान जी के जन्म के समय केरल के वनों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा की गई। हनुमान जी ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भगवान श्री राम की सेवा में बिताया। हनुमान जी ने राम भक्ति के लिए विशेष योगदान दिया और रामायण के महाकाव्य में अपने साहस, शक्ति और नीतिशास्त्र के अद्भुत ज्ञान के आधार पर अपनी महिमा प्रकट की।

हनुमान जी की माता अंजना ने अपने बेटे को धारण करके उसे स्वर्णिम वर्षा वल्लरी नदी में स्नान कराया था, जिससे हनुमान जी को अद्भुत बल, प्रतिभा और बुद्धि प्राप्त हुई। उनकी विद्या और ब्रह्मचर्य ने उन्हें अन्य सभी वानरों से अलग बना दिया। हनुमान जी ने बचपन से ही विद्या और अद्भुत शक्ति का संचार किया और अपनी माता अंजना की कृपा से हर कठिनाई को सुलझा दिया।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अंजना ने अपनी भक्ति और प्रेम से अपने बेटे को पाला और उन्हें देवताओं की अनुग्रह से भगवान राम की सेवा में भेजा। हनुमान जी ने रामायण में अपने अद्भुत कारनामों के माध्यम से भगवान श्री राम की सेवा की और उनकी विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे माता अंजना के प्रेम और आदर्शों के प्रतीक हैं और हिंदू धर्म में उनकी पूजा विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है।

Hanuman`s Mother - हनुमान की मां - Ramayana

जीवन और पृष्ठभूमि

श्रीमद्वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी की माता के जीवन और पृष्ठभूमि का वर्णन मिलता है। हनुमान जी की माता का नाम अन्जना था और वह वानर राजकुमारी थी। उनकी गर्भवती रूप में तपस्या करते समय उन्होंने जल तट पर निवास किया था। उन्होंने नामधारण करने के पश्चात पवित्र जल से अपने सर्वशक्तिमान पति शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस प्रकार, हनुमान जी की माता विशेष और प्रतिभाशाली आत्मा थीं। अन्जना एक बहुत ही सुंदर और स्वभाव से साधारण महिला थीं। उन्होंने अपने अत्यंत अद्वितीय और धैर्यशीलता के कारण वानर राजा केसरी के मन में प्रेम की भावना को जीत लिया था। उन्होंने समय के साथ एक नवजात बालक को जन्म दिया, जिसे हनुमान जी के नाम से जाना जाता है। हनुमान जी के जन्म से पहले ही उन्होंने एक ब्रह्मचारी तपस्या की आयाम को धारण कर लिया था। उन्होंने वाल्मीकि ऋषि की सलाह परम्परा को पालन करते हुए अपने गर्भवती अवस्था म ें ही हनुमान जी के बारे में अद्वितीय विचारों को प्राप्त किया था। इस प्रकार, उनकी मातृत्व साधना और तपस्या उनके बेटे के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हनुमान जी की माता अन्जना एक ऐश्वर्यशाली महिला थीं, और उनके पति केसरी भी एक बहुत ही महान वानर राजा थे। उन्होंने अपने पति के साथ सुखद और धर्मप्रिय जीवन व्यतीत किया। हनुमान जी के जन्म के बाद भी उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए गहरा प्यार और समर्पण बनाए रखा। वानर राजकुमारी के रूप में उन्होंने अपनी प्राकृतिक सामर्थ्य का उपयोग किया और वानरों के लिए एक आदर्श नेता बन गईं। हनुमान जी की माता ने अपने बेटे को धर्म और मानवता के उदाहरण के रूप में पाला और उन्हें शिक्षा दी। वह अपने बेटे को सच्ची मानवीयता, न्याय, धैर्य और वीरता के महत्व के बारे में सिखाती थीं। हनुमान जी के माता की महानता यही थी कि उन्होंने उन्हें वीर और सेवाभावी बन ाने का जीवन दिया। हनुमान जी की माता ने अपने बेटे की सफलता के लिए भगवान श्रीराम की आराधना और सेवा की भावना को स्थायी बनाया। उन्होंने हर राम भक्त की तरह अपने जीवन को भी समर्पित कर दिया था। हनुमान जी की माता ने अपने बेटे को ज्ञान और अद्भुत शक्तियों के साथ निभाया था, जो उन्हें भगवान श्रीराम की सेवा करने के लिए अनुकूल बनाते थे। अन्जना के जीवन में धर्म और सेवा के महान आदर्श थे। उन्होंने अपनी पत्नी की तरह ही एक सामान्य वानर रानी की भूमिका निभाई। वह अपने बेटे को शिक्षा देने और उन्हें शक्तिमान और सच्चे भक्त बनाने के लिए अपने जीवन को अर्पित करने में सदैव सक्रिय रहीं। इस प्रकार, हनुमान जी की माता का जीवन पूर्णता और आदर्शवाद के प्रतीक रहा है। उनकी भक्ति, सेवा और परिश्रम ने उन्हें वीर और दीनबंधु के रूप में देशभक्ति का प्रतीक बनाया है। हनुमान जी की माता ने अपने बेटे को न केवल एक महान व्यक्ति बनाया है, बल्कि उन्होंने उन्हें धर्म, मानवता और सेवा के महान आदर्शों का पालन करने का जीवन पथ प्रदान किया है।


रामायण में भूमिका

हनुमान जी की माता जी की रामायण में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। हनुमान जी, जिन्हें माता अंजनी के नाम से भी जाना जाता है, हनुमान जी के अस्तित्व के साक्षात्कार का सबसे पहला पर्वतंत्र माता अंजनी की रामायण है। यह मान्यता है कि माता अंजनी की रामायण ने ही हनुमान जी को जन्म दिया था।

माता अंजनी की रामायण में बताया जाता है कि उनकी प्राचीनतम रामायण की कथा में उन्होंने महाभारत काल की कथाओं और पुराणों की कुछ अंशों को संघटित किया था। वह इस काव्य में धर्म, नैतिकता, प्रेम और भक्ति जैसे महत्वपूर्ण विषयों को उजागर करते हैं। उन्होंने इस कथा में रामायण के मुख्य चरित्रों और घटनाओं को विवरणी से बताया है।

माता अंजनी की रामायण में हनुमान जी को महाभारत के युद्ध में भी भाग लेने का वरदान दिया गया है। हनुमान जी को माता अंजनी ने महाभारत के समय में दिया है ताकि वह अर्जुन के बन्धु बनकर उसकी सहायता कर सकें। उन्होंने अर्जुन को अनुभव कराया कि वह अद्वितीय शक्तिशाली हैं और वे दुर्योधन और कौरवों के विरुद्ध संगठित हो सकते हैं।

इस रामायण में हनुमान जी को राम के प्रत्यक्ष साक्षात्कार का अवसर भी मिलता है। हनुमान जी ने लंका में सीता माता के पास जाकर राम का संदेश दिया था और उन्होंने अपनी महानता और भक्ति का परिचय दिया था। इसके बाद राम और हनुमान जी का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ और राम ने हनुमान जी की महानता को स्वीकार किया।

माता अंजनी की रामायण में हनुमान जी की महिमा को विस्तार से दर्शाया गया है। उन्होंने राम के प्रति अपनी अनन्य भक्ति के माध्यम से एक महान उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने सभी कार्यों को अद्वितीय करने की क्षमता प्रदान की है और दुर्योधन और रावण जैसे दुष्टों का समाप्त किया है। हनुमान जी की रामायण में उनकी माता अंजनी ने एक साधक की भूमिका निभाई है, जो अद्वितीय शक्ति और अनन्य भक्ति के साथ राम की सेवा करने का परिचय देता है।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अंजनी की रामायण में भूमिका महत्वपूर्ण है। यह काव्य उनकी महानता, शक्ति और भक्ति को उजागर करता है और उनकी साधना और सेवा को महत्वपूर्णता देता है। इसके साथ ही, यह रामायण की मुख्य कथाओं और महत्वपूर्ण घटनाओं को भी संघटित करता है और धर्म, नैतिकता, प्रेम और भक्ति के विषयों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। माता अंजनी की रामायण ने हनुमान जी को उनकी पहचान और महत्वपूर्णता दिलाई है और उन्हें साधक की भूमिका में बताया है।


गुण

रामायण में हनुमान जी की माता की दिखावट और गुणों के बारे में विस्तृत जानकारी है। हनुमान जी की माता का नाम 'अंजना' था और वह एक बहुत ही सुंदर महिला थी। अंजना माता को चर्मदायिनी स्वरूप दिया गया है, जिसका अर्थ होता है कि उन्होंने अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और आकर्षण के साथ ही आध्यात्मिक गुणों को भी दिखाया।

अंजना माता शरीर के रंग में गहरे नीले रंग की थीं, जिसे 'नीलम्बरा' कहा जाता है। उनके बाल सियाह (काले) और लम्बे थे, जो उनके आकर्षक चेहरे पर और बड़ी ही गरिमायुक्तता लाते थे। उनकी आंखें भी आकर्षक थीं, जिनकी चमक अन्य सभी देवीयों से अलग थी। उनका मुख सुन्दरता से परिपूर्ण था और वह एक पवित्र और प्रकाशमयी आभा से चमक रहा था।

अंजना माता ने एक गहनतम और स्वर्णिम वस्त्र पहना हुआ था, जो उनकी गरिमा को और बढ़ाता था। उनके आकर्षक शरीर पर मणियों की बेलें सजी थीं और उनकी कलाओं और कुंडल उनकी प्रतिभा की प्रतीक थीं। उनके हाथ में वज्र हाथी का छलंग था, जो उनकी शक्ति और साहस को दर्शाता था। उनके आकर्षक और सुंदर शरीर से उन्होंने अपने आस्था और निष्ठा को दिखाया था।

अंजना माता का व्यक्तित्व भी अत्यंत प्रभावशाली था। उन्होंने एक प्रशासक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका ध्यान स्थिर और अविचलित था और उनके मन में सदैव भगवान राम और भक्ति की भावना ही निवास करती थी। अंजना माता धैर्यशील, साहसी और समर्पित थीं, जो उन्हें एक महान और प्रेरक माता बनाते थे।

अंजना माता की सुंदरता, आकर्षण, गरिमा और आध्यात्मिक गुणों से युक्त विशेषताएं उन्हें एक प्रतिभाशाली और पवित्र देवी बनाती हैं। उन्होंने हनुमान जी को जन्म दिया और उन्हें भगवान राम की सेवा में आदिकारी बनाया। अंजना माता की चरित्रधारणा करके हमें आदर्श मातृत्व, शक्ति, समर्पण और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा मिलती है। वे एक महान और प्रमुख चरित्र हैं जो हमें धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलने की सिख देते हैं।

इस प्रकार, रामायण में हनुमान जी की माता की विविधताओं और गुणों का वर्णन किया गया है। अंजना माता की खूबसूरती, आकर्षण, गरिमा और आध्यात्मिक गुण हमें उनकी महिमा और महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताते हैं। उनका व्यक्तित्व, धैर्य, साहस और समर्पण हमें प्रेरित करते हैं और हमें एक आदर्श मातृत्व की ओर प्रेरित करते हैं। अंजना माता की महिमा और गुणों का अध्ययन हमें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


व्यक्तिगत खासियतें

हनुमान जी की माता के व्यक्तित्व गुण भारतीय पौराणिक कथा रामायण में प्रकट होते हैं। इन गुणों के माध्यम से, हनुमान जी की माता ने एक अद्वितीय प्रेमी, समर्पित और तेजस्वी माता के रूप में परिचित होती हैं। उन्होंने अपने भक्ति और त्याग के जरिए समस्त माताओं के लिए एक मिसाल स्थापित की है।

हनुमान जी की माता को अंजना के नाम से भी जाना जाता है। वे देवी अंजना के द्वारा जन्म लेती हैं, जो पवन देव की एक प्रेमिका होती हैं। उनका नाम अंजना उनकी मुखर चरित्रित करता है, जिसमें संयम, त्याग, और प्रेम के गुण दिखाई देते हैं।

अंजना एक संयमित और आत्मनिर्भर माता हैं। वे अपनी मातृभावना को समझती हैं और उसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध रहती हैं। वे एक अत्यधिक धैर्यशील महिला हैं और कभी भी हतोत्साहित नहीं होती हैं। अपने पुत्र की रक्षा करने के लिए, उन्होंने भयंकर और अद्वितीय परिस्थितियों का सामना किया है।अंजना का स्वभाव उसके पुत्र के प्रति अटूट समर्पण का प्रमाण है।

अंजना धैर्यशीलता की मिसाल हैं। उन्होंने अनेक कठिनाईयों का सामना किया है और उन्हें सफलतापूर्वक पारित किया है। उनका बलिदान पूरे आत्मसमर्पण और त्याग का प्रतीक है। अंजना ने अपने शुरूआती जीवन में ही अपनी सीमित साधनों का यथार्थ उपयोग करते हुए अपार ब्रह्मचर्य और तपस्या अभ्यास की है।

अंजना दयालु और प्रेमी हृदय की माता हैं। उनकी प्रेमभावना उनके बच्चे के प्रति अद्वितीय है। वे अपने पुत्र को अपने हृदय के सबसे गहरे स्थान पर रखती हैं। अपने प्रेम के बालक की रक्षा के लिए वे जहां भी जाएँ, वहां परिस्थितियों का सामना करती हैं। उनका प्रेम विश्वासयोग्यता, धैर्य, और संयम के साथ आता है।

अंजना धैर्यशाली और तेजस्वी हृदय की माता हैं। वे अपने पुत्र को धैर्यशाली और सामर्थ्यपूर्ण बनाने के लिए उन्हें तेजस्वी गुणों से प्रेरित करती हैं। उनकी शक्तिशाली प्रेरणा और प्रभावशाली वक्तव्य विशेष रूप से बाल हनुमान को ध्यान में रखते हैं। अंजना एक प्रेरक आदर्श हैं, जिसे लोगों को आदर्श बनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता एक उदाहरणीय महिला हैं जिसमें प्रेम, समर्पण, धैर्य, सामर्थ्य, त्याग और संयम जैसे गुण विद्यमान हैं। उनके व्यक्तित्व गुणों द्वारा हनुमान जी के जीवन में मातृभाव की महत्ता प्रकट होती है और वे अपने पुत्र की प्रगति और सुरक्षा के लिए संपूर्ण समर्पण के साथ कार्य करती हैं। इन गुणों के माध्यम से, हनुमान जी की माता सभी माताओं के लिए आदर्श बन जाती हैं।


परिवार और रिश्ते

Hanuman ji की माता के परिवार और संबंधों का वर्णन रामायण में किया गया है। हनुमान जी की माता का नाम अन्जना था। वे केशरी नामक वानर राजा की पत्नी थीं। अन्जना एक पुरुषार्थी और धार्मिक आत्मा थीं, जो वानर समुदाय में अत्यंत प्रसिद्ध थीं। वे हनुमान जी की माता बनने से पहले कुछ समय तक वानर राजा के घर में विद्यमान थीं।

अन्जना और केशरी जी की पुत्री का जन्म ब्रह्माजी के आशीर्वाद से हुआ। हनुमान जी की माता ने उन्हें पावनजन्य कार्यों के लिए भगवान् शिव और पावन देवताओं की कृपा की प्राप्ति की थी। उनकी माता ने हनुमान जी को सौम्य और शक्तिशाली बनाने के लिए अनुष्ठान, तपस्या, और साधना की थी।

जब हनुमान जी की माता को उनकी शक्ति और भक्ति का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने स्वयंकार द्वारा एक वानर कुमारी के रूप में अवतार धारण किया। इस अवतार में उन्हें अन्जनी का नाम मिला। उन्होंने हनुमान जी को पालने के लिए इंद्रजित नामक वानर के साथ वन में रहने का निर्णय लिया।

हनुमान जी की माता अन्जना वन में निवास करती थीं और वन में हनुमान जी की शिक्षा और पालना करती थीं। उन्होंने उन्हें वानर भाषा, शस्त्र-शास्त्र, वानर धर्म और संस्कृति का ज्ञान दिया। उनकी माता ने अन्जनी के रूप में अपने पुत्र के आगमन के लिए अभियान किया और उनके बारे में भविष्यवाणी की।

हनुमान जी की माता अन्जना का पति केशरी नामक वानर राजा था। वे बहुत ही शक्तिशाली और धार्मिक वानर थे। केशरी ने हनुमान जी के प्रति अपनी प्रेम और स्नेह व्यक्त किया था। वे उनकी पालना करते थे और उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों का उचित ज्ञान देते थे। केशरी ने हनुमान जी की माता अन्जना के साथ एक सुखी और समृद्ध परिवार का निर्माण किया।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अन्जना वानर राजा केशरी की पत्नी थीं। उन्होंने हनुमान जी को भगवान् शिव और पावन देवताओं की कृपा के साथ पालने और प्रगट करने का कार्य संपादित किया। उनके आदर्शी परिवार और पालकों द्वारा उन्हें अच्छी शिक्षा और संस्कार मिले, जिससे हनुमान जी ने अपनी अमिट शक्ति को विकसित किया और महाभारत काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


चरित्र विश्लेषण

रामायण में हनुमान जी की माता के चरित्र विश्लेषण से अवगत कराने पर विचार करते हुए, हम उनके त्याग, धैर्य और संकल्प के प्रतीक को देख सकते हैं। हनुमान जी की माता, माताएँ की महानता को दर्शाती हैं जो अपने पुत्र के उद्धार के लिए अपने सुखों को भी अर्पित करने को तैयार होती हैं।

हनुमान जी की माता, अन्जनी देवी, एक महान वानर रानी थीं। उनका जीवन भगवान वायु के आशीर्वाद से अलौकिक बना हुआ था। उनकी माता को मंगल का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था जिसने उन्हें देवी अन्जना का नाम दिया। वानर रानी अन्जनी देवी धैर्यशाली, बुद्धिमान और सर्वोच्च आदर्शों का पालन करने वाली थीं।

अन्जनी देवी ने अपने पति को खो दिया था और उनका ध्यान और प्यार सिर्फ उनके पुत्र हनुमान पर समर्पित था। हनुमान को बचपन से ही उनके साथ बढ़ाने का अवसर मिला और उन्होंने उन्हें साधना के माध्यम से भगवान शिव के आशीर्वाद प्राप्त कराया। इ स प्रकार, उनके संकल्प और पुरुषार्थ के प्रतीक हनुमान प्रकट हुए, जो उनकी माता की उम्मीद थीं।

अन्जनी देवी एक प्रेमी माता थीं, जो हमेशा हनुमान के लिए सुरक्षा और कल्याण की कामना करती थीं। उन्होंने अपने पुत्र को अद्भुत बल, शक्ति और बुद्धिमत्ता प्रदान की। हनुमान के जन्म के वक्त, उनकी माता ने सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त किया था और उन्होंने देखा कि उनके पुत्र का रूप सूर्य के समान उज्ज्वल था।

अन्जनी देवी के प्रेम, धैर्य और त्याग का परिचय हनुमान जी के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। हनुमान जी की माता ने अपने पुत्र को सर्वोच्च आदर्शों और मानवता के लिए सेवा करने की सीख दी। वह उन्हें अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना सिखाई, जिससे हनुमान जी ने सीता माता की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लंका का नाश किया।

अन्जनी देवी की दृढ़ता, शक्ति और धैर्य ने उन्हें सभी कठिनाइयों का सामना करने की क ्षमता प्रदान की। हनुमान जी की माता ने अपने बच्चे को सदैव सत्य और न्याय का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उन्हें धर्म के महत्व को समझाया और उन्हें आपसी भाईचारे की महत्वाकांक्षा दिलाई।

अन्जनी देवी अपने पुत्र के लिए सब कुछ करने को तैयार थीं। हनुमान जी के लिए उन्होंने अपने सुखों को भी त्याग दिया और उन्हें भगवान शिव की पूजा और साधना में विश्वास दिलाया। हनुमान जी की माता की निःस्वार्थ प्रेम और प्रबल आस्था ने उन्हें आदर्श माता के रूप में स्थान दिया।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अन्जनी देवी ने अपने पुत्र के प्रति अद्वितीय प्रेम, सेवा और समर्पण का परिचय दिया। उनका धैर्य, त्याग और संकल्प उन्हें महान और अद्वितीय बनाते हैं। हनुमान जी की माता ने अपने पुत्र को शक्तिशाली, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ बनाया। वे एक आदर्श माता के रूप में हमेशा याद रखी जाएंगी।


प्रतीकवाद और पौराणिक कथाओं

श्री हनुमान जी की माता के प्रति रामायण में प्रतिष्ठित एक प्रेम और सम्मान का भाव दिखाया गया है। हनुमान जी की माता, अनजनी देवी, वानर राज केसरी की पत्नी थीं। वह माता भगवान शिव के आदेश पर पावनपुरी उपवन में तपस्या कर रही थीं। उन्होंने उम्मीद की थी कि वे भगवान शिव की आशीर्वाद से एक पुत्र प्राप्त करेंगी। वह ध्यान में खोई रहीं और एक वायु पुत्र की आभा से प्रभावित हुईं।

जब देवी अनजनी गर्भवती हुईं, तो भगवान वायु ने एक वरदान दिया कि उनके पुत्र का रूप मानवता में ही होगा। इसलिए, श्री हनुमान जी मानव शरीर में उत्पन्न हुए थे। हनुमान जी की माता का नाम अनजनी देवी इसलिए पड़ा, क्योंकि उन्होंने ध्यान के समय अपनी आंखों में अनजन लगाई थी। इस रूप में, हनुमान जी ज्ञान और ताकत का प्रतीक हैं।

हनुमान जी की माता के वानर राज केसरी के साथ विवाह का भी एक महत्वपूर्ण संबंध है। केसरी वानरों के राजा थे और उ न्होंने हनुमान जी को अपना पुत्र माना। इस रूप में, केसरी का प्रतीक हनुमान जी की शक्ति, साहस और वीरता है। हनुमान जी भक्ति और सेवा का प्रतीक हैं और उन्होंने अपने माता-पिता के प्रति अपार सम्मान और आदर्श दिखाए। वे अपने माता-पिता की कठिनाइयों को दूर करने के लिए अद्वितीय प्रयास करते हैं।

इसके अलावा, हनुमान जी की माता का सम्बंध भगवान शिव के साथ भी है। शिव और हनुमान दोनों को हनुमान जी की माता के पति के रूप में जाना जाता है। हनुमान जी ने अपनी माता की आत्मा को पहचाना और उन्होंने उन्हें अपने पिता के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार, हनुमान जी की माता शक्ति और ज्ञान के साथ जुड़ी हुई हैं और उन्होंने इस द्वंद्वी सम्बन्ध को प्रकट किया है।

हनुमान जी की माता की प्रतिष्ठा रामायण में भक्ति, समर्पण और सेवा की महत्त्वपूर्ण गुणों को प्रतिष्ठित करती है। वे माता के प्रति अपार प्रेम और आदर्श को दर्शाते हैं। इसके अलावा, हन ुमान जी की माता की कठिनाइयों को पार करने की क्षमता और शक्ति को दर्शाती हैं। हनुमान जी की माता का प्रतीक वानर राज केसरी की स्वरूपता है और वे सम्पूर्णता का प्रतीक हैं।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता के प्रति रामायण में प्रतिष्ठित प्रेम और सम्मान का भाव दिखाया गया है। उनकी माता अनजनी देवी ज्ञान, शक्ति और सेवा के प्रतीक हैं और उन्होंने अपने पुत्र हनुमान जी के माध्यम से अपने गुणों को प्रकट किया है। हनुमान जी की माता के संबंध में भगवान शिव और वानर राज केसरी के साथ एक महत्वपूर्ण संबंध भी हैं और यह संबंध उनकी शक्ति, साहस और वीरता को प्रतिष्ठित करता है। हनुमान जी की माता का प्रतिष्ठान भक्ति, समर्पण और सेवा की महत्त्वपूर्ण गुणों को प्रशंसा करता है और वे भक्तों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं।


विरासत और प्रभाव

2 / 2 पुराणों और इतिहास में हनुमानजी भगवान राम के भक्त और श्री रामायण के महत्वपूर्ण पात्र माने जाते हैं। हनुमानजी की माता का नाम अन्जनी था। रामायण में अन्जनी का महत्वपूर्ण और प्रभावशाली योगदान है, जो भगवान हनुमान के चरित्र के विकास और मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके लगातार साथियों के साथ श्री राम को जीतने और रावण का वध करने के लिए उन्होंने भगवान राम का सहारा बना कर सबको आश्चर्यचकित किया।

हनुमानजी की माता अन्जनी एक पवित्र आत्मा थीं, जो कभी अपने पुत्र के धर्म को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने अपने पुत्र को एक अद्भुत शक्ति के साथ प्राप्त किया था, जो उन्हें अपने भगवान राम के सेवक बनने की सामर्थ्य प्रदान करती थी। भगवान हनुमान के जन्म के बाद, उनकी माता अन्जनी ने उन्हें एक न्यायाधीश के रूप में व्यवस्था की थी। यह उनके लिए उस समय के सामाजिक संरचना में विशेष माना जाता था, जब महिलाएं अधिकांश घरेलू कार्यों के लिए प्रतिबंधित रहती थीं।

अन्जनी के आदर्शवाद के प्रभाव से हनुमानजी ने समाज में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक उदाहरणीय पुरुषार्थी और वीर थे, जो धर्म के प्रतीक बन गए। उनका अद्भुत साहस और भक्ति से भरा ह्रदय हनुमानजी को माता अन्जनी से प्राप्त हुआ था। उनके नाम को सुनते ही लोग उनकी निष्ठा, वीरता और विशाल शक्ति की याद आती है। हनुमानजी की माता का प्रभाव उनके पुत्र पर इतना प्रभावी रहा कि उन्होंने अपने पुत्र को स्वर्गीय वर्ग में स्थान दिया था।

रामायण में हनुमानजी एक महानायक के रूप में उभरे, जिनकी माता का प्रभाव उनके पौराणिक चरित्र को गहराई और महत्व देता है। उनके जीवन के कई पहलुओं में, हनुमानजी की माता ने उन्हें सहायता प्रदान की और उन्हें एक अद्वितीय शक्ति और वीरता प्रदान की। इस प्रकार, हनुमानजी ने माता की आदर्शवाद की अनुकरणीय उदाहरण स्थापित किया और उनके माता-पिता की संघर्षों और बलिदान की प्रशंसा की।

इसके अलावा, अन्जनी की प्रभावशाली उपस्थिति भगवान हनुमान के साधारण भक्तों के जीवन पर भी असर डालती है। हनुमानजी की माता की भक्ति, त्याग, धैर्य और समर्पण की गुणवत्ता के कारण, उनके भक्त भी उनके प्रतिरूप में इन गुणों का पालन करते हैं। उनके भक्त उन्हें आदर्श बनाते हैं और उनकी माता के प्रति श्रद्धा रखते हैं। यह एक अद्वितीय उदाहरण है, जहां भक्तों की मान्यता और उनकी आदर्शवादी भावना उनके आदर्श पुरुष के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Kabandha - कबंध

कबंध रामायण महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण पात्र है, जो हनुमान का पहला लड़ाका था। कबंध एक विशालकाय राक्षस था जिसकी विशेषता थी कि उसके दो पैर, दो हाथ और दो मुख थे। उसके एक पैर और एक हाथ के नुकीले नख थे जिन्हें वह लोगों को दहला देने के लिए प्रयोग करता था। कबंध को लंका के राजा रावण ने अपने राजमहल में निवास कराया था।

कबंध के बारे में कहानी रामायण महाकाव्य में समरेश्वर हनुमान के मुख्य भूमिका को विस्तृत करती है। हनुमान ने सूंदरकांड के दौरान कबंध को मार दिया था।

हनुमान कबंध के पास पहुंचे और उससे युद्ध के लिए मुक़ाबला करने का आग्रह किया। वह ज्ञात करने के लिए पूछता है कि कौन हैं वे और उनका धर्म क्या है। कबंध उसे जवाब देता है कि वह एक राक्षस है और उसका धर्म अहंकार को दृढ़ करना है। उसने कहा कि वह उसे छोड़ देगा जो भगवान श्रीराम का स्वरूप है।

हनुमान कबंध के बारे में और बेहतर जानने के लिए उससे विस्तृत बातचीत करते हैं। इसके पश्चात हनुमान ने कबंध को युद्ध के लिए मुक़ाबला करने का प्रस्ताव दिया। हनुमान और कबंध के बीच हुए युद्ध में हनुमान ने अपनी भयंकर शक्ति दिखाई और उसने उसके दोनों हाथ और एक पैर को काट दिया।

इस रूप में कबंध बिना उसकी कुछ शक्तियों के लड़ नहीं सकता था। हनुमान कबंध के प्राण लेने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन प्राण लेने से पहले उसने कबंध के मुंह से सुना कि राम कौन है और उसके बारे में जानने की इच्छा की है। यह सुनकर कबंध ने अपने अपने अंतिम शब्दों में हनुमान को बताया कि राम सबके श्रेष्ठ और परम आत्मा हैं, और उनका ध्यान और भक्ति सबके लिए मोक्ष का साधन है।

कबंध की मृत्यु के बाद, हनुमान ने उसके पूरे शरीर को आग के समान जला दिया। यह भगवान राम के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास था, क्योंकि उसने राक्षसों के संगठन में दंगा मचाया था और उनका सर्वनाश किया था। इस तरह, कबंध रामायण के कथा में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पात्र के रूप में प्रस्तुत होता है, जो हनुमान के पाठकों को राम के महान गुणों का अनुभव कराता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.