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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : शूर्पणखा का खर-दूषण के पास जाना। खर दूषण का वध।रावण द्वारा शिव ताण्डव स्तोत्र की रचना

रामायण : Episode 30

शूर्पणखा का खर-दूषण के पास जाना। खर दूषण का वध।रावण द्वारा शिव ताण्डव स्तोत्र की रचना

राम लक्ष्मण से तिरस्कृत शूर्पणखा अपने भाईयों खर और दूषण के पास जाती है। उन्हें झूठी कथा सुनाकर भड़काती है। खर दूषण राम लक्ष्मण को मारने और सीता को उठा लाने के लिये चौदह दानवों को भेजते हैं। राम लक्ष्मण पहले से सावधान हैं। राम केवल एक बाण से सभी दानवों का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। यह समाचार सुनकर खर दूषण पूरी सेना के साथ आक्रमण करते हैं। राम लक्ष्मण को सीता की सुरक्षा हेतु कुटिया में रहने को बोलकर अकेले युद्ध करने जाते हैं। युद्धक्षेत्र में राम का सामना खर दूषण से होता है। वे युद्ध को तत्पर होते हैं तभी उनके मानस में महर्षि अगस्त्य आते हैं और उनसे कहते हैं कि ये दानव कपट युद्ध करने वाले हैं। इनपर विजय पाने के लिये वे ऋषि विश्वामित्र द्वारा प्रदत्त मोहिनी अस्त्र का प्रयोग करें। राम मोहिनी अस्त्र चलाते हैं। अस्त्र के प्रभाव से दानवों की सेना को अपने बीच राम ही राम दिखने लगते हैं और वे राम के भ्रम में अपने ही साथियों से लड़ने लगते हैं। देखते ही देखते पूरी दानव सेना आपस में लड़ मरती है। दूषण मोहिनी अस्त्र प्रभाव को खत्म करने के लिये राम पर आक्रमण करता है लेकिन मारा जाता है। भाई को मरता देखकर खर राम पर मायावी अस्त्र शस्त्र चलाता है। उसके हर वार को विफल कर राम उसे भी मार देते हैं। यह देखकर भयभीत शूर्पणखा वहाँ से भाग निकलती है। उधर लंका में रावण अभिनन्दन गीत के बीच अपनी राजसभा में आता है और सिंहासन पर बैठता है। शनिदेव बन्दी बन उसके पैरों के नीचे दबे दिखायी पड़ते हैं। नर्तकियाँ उसका गुणगान कर नृत्य प्रस्तुत करती हैं। रावण ने तपस्या में ब्रह्मा को शीश काट कर चढ़ाने से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया है। देवासुर संग्राम में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र रावण के गले तक पहुचता है लेकिन उसकी वक्र दृष्टि से घबड़ाकर लौट जाता है। एक दिन रावण भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित उठा लेता है। तब शिव रावण की इस दम्भपूर्ण भक्ति पर मुस्कुराते हुए अपने एक पैर से कैलाश पर्वत पर थोड़ा दबाव देते हैं। रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब जाता है। रावण तत्काल शिव ताण्डव स्त्रोत की रचना कर शिव स्तुति करता है। भोले बाबा प्रसन्न होते हैं और रावण के हाथ को मुक्त कर उसे अपनी अविनाशी चन्द्रहास तलवार प्रदान करते हैं। राजसभा में रावण का गुणगान समाप्त होता है। तभी शूर्पणखा दुहाई देते हुए भाई रावण की सभा में पहुँचती है। रावण उसके आने का प्रयोजन पूछता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Kumbhakarna - कुम्भकर्ण

कुम्भकर्ण एक प्रमुख पाताल लोक का राक्षस है जो 'रामायण' के महाकाव्य में महत्वपूर्ण रोल निभाता है। वह रावण के भाई थे और शुरपणखा, खर, दूषण, विभीषण और मेघनाद का भी बड़ा भाई थे। कुम्भकर्ण का नाम 'कुम्भ' और 'कर्ण' से मिलकर बना है, जो उनके विशाल और शक्तिशाली कानों को दर्शाता है। उनका शरीर भी विशाल और बलशाली होता है, जिसे स्वर्णमय रंग में वर्णित किया गया है। वे एक बहुत बड़े वनमार्ग में वास करते थे और अपने भयानक रूप के कारण लोग उन्हें डरावना मानते थे।

कुम्भकर्ण अत्यंत भूखा और प्यासा राक्षस था। उनकी भूख इतनी थी कि उन्हें रोज़ाना हज़ारों मांस खाने की आवश्यकता होती थी। वह अपनी बड़ी और शक्तिशाली मानसिकता के कारण रावण के सबसे भरोसेमंद साथी माने जाते थे। युद्ध के समय उनकी शक्ति और सामर्थ्य का प्रमाण दिखाया जाता है जब वे श्रीराम के सैन्यसमूह को भयभीत करने के लिए एक अद्भुत मारने वाली साधना का उपयोग करते हैं।

कुम्भकर्ण एक दिन बिना सोते ही जीवन बिताने वाले राक्षस थे। उन्हें बार-बार जागना होता था, क्योंकि उनकी नींद केवल एक दिन के लिए होती थी। उनकी नींद को तोड़कर भी बस वे सभी नामधारी और भयभीत होते थे।

कुम्भकर्ण का महत्वपूर्ण संबंध रामायण के लंका युद्ध के समय होता है। श्रीराम और उनके भक्तों का लक्ष्मण ने उन्हें मारने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने एक दुर्गम और मजबूत सभ्यता उपयोग करके उन्हें हराने का प्रयास किया। लेकिन कुम्भकर्ण की भयंकरता और उनकी अद्भुत शक्ति ने उन्हें अच्छी तरह से सजग रखा। इसके बावजूद, लक्ष्मण ने बाण चलाकर उन्हें मार दिया और उनकी मृत्यु हो गई।

कुम्भकर्ण को एक पुरानी प्रतिज्ञा के कारण अवश्य पूछा जाना चाहिए। किंतु यह भी सत्य है कि वे अपनी बड़ी और दुःखद भूल की वजह से रावण के साथ ठंडे में नहीं रह सकते थे। उन्होंने श्रीराम के द्वारा मारे जाने की प्रतिज्ञा भी ली थी, जिसका वे पालन करते हुए लंका युद्ध में लड़े।

कुम्भकर्ण का चरित्र रामायण के महानायकों के चरित्र से बिल्कुल अलग है। वे बुद्धिमान नहीं थे, लेकिन उनका भाई विभीषण उन्हें एक विद्वान और बुद्धिमान बनाने का प्रयास किया। उन्होंने कभी-कभी अपनी मतभेदों के कारण रावण के साथ तकरार की, लेकिन उनकी श्रद्धा और अनुयायी स्वभाव ने उन्हें हमेशा लंका के प्रमुख राक्षस के रूप में बनाए रखा।

आमतौर पर, कुम्भकर्ण को कठिनाईयों का प्रतीक और अपरिहार्य दुष्प्रभावी शक्ति के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है। उनकी प्रतिभा को नियंत्रित करने में उन्हें विफलता का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने रामायण के कई प्रमुख पलों में आपूर्ति दी। उनकी प्रतिभा और बल ने उन्हें एक महत्वपूर्ण चरित्र बनाया है, जो रामायण के युद्ध के पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण रोल निभाता है।

कुम्भकर्ण एक राक्षस के रूप में भयानक और प्रभावी थे, लेकिन उनकी अन्तरात्मा में एक मनःपूर्वक और आदर्शवादी पुरुष छुपा था। वे राक्षसों के बारे में ज्ञानी और संवेदनशील थे और इसलिए रामायण के प्रमुख पात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण संबंध देखने को मिलता है।

यद्यपि कुम्भकर्ण का भूमिका रामायण के कहानी में संक्षेप में है, लेकिन उनका महत्व विस्तृत रूप से प्रकट होता है। उनकी भयानक सौंदर्यता, अद्भुत शक्ति, और मनोहारी विचारधारा ने उन्हें एक प्रमुख चरित्र बनाया है, जिसका प्रभाव रामायण के प्रमुख घटनाओं पर दिखाई देता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.