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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : मुनि सुतीक्ष्ण की हरि भक्ति। महर्षि अगस्त्य की महिमा का बखान

रामायण : Episode 28

मुनि सुतीक्ष्ण की हरि भक्ति। महर्षि अगस्त्य की महिमा का बखान

उर्मिला का त्याग अपूर्व है। वो प्रतिदिन लक्ष्मण की याद में देवी मन्दिर में दीप जलाती हैं। मानों यह दीप उनके मन की विरह अग्नि से जलता है। राम लक्ष्मण सीता दण्डकारण्य में पहुँचते हैं। यहाँ उन्हें हड्डियों का ढेर दिखता है। वन में असुर ऋषियों मुनियों का भक्षण कर उनकी हड्डियाँ फेंक देते हैं, उससे यह ढेर लगा है। राम ऋषियों को विश्वास दिलाते हैं कि वे और लक्ष्मण दण्डकारण्य को असुरी शक्तियों से मुक्त करायेंगे। वे दण्डकारण्य में स्थित साधु आश्रमों में घूम घूमकर वहाँ आक्रमण करने वाले असुरों का वध करने लगते हैं। उधर माता कौशल्या के दस साल राजमहल के झरोखे से राम का रास्ता देखते देखते बीत जाते हैं। एक दिन नदी के तट पर राम अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि आगे की यात्रा में उन्हें बहुत सिद्ध ऋषि मुनि मिलने वाले हैं और उनसे काफी कुछ सीखने को मिलेगा। ऐसा ही होता है। वे वन पथ पर पड़ने वाले हर आश्रम में साधु वचन सुनते हैं। उनसे जीवन दर्शन की अनेक गूढ़ बातें सीखते हैं। राम लक्ष्मण सीता महर्षि अगस्त्य के वनक्षेत्र में पहुँचते हैं। यहाँ एक कुटिया में मुनि सुतीक्ष्ण ध्यान लगाये बैठे हैं। राम उनके हृदय में विराजमान भगवान विष्णु की छवि देख लेते हैं। राम सुतीक्ष्ण जी को प्रणाम करते हैं लेकिन सुतीक्ष्ण जी जान लेते हैं कि स्वयं भगवान विष्णु मानव रूप में उनके समक्ष खड़े हैं। वे भक्तिभाव से अपने प्रभु के चरणों में झुक जाते हैं। राम उनसे अगस्त्य महर्षि से मिलने की इच्छा व्यक्त करते हैं। सुतीक्ष्ण जी उन्हें महर्षि के आश्रम को ले जाते हैं। महर्षि अगस्त्य का आभा पुंज उनकी कुटिया के बाहर से परिलक्षित होता है। सीता इसे देखकर अचम्भित हो जाती हैं। तब राम उन्हें महर्षि अगस्त्य की आध्यात्मिक शक्ति का बखान करते हुए बताते हैं कि एक बार तमाम असुर समुद्र के भीतर छिप जाते हैं तब देवराज इन्द्र के कहने पर महर्षि अगस्त्य ने पूरे समुद्र को अपनी अंजलि में भरकर पी लिया था और इन्द्र वहाँ छिपे असुरों पर प्रहार कर उन्हें मार सके थे। राम बताते हैं कि एक बार विध्यांचल पर्वत ने दम्भपूर्वक अपना आकार बड़ा करके सूर्य का मार्ग रोक दिया था तब महर्षि अगस्त्य ने विध्यांचल को अपने चरणों से दबा दिया था। इसी कारण उनका नाम अगत्स्य पड़ा था। राम आगे बताते हैं कि भगवान शिव का विवाह देखने के लिये सभी शक्तियां और जीवराशियां उत्तर दिशा में आ गयी थीं। इससे धरती का सन्तुलन बिगड़ गया था। तब शिव जी के कहने पर महर्षि अगस्त्य विध्यांचल पार करके दक्षिण में चले गये थे। अकेले उनके वहाँ जाने से धरती का सन्तुलन पुनर्स्थापित हो गया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि अगस्त्य को तमिल भाषा का ज्ञान दिया था। अगस्त्य ने तमिल की व्याकरण तैयार कर इसे विश्व की श्रेष्ठ भाषा बनाया। अगस्त्य ही ब्रह्मा को प्रसन्न कर कावेरी नदी को ब्रह्मलोक से दक्षिण भारत की धरती पर लेकर आये थे। तब से कावेरी धरती पर गंगा के समान पूज्यनीय नदी के रूप में बह रही हैं। सुतीक्ष्ण मुनि अपने गुरुदेव के बारे में राम के व्याख्यान का समर्थन करते हैं। रामायण एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो इसी नाम के प्राचीन भारतीय संस्कृत महाकाव्य पर आधारित है। यह श्रृंखला मूल रूप से 1987 और 1988 के बीच दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vishwamitra - मुनि विश्वामित्र

मुनि विश्वामित्र रामायण में एक महत्वपूर्ण चरित्र हैं। वह एक प्राचीन ऋषि थे और महाराज जनक के दरबार में राजगुरु के रूप में सेवा करते थे। विश्वामित्र ऋषि की खासता थी, वे बहुत ही तेजस्वी थे और शक्तिशाली तपस्वी ऋषि माने जाते थे। उन्होंने अपने तपस्या के बाल परमेश्वर से इतना वरदान प्राप्त किया था कि वे दैत्यों और राक्षसों को भी चुनौती दे सकते थे।

विश्वामित्र का जन्म एक राजपुरोहित के घर में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही ध्यान और तपस्या में रत थे। उनकी मां ने उन्हें धर्म, त्याग, और सत्य के महत्व के बारे में शिक्षा दी थी। विश्वामित्र ने अपनी मां की शिक्षा का पालन किया और उन्होंने ऋषि बनने का संकल्प बना लिया।

विश्वामित्र की शक्तियों और तपस्या के बारे में सबको ज्ञान हो गया था। एक बार वे राजा जनक के यज्ञ को नष्ट करने वाले राक्षस तड़का के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए देखे गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया और तड़का को पराजित कर दिया। इसके बाद से विश्वामित्र की मान्यता और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

विश्वामित्र को एक और महत्वपूर्ण कार्य देने के लिए राजा जनक ने उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया। वह कार्य था स्वयंवर में धनुष तोड़ने का। स्वयंवर में शानदा नामक देवी धनुष उठाने वाले वीर श्रीराम को अपनी पत्नी बनाने का प्रतिश्रवण किया गया था। विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ स्वयंवर में गए और वहां उन्होंने राम को धनुष तोड़ने के लिए प्रेरित किया। राम ने धनुष तोड़ दिया और शानदा को जीता लिया। यह घटना विश्वामित्र के लिए बहुत गर्व की बात थी।

विश्वामित्र के पश्चात् राम को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने का निमंत्रण मिला। राम और लक्ष्मण ने उसे स्वीकार कर लिया और वे विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में गए। आश्रम में विश्वामित्र ने राम को वेद, धर्म, युद्ध, और अन्य ज्ञान की शिक्षा दी। राम ने उनकी शिक्षा को गहराई से समझा और उनके मार्गदर्शन में उनका आदर्श बनाया।

विश्वामित्र के साथ बिताए दिन राम और लक्ष्मण के लिए अनुभवमय और सीखदायक रहे। विश्वामित्र ने उन्हें विभिन्न राक्षसों और दुष्ट शक्तियों से लड़ने की कला सिखाई और उन्हें योग्यता और धैर्य के साथ लड़ाई लड़ने का अभ्यास कराया। विश्वामित्र की मार्गदर्शन में राम ने अनेक दुष्ट राक्षसों को विजयी किया और उनकी शक्तियों को नष्ट किया।

विश्वामित्र राम को न शिर्षासन की कला, न सचेतता, और नींद के समय कौन से आश्रय स्थल में सोना चाहिए, जैसे की तपस्या के दौरान आपको ध्यान और सचेत रहना चाहिए। विश्वामित्र ने राम को अनेक उपयोगी वरदान दिए जैसे की ब्रह्मास्त्र और शक्ति अस्त्र।

मुनि विश्वामित्र रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं और उनका चरित्र विशेष रूप से उनकी शक्तियों, तपस्या और गुरुत्व के कारण प्रमुख बन गया है। उनकी सीख और मार्गदर्शन से राम ने अनेक संघर्षों का सामना किया और अद्वितीय वीरता प्रदर्शित की। विश्वामित्र का परिचय महारामायण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उनका चरित्र धर्म, त्याग, और सत्य के मार्ग का प्रतिष्ठान करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.