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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन

रामायण : Episode 16

श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन

जैसे सीता अपना पत्नी होने का धर्म निभाती हैं, उर्मिला भी लक्ष्मण संग जाने का हठ करती हैं। लेकिन लक्ष्मण उन्हें माता कौशल्या की सेवा के लिये अयोध्या में रूकने के लिये समझाते हैं और उससे वचन लेते हैं कि वो दिल में बसने वाली छवि के साथ उन्हें वन के लिये विदा करेंगी। लक्ष्मण जानते हैं कि इतिहास में उर्मिला का यह बलिदान अकथ ही रहने वाला है। प्रजा के बीच राम वनगमन के पीछे कैकेयी और भरत की मिलीभगत होने की चर्चा है। गुरूमाता द्वारा कैकेयी को समझाने का प्रयास भी विफल रहता है। वो कैकेयी को सौतेली माँ का पर्याय न बनने की सीख देती है लेकिन कैकेयी की बुद्धि नहीं बदलती। राम लक्ष्मण व सीता वनगमन के लिये पिता की आज्ञा लेने पहुँचते हैं। दशरथ राम से राजविद्रोह कर उनसे राज्य छीन लेने को कहते हैं। राम इसे नीतिविरूद्ध बताते हैं तो दशरथ मन्त्री सुमन्त को सारा राजकोष और सेना राम के साथ वन भेजने को कहते हैं। इस पर हस्तक्षेप करते हुए कैकेयी राम को तापस वेश में वन जाने को कहती है। मंथरा भगवा वस्त्र लाकर देती है। इससे आहत मंत्री सुमन्त भी विद्रोह की भाषा बोलते हैं। तब राम उन्हें शान्त करते हैं और कैकेयी के हाथों से मुनि वस्त्र ग्रहण करते हैं। कैकेयी सीता को भी तपस्वी वस्त्र देती हैं। तब महर्षि वशिष्ठ कैकेयी पर रूष्ट होकर आज्ञा देते हैं कि सीता वन में राजसी ठाठ के साथ रहेंगी क्योंकि वो राजा दशरथ के वचन से बंधी हुई नहीं हैं। तब सीता ससुर और गुरू से क्षमा मागते हुए अपना स्त्री धर्म निभाने की इच्छा प्रकट करती हैं। मंथरा सीता को भगवा वस्त्र पहनाने आती है और कुटिलतापूर्वक उनसे समस्त राजसी वस्त्र और आभूषण उतारने को कहती हैं लेकिन गुरूमाता आभूषण उतारने को अपशगुन बताती हैं और सीता को रोक देती हैं। सीता आभूषणों के साथ भगवा वस्त्र धारण करती हैं। राजा दशरथ सीता को जोगन वेश में देखकर विचलित हैं। वे बारम्बार उन्हें रोकते हैं। उनके पिता जनक को दिये अपने वचन की दुहाई देते हैं। स्थिति हाथ से निकलने की आशंका में कैकेयी राम से तत्काल राजमहल छोड़ने को कहती हैं। दशरथ पीछे से सुमन्त को भेजते हैं ताकि वो राम को रथ पर ले जायें और कुछ दिन वन में रहने के बाद समझाबुझा कर वापस ले आयें। राजमहल के बाहर उपस्थित जन समूह राजा दशरथ के विरूद्ध विद्रोह का नारा लगाता है। राम के समझाने पर प्रजा शान्त तो होती है लेकिन राम के रथ के पीछे पीछे वन को चल देती है। राम का रथ नगर से निकलता है। दशरथ राम राम पुकारते बाहर निकलते हैं और धरती पर गिर पड़ते हैं। वो कैकेयी का परित्याग करने का ऐलान करते हैं और भरत के राजा बनने पर उससे तर्पण का अधिकार छीन लेने की बात कहते हैं। राम वनगमन से हर किसी की आँख में आँसू है लेकिन राज महल में एक उर्मिला ही ऐसी है जो रो भी नहीं सकती। आखिर वो अपने पति को दिये वचन से बंधी है। उसका त्याग पूरी रामायण में अकथ ही रह गया है। नगर से बाहर तमसा नदी के निकट पहुँचने पर राम प्रजाजन से वापस लौटने का निर्देश देते हैं। प्रजा उनकी बात का पालन नहीं करती।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Hanuman`s Mother - हनुमान की मां

हनुमान जी, भगवान श्री राम के भक्त और सेवक, एक प्रमुख पात्र हैं जो महाकाव्य रामायण में प्रमुखता से प्रदर्शित हुए हैं। हनुमान जी को माता अंजनी ने जन्म दिया था, जो एक आदिवासी महिला थीं। हनुमान जी की माता जी का नाम अंजना था। माता अंजना ने विनायक पूजा करके ईश्वर की कृपा प्राप्त की थी और तब ही हनुमान जी को अपने गर्भ में धारण किया था। इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।

हनुमान जी की माता अंजना बहुत ही भक्तिमय और पवित्र महिला थीं। वे वानर राजा केशरी की पत्नी थीं। माता अंजना ब्रह्मा जी की आशीर्वाद से हनुमान जी को धारण करने का भाग्य प्राप्त की थीं। उनकी पूजा-अर्चना विशेष थी और वे सदैव भगवान शिव की अर्चना करती थीं। एक दिन जब वे शिव जी की पूजा कर रही थीं, तो वायुदेवता के आवाज से उन्हें बताया गया कि उन्हें हनुमान जी को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह सुनकर अंजना ने अत्यंत आ नंदित होकर अपने गर्भ में हनुमान जी को धारण किया।

हनुमान जी के जन्म के समय केरल के वनों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा की गई। हनुमान जी ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भगवान श्री राम की सेवा में बिताया। हनुमान जी ने राम भक्ति के लिए विशेष योगदान दिया और रामायण के महाकाव्य में अपने साहस, शक्ति और नीतिशास्त्र के अद्भुत ज्ञान के आधार पर अपनी महिमा प्रकट की।

हनुमान जी की माता अंजना ने अपने बेटे को धारण करके उसे स्वर्णिम वर्षा वल्लरी नदी में स्नान कराया था, जिससे हनुमान जी को अद्भुत बल, प्रतिभा और बुद्धि प्राप्त हुई। उनकी विद्या और ब्रह्मचर्य ने उन्हें अन्य सभी वानरों से अलग बना दिया। हनुमान जी ने बचपन से ही विद्या और अद्भुत शक्ति का संचार किया और अपनी माता अंजना की कृपा से हर कठिनाई को सुलझा दिया।

इस प्रकार, हनुमान जी की माता अंजना ने अपनी भक्ति और प्रेम से अपने बेटे को पाला और उन्हें देवताओं की अनुग्रह से भगवान राम की सेवा में भेजा। हनुमान जी ने रामायण में अपने अद्भुत कारनामों के माध्यम से भगवान श्री राम की सेवा की और उनकी विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे माता अंजना के प्रेम और आदर्शों के प्रतीक हैं और हिंदू धर्म में उनकी पूजा विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.