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रामायण में Bharata - भरत की भूमिका

Bharata - भरत

रामायण, वेद व्यास द्वारा रचित एक महाकाव्य है जो दुनियाभर में मान्यता प्राप्त है। यह काव्य आदिकाव्य के रूप में जाना जाता है और राम-लक्ष्मण-सीता की कथा को बताता है। रामायण में विभिन्न महान पात्रों की उपस्थिति होती है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र है भरत। भरत रामचंद्र जी के चारों भाइयों में से एक है और काव्य के चरित्रों की महत्ता को दर्शाने वाले अहम पात्रों में से एक है।

भरत का वर्णन करते समय, उसके भावुक और नरम हृदय की गुणवत्ता का उल्लेख किया जाता है। वह एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजकुमार है, जिसे अपनी माता की और उसके पिता की उपासना करने की गहरी इच्छा होती है। भरत को अपने भाइयों के लिए गहरा प्रेम होता है और उन्हें राजसी ताज के लिए वापस आने की प्रार्थना करता है। उसका उदात्त और विनम्र स्वभाव उसे दूसरों की भलाई के लिए समर्पित बनाता है।

भरत को उनके पिता का आदर्श राजा के रूप में देखा जाता है। उसे राज्य प्रशासन की कला का बहुत अच्छा ज्ञान होता है और वह धर्मप्रियता, न्याय, और न्याय की आदान-प्रदान को प्रमाणित करता है। भरत का राजधर्म के प्रति आदर्श और समर्पण उसे एक महान शासक के रूप में स्थानांतरित करता है।

भरत का विचारशील और धार्मिक स्वभाव उसे एक महान पुरुष के रूप में प्रमाणित करता है। वह अपने भ्राताओं की नरमता और भगवान राम की प्रेमपूर्ण भूमिका को समझता है और उन्हें सम्पूर्ण भरोसा देता है। भरत के लिए परिवार का महत्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है और वह अपने पिता के साथ जीने का व्रत लेता है।

भरत को उनके भाइयों की उपस्थिति के बिना कोई सुख नहीं मिलता है। उनके विदेशी वनवास के दौरान, भरत अपने भाइयों की वापसी की इच्छा को पूरा करने के लिए अग्नि की उपासना करता है और उन्हें अपने पाद प्रणाम करता है। उनका विश्वास है कि राजसी ताज सिर्फ उनके भाइयों के चरणों में ही स्थान पाता है और वह इसे धर्मप्रियता के प्रतीक के रूप में देखता है।

भरत को राज्य के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए भी प्रस्तुत किया जाता है। उन्हें राम की अभावित राज्य-आपूर्ति को पूरा करने के लिए प्रबंध करना पड़ता है और वह अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा को एक तरफ रखकर राज्य की भलाई के लिए कार्य करता है। भरत को अपनी उच्चतम सामर्थ्य के कारण प्रशासनिक कुशलता का बहुत अच्छा ज्ञान होता है और वह अपनी विश्वासयोग्यता को प्रमाणित करता है।

भरत को रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसका प्रेम, भक्ति, और धर्मानुसार आचरण सभी के द्वारा प्रशंसा किया जाता है। उसकी उपस्थिति रामचंद्र जी के लिए महत्वपूर्ण होती है और उसके धर्मप्रिय और न्यायप्रियता के गुणों को प्रशंसा करती है। उसके संयमित और समर्पित चरित्र को देखकर लोग उसे एक प्रेरणादायक उदाहरण मानते हैं।

Bharata - भरत - Ramayana

जीवन और पृष्ठभूमि

प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक महाकाव्य रामायण में भरत की जीवन और पृष्ठभूमि का वर्णन किया गया है। भरत श्रीराम के चहेते भाई थे और उनके प्रिय राज्य कौशल्या के पुत्र थे। उनका जन्म अयोध्या में हुआ था और उनका बचपन राजदरबार में बिता। भरत की माता कौशल्या एक स्त्रीलक्ष्मी की भाँति प्रतिष्ठित थीं और उनके पिता दशरथ एक धर्मात्मा राजा थे। भरत के जीवन में एक विशेष महत्वपूर्ण पल हुआ, जब उनके भाई राम चंद्र अयोध्या के राजा बनने के लिए निर्विघ्न रूप से प्रस्थान करने जा रहे थे। जब भरत को पता चला कि राजा दशरथ ने राम को अपने प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया है, उन्होंने अपने माता को साथ लेकर केकय नगरी में प्रवेश किया, जहां उनकी मां के भाई कैकेयी राजमहल में वास कर रही थी। कैकेयी ने अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए राजा दशरथ से यह प्रार्थना की कि उनके पुत्र भरत को अयोध्या का राज्य दिया जाए और राम को वनवास भेज दिया जाए। इस प्रस्ताव को राजा दशरथ ने मान लिया और राम को वनवास के लिए बुलाया। राम के अपने प्रस्थान के बाद, भरत आयोध्या वापस लौटे और उन्होंने यह सब सुनकर दुख की अवस्था में प्रवृत्त हुई। उन्होंने जोश, प्रामाणिकता और न्याय की मांग की और राजा दशरथ की मृत्यु के कारण उनके पास आए। भरत ने दशरथ की अंतिम संस्कार की व्यवस्था की और उनकी अभिनंदन समारोह का आयोजन किया। भरत को अयोध्या का राज्य स्वीकार करने के लिए उनके प्रिय भाई राम का आशीर्वाद प्राप्त करना था। उन्होंने राम को वनवास की अपील पर विचार किया, जिससे राजा दशरथ का वचन पूरा होता है। भरत ने राम का अनुसरण किया और उन्हें वन में पहुंचते ही दंडवत प्रणाम किया। भरत ने राम को कहा कि उन्हें अयोध्या लौटकर राज्य सम्पादित करना चाहिए, क्योंकि यही उनका सच्चा स्वभाव है। राम ने भरत के मनोरथ को समझा और उन्हें अयोध्या के राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी। भरत ने राम की ख़ुशी के लिए नंदिग्राम के बाहर में राजसभा आयोजित की, जहां वे राजा के रूप में भरत का सम्मान करेंगे। भरत ने सात दिन तक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी आराध्य देवताओं का पूजन किया और अयोध्या के निवासियों को धार्मिक और सामाजिक उपकरण प्रदान किए। भरत ने राम के जूते को एक सिंहासन पर रखा और यह ठान ली कि वे चार दिनों तक अपने पादचार्यों के साथ जूता की पूजा करेंगे। भरत ने राम को वनवास से वापसी के लिए निमंत्रण दिया और राम ने आश्वासन दिया कि वनवास के अंत में वे अयोध्या लौटेंगे। भरत ने राम को उनकी माता के पास वापस ले जाने का अनुरोध किया, जिससे उनकी माता की मुक्ति हो सके। भरत का जीवन और पृष्ठभूमि रामायण में गौरवपूर्ण रूप से वर्णित किया गया है। उनका प्रेम, आदर्शता और राजभक्ति राष्ट्र के लोगों के द्वारा सराहा गया है। भरत को अपने भाई राम के प्रति अनुराग और वचनबद्धता के लिए प्रशंसा मिली है, जो उन्हें एक उत्कृष्ट और महान चरित्र का दर्जा प्रदान करता है।


रामायण में भूमिका


गुण

भरत रामायण में एक प्रमुख पात्र है और भगवान राम के चहेते भाई के रूप में जाना जाता है। उनकी आकारिक और गुणों की विशेषताएँ उन्हें एक उत्कृष्ट और प्रशंसनीय पात्र बनाती हैं। भरत रामायण में अपने शौर्य, न्यायप्रियता, भक्ति, निष्ठा, और प्रेम के लिए प्रसिद्ध हैं।

भरत को आकार में उच्च और आकर्षक वर्णन किया गया है। वे राम और लक्ष्मण के समान हृदय और मानसिक गुणों के साथ प्राकृतिक रूप से भी सुंदर हैं। उनका वर्णन मांसल और सुदर्शन आंखों, लंबे और घने केशों, सुंदर मुख और दिव्य तेजस्वी सूर्य के समान चेहरे के साथ किया गया है। उनके सुंदर चेहरे पर दिव्यता और शांति का आभास होता है।

भरत का वेशभूषा-सामग्री का वर्णन भी रामायण में मिलता है। वे हमेशा राजा दशरथ के प्रियतम पुत्र राम के अपमान और विदेश वास के कारण वेदी में संगठित होने वाले सदस्यों के साथ रहते थे। भारत का वस्त्र समृद्ध और आनंदमय था। वे हमेशा उच्च-वर्गीय परिधान पहनते थे और उनकी वेशभूषा वैभवपूर्ण और आकर्षक थी।

भरत के गुणों की विशेषताएँ भी रामायण में चित्रित की गई हैं। उन्हें सत्यनिष्ठा, त्याग, और संयम का प्रतीक कहा गया है। भरत धर्म-निष्ठा और कर्तव्य-परायणता के प्रतीक हैं। उनकी निष्ठा और वचनबद्धता को कोई भी चुनौती नहीं पा सकती है। उन्होंने राम राज्याभिषेक के पश्चात राम के पादुकाओं को अग्नि के भय से अपने राज्य की सदाबहार सिंहासनों पर रख दिया था। इससे भरत की निष्ठा, सेवाभाव, और भक्ति का प्रतीकत्व प्रकट होता है।

भरत रामायण में एक प्रमुख पात्र होने के साथ ही एक अन्य महत्वपूर्ण पात्र भी हैं। उन्होंने राम की अभावानुभूति को महसूस किया और उनके अभाव में भरत ने उनके पादुकाओं का पूजन किया। भरत की भक्ति और प्रेम ने राम को गहरी भावनाओं से प्रभावित किया और उन्हें उनके धर्म के पालन में स्थिरता और सफलता प्रदान की। भरत ने राज्य के पश्चात सीता जी को भी प्राप्त किया और उनके पास लाए जाने पर उन्हें प्रेम से स्वागत किया। इससे भरत का प्रेम, सम्मान, और संयम प्रकट होता है।

भरत रामायण में एक आदर्श पात्र हैं जो अपनी पारिवारिक परम्परा और कर्तव्यों के प्रतीक हैं। उनके प्रामाणिकता, न्यायप्रियता, और सच्चाई का पालन उन्हें एक महान और श्रेष्ठ पात्र बनाता है। भरत की पारिवारिक परम्परा, आदर्शवाद, और नैतिकता की मिसाल रामायण में उपस्थित होती है। उनकी सदाचार, आदर्शवाद, और निष्ठा के कारण ही उन्होंने राजा दशरथ के अधिकार में नहीं आए और राम का राज्य सुनिश्चित किया।

भरत रामायण में अपनी उत्कृष्टता, गुणवत्ता, और परिवार प्रेम के लिए प्रसिद्ध हैं। वे एक सामरिक योद्धा थे, लेकिन उनकी मानसिकता और सौहार्दपूर्ण स्वभाव उन्हें एक अत्यधिक और प्रशंसनीय पात्र बनाते हैं। भरत ने राम की अभावानुभूति में भी उनका साथ दिया और राजसभा को प्रशंसा की। उनका प्रेम, समर्पण, और सेवा-भाव उन्हें एक उत्कृष्ट और आदर्श पात्र बनाते हैं।

सम्पूर्ण रूप से कहें तो, भरत रामायण में एक प्रशंसनीय पात्र हैं जिनकी आकारिक और आदर्शता की विशेषताएँ उन्हें अन्य पात्रों से अलग बनाती हैं। भरत का वर्णन उनकी सुंदरता, वेशभूषा, और भक्ति के साथ संपन्न है। उनके गुणों में न्यायप्रियता, सच्चाई, समर्पण, और परिवार प्रेम की विशेषताएँ शामिल हैं। भरत रामायण का एक महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय पात्र हैं जो अपने गुणों और परम्परागत मूल्यों के लिए प्रसिद्ध हैं।


व्यक्तिगत खासियतें

रामायण में भरत के व्यक्तित्व के विषय में बात करते हैं, तो उन्हें एक बहुत ही प्रशंसित और आदर्श माना जाता है। भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न के बाद अयोध्या के प्रियतम पुत्र थे। उनका व्यक्तित्व नीतिशास्त्र, त्याग, शीलता, और प्रेम से परिपूर्ण था। उन्होंने बहुत अच्छे गुणवत्ताओं के लिए प्रसिद्ध होने का अवसर पाया और राजधानी के रूप में पूरे उदारवादीता और न्यायपूर्वक आचरण के कारण प्रशंसा प्राप्त की।

भरत का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण उनकी नीतिशास्त्रज्ञता थी। उन्होंने अपने गुरु ऋषि वाशिष्ठ के द्वारा दिए गए उपदेशों को सदैव ध्यान में रखा और उनका पालन किया। वह वाणी पर पूरी नियंत्रण रखते थे और अपने शब्दों को सोच-विचार करके उचित रूप से प्रयोग करते थे। इसलिए, भरत की बातचीत और वक्तव्यों में सत्यता, संतोष, और आदर्शता की विशेषता थी। उनकी नीति और विवेकशीलता ने उन्हें एक न्यायप्रिय और अनुशासित राजनीतिज्ञ के रूप में प्रमाणित किया।

भरत का दूसरा महत्वपूर्ण लक्षण त्याग था। जब उन्हें पता चला कि उनके पिता राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का वासियती राजा घोषित किया है, तो भरत ने अपनी उत्साह और आदर्शवादी भावना के बावजूद राज्यपालन की इच्छा छोड़ दी और राम के पीछे न चले गए। उन्होंने अपने पिता के कथित अंतिम इच्छाओं का पालन करने के लिए कोशिश की और अयोध्या को राम के राज्याभिषेक से पहले वापस दिया। इससे भरत का त्यागपूर्ण और निष्ठापूर्ण व्यवहार प्रकट हुआ और उन्हें सर्वोच्च प्रेम की प्रतीक्षा में अपना धर्मपरायण करना पड़ा।

भरत का तीसरा महत्वपूर्ण लक्षण शीलता था। वह एक आदर्श भ्राता के रूप में प्रतिष्ठित हुए और राज्याभिषेक के बाद भी राम के जीवन और आदर्शों का पालन किया। भरत को अपने भाई राम के प्रति गहरी आस्था थी और उनके संगठनशील और विश्वसनीय नेतृत्व में उन्हें भरोसा था। उनका व्यवहार हमेशा सद्भावपूर्ण, मधुर और समझदार रहा। वह अपने भाई के प्रति पूर्ण समर्पण और सेवाभाव दिखाते थे और राम के दूसरे रूप भी थे।

भरत का चौथा महत्वपूर्ण लक्षण प्रेम है। वह अपने पिता, भाई, और परिवार के प्रति गहरा प्यार और स्नेह रखते थे। उन्होंने राम को उच्च सम्मान प्रदान किया और उन्हें अपने दिल का एक अटूट हिस्सा माना। वह भरोसेमंद और संवेदनशील व्यक्ति थे और राम के प्रति अपार श्रद्धा और आदर्शपूर्ण अनुराग दिखाते थे। उन्होंने अपने भाई की उपस्थिति के लिए अपने आत्मा को जलाया और राम के लौटने के बाद राज्य का प्रबंधन उन्हें सौंपा।

भरत का पांचवा महत्वपूर्ण लक्षण सामर्थ्य और नेतृत्व की क्षमता है। वह एक अच्छे नेता थे और अपने ब्राह्मण गुरु ऋषि वाशिष्ठ की सलाह पर आचरण किया। उन्होंने राम के विचारों और नीतियों का पालन करके उनके शासन को सुरक्षित और सुखी बनाया। भरत ने अपने परिवार और राज्य के हित में निरंतर प्रयास किए और उन्हें स्थिरता, समर्पण, और विश्वास दिखाए।

संक्षेप में कहें तो, भरत रामायण में एक आदर्श और प्रशंसनीय व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। उनकी नीतिशास्त्रज्ञता, त्याग, शीलता, प्रेम, और नेतृत्व की क्षमता ने उन्हें एक महान और समर्पित व्यक्ति के रूप में प्रमाणित किया है। भरत एक ऐसा चरित्र थे जिन्होंने नैतिकता, धर्म, और परिवार के महत्व की मिसाल पेश की है। उनकी प्रेरणा हम सभी को अपने जीवन में सच्चे और आदर्शपूर्ण गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।


परिवार और रिश्ते

भरत के परिवार और संबंध

रामायण, वाल्मीकि द्वारा लिखी गई हिंदी काव्य का एक महाकाव्य है, जो भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। रामायण में भरत भगवान राम के चहिते भाई और अयोध्या के अधिराजा दशरथ के चौथे पुत्र के रूप में प्रस्तुत हुआ है। यह काव्य कई विषयों पर आधारित है, जिनमें प्रेम, वफादारी, करुणा और धर्म की महत्वपूर्ण कहानियां शामिल हैं।

भरत का परिवार प्राचीन काल में एक महान राजा राजा दशरथ और रानी कौशल्या के नेतृत्व में अयोध्या में वस्तुतः समृद्ध था। भरत राजा दशरथ के और कौशल्या के छोटे पुत्र थे। राम, लक्ष्मण, और शत्रुघ्न भी उनके भाइयों में थे। भरत और राम के बीच गहरा भाईचारा था और उनके प्यार और सम्मान की भावना अद्भुत थी।

राजा दशरथ ने विवाह के बाद तीन पुत्रों को प्राप्त किया था। राम को वनवास जाने का वचन दिया गया था और उनकी पत्नी सीता और बाल संगठन लक्ष्मण उनके साथ जा रहे थे। यह घटना अयोध्या में अशोक वटिका घटना के बाद हुई, जब राम ने राजद्रोही राक्षस रावण को मार डाला। राम की वनवास उनके पिता के मृत्यु के पश्चात नींद्रापण की प्रणाली का भाग बन गई।

जब भरत ने जाना कि राम को राजघराने का अधिकार है, तो वह उन्हें पुनः अयोध्या में लौटने के लिए आमंत्रित करने के लिए गया। यहां तक कि राम की माता कौशल्या ने उन्हें राज्य का प्रशासक बनाने के लिए प्रार्थना की। भरत ने अपने भाई के पुत्र के रूप में अपना पालन किया था और वह अधिकारिक रूप से अयोध्या का आदेश पालन करने के लिए प्रतिज्ञा कर चुका था।

भरत का व्यक्तित्व महान था, और उन्होंने अपने भाई राम के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान दिखाया। वह राम की प्रेमिका और साथी सीता को भी बहन की तरह मानते थे और उनका सम्मान करते थे। भरत के परिवार के बच्चों के रूप में राम और सीता द्वारा अनुग्रहित होने पर वह अपने बाल भाइयों के लिए पिता के रूप में कार्य करने का वादा किया। उनकी शक्तिशाली और न्यायप्रिय व्यक्तित्व ने उन्हें एक प्रशंसित और प्रमुख व्यक्ति बना दिया।

भरत के परिवार में उनकी पत्नी माण्डवी, उनके द्वारा पाले गए दो पुत्र तक्ष और पुष्कल भी शामिल थे। भरत की पत्नी माण्डवी उत्कृष्ट स्त्री थी और उन्होंने अपने पति की गुणवत्ता और धर्म को पूर्णतया समझा।

समस्त रामायण कविता राम की विजय पर आधारित है, जो उनके परिवार और संबंधों को भी शामिल करती है। भरत ने अपने भाई राम के लिए प्रेम, सम्मान और सेवा की अद्भुत मिसाल स्थापित की है। उनकी पत्नी माण्डवी ने भी धार्मिक और न्यायप्रिय व्यक्तित्व का पालन किया। इस प्रकार, भरत का परिवार रामायण की यह महत्वपूर्ण कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


चरित्र विश्लेषण

प्राचीन भारतीय साहित्य में रामायण एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ है, जिसमें भारतीय संस्कृति की मूल्यों, धर्म, नैतिकता, और विचारधारा को प्रदर्शित किया गया है। रामायण के मुख्य पात्रों में से एक है भरत, जो भगवान राम के चहेते भाई थे। भरत एक प्रेमी, वफादार, और धर्मनिष्ठ चरित्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनके पात्र का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:

भरत रामायण के मुख्य किरदारों में से एक हैं, जो किसी भी परिस्थिति में धर्म का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके पिता के मृत्यु के बाद, भरत को अयोध्या के राजा के पद पर बैठाने के लिए श्रीराम द्वारा प्रश्न हुआ। हालांकि, उन्होंने यह बात कट्टरता से नापसंद कर दिया था और प्रशासन को राम को वापस लाने की अपील की। भरत के कर्तव्य के प्रति उनका आदर और भक्ति कायम थी, और उनके शब्द सदैव पवित्र और न्यायसंगत थे।

भरत का पारिवारिक व ातावरण भी उनके चरित्र को प्रभावित करता है। उन्होंने किसी भी राजनीतिक वाद-विवाद के बावजूद अपने भाई राम का समर्थन किया और उन्हें आत्मनिर्भरता और सामरिक योग्यता में विश्वास दिलाया। उनकी प्रेम-भक्ति और वफादारी ने उन्हें एक आदर्श भाई के रूप में स्थापित किया है।

भरत का धर्मनिष्ठ चरित्र भी उन्हें उत्कृष्ट बनाता है। उन्होंने अपने पिता की अंतिम इच्छा का पालन करने के लिए वनवास और राज्य संभालने की प्रणाली को नहीं छूने की निर्णय ली। उनकी विचारधारा में धर्म, कर्तव्य, समर्पण, और वचनवद्धता की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने स्वयं को स्वयंसेवक के रूप में समर्पित किया है और अपने जीवन का उद्देश्य परमात्मा की सेवा में रखा है।

भरत का पात्र रामायण में एक विशेष स्थान रखता है। उनका चरित्र वचनवादी, धर्मनिष्ठ, और विश्वासपूर्ण होने के कारण उन्होंने जनसमर्थन को प्राप्त किया है। भरत के माध्यम से, रामायण दर्शकों को एक आदर्श पुरुष का परिचय देता है जो अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और धर्म, समर्पण, और वचनवद्धता के मूल्यों को महत्व देता है।

संक्षेप में कहें तो, भरत रामायण में एक महान चरित्र के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी प्रेम-भक्ति, वफादारी, धर्मनिष्ठा, और वचनवद्धता उन्हें एक आदर्श भाई बनाती हैं। उनका चरित्र दर्शकों को एक जीवन मूल्यों से भरपूर और सत्यनिष्ठता से युक्त व्यक्ति का दर्शन कराता है। भरत रामायण का महत्वपूर्ण चरित्र हैं, जिसका जीवन और आदर्श हमारे अध्यात्मिक और नैतिक विकास के लिए प्रेरणादायक है।


प्रतीकवाद और पौराणिक कथाओं

भारत की शास्त्रीय साहित्यिक परंपरा में 'रामायण' एक महत्वपूर्ण कृति है जो महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई है। यह प्राचीन एपिक काव्य हमारे समय से भी पहले के समय में ही लिखी गई थी और भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण भाग की गणना की जाती है। 'रामायण' में राजा राम की कथा, उनके पत्नी सीता, उनके भाई लक्ष्मण और उनके साथियों की गतिविधियों का वर्णन किया गया है। इस महाकाव्य में चरित्रों, घटनाओं और स्थानों के पीछे अनेक प्रतीकात्मक और पौराणिक महत्व है जो इसे एक महान धर्मग्रंथ बनाते हैं।

भारतीय संस्कृति में प्रतीकात्मक और पौराणिक भाषा का उपयोग सामान्य रूप से बहुत किया जाता है। 'रामायण' में भी विभिन्न प्रतीक और संकेतों का प्रयोग किया गया है जो इस कृति के रहस्यमय और गहरे मायावी स्वरूप को प्रकट करते हैं।

पहले तो, 'रामायण' में राम को सदाचारी, धर्मात्मा और परिपूर्ण पुरुष का प्रतीक कहा जाता है। वह श्रेष्ठतम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो आदर्श पति, पुत्र, भाई और एक मानविय समाज के नेता हैं। राम के पास सर्वशक्तिमान होने के बावजूद वह मानवता के प्रतीक बने हुए हैं जो सभी के दिलों को जीत लेते हैं।

दूसरे संदर्भ में, सीता माता को भगवान की प्रतिष्ठा और प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक कहा जाता है। उन्हें आग्नेयी परीक्षा पारित करनी पड़ती है जो उनकी पवित्रता और पतिव्रता को प्रमाणित करती है। उनके पास आत्मसमर्पण, सहनशीलता और साहस के प्रतीक के रूप में भी सामर्थ्य होती है।

तीसरे संदर्भ में, हनुमान को सेवा भक्ति और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक माना जाता है। उनकी अनथक सेवा और श्रद्धा ने उन्हें भगवान राम के अद्वितीय भक्त बना दिया है।

'रामायण' के अन्य प्रतीक और पौराणिक तत्वों में अयोध्या, लंका, सरयू नदी, चारित्रवाक्य, विचारधारा, राजनीति, युद्ध, विजय, योग्यता, दया, सामरिक सज्जा , पुरुषार्थ, धर्म, नीति आदि शामिल हैं।

इन प्रतीकों और पौराणिक तत्वों का उपयोग 'रामायण' में विभिन्न सन्दर्भों में किया गया है। यह प्रतीकात्मक और पौराणिक तत्व इस काव्य को गहरा और अद्वितीय बनाते हैं। इन्हें समझने से अधिक मानवीय और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है और इसे अपने जीवन में अधिक समृद्ध और उच्चतमता के साथ अपनाया जा सकता है।

इस प्रकार, 'रामायण' एक महान काव्य है जो भारतीय साहित्यिक परंपरा में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति रखता है। इस कृति में संकेतों और प्रतीकों का उपयोग करके भारतीय मिथक और पौराणिक विचारधारा का बखान किया गया है जो धार्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सामर्थ्य को प्रभावित करता है।


विरासत और प्रभाव

भरत की रामायण में भरत की विरासत और प्रभाव हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण हैं। भगवान राम के छोटे भाई भरत का महत्वपूर्ण योगदान इस महाकाव्य में रहा है, और उनके चरित्र और कार्यक्षेत्र आज भी पाठकों और दर्शकों के मन में प्रभाव डालते हैं।

भरत की विरासत उनकी अटल निष्ठा और प्रेम में निहित है। जब राम चौदह वर्ष के वनवास के लिए निर्वासित हुए, तो भरत ने राज्य स्वीकार करने से इनकार किया और उनकी वापसी के लिए प्रयास किया। वह राम को वापस लाने के लिए वन में गए, लेकिन राम ने अपने वनवास को पूरा करने की बात कही। भरत अयोध्या लौटकर राजसत्ता संभाले और राम के भक्ति के प्रतीक के रूप में उनकी खड़ियों को राजसिंहासन पर रखा। यह स्वार्थहीनता और पूज्यता की प्रतीक्षा की भूमिका निभाने ने भरत को निष्ठावानता और कर्तव्य की प्रतिमूर्ति बना दिया है।

भरत के चरित्र में परिवारिक बंधनों और पुत्रश ्रेष्ठता का महत्व भी उजागर होता है। राजसत्ता का भार उठाने की प्रस्तावना करने के बावजूद, भरत कभी राजा बनने की इच्छा नहीं रखते थे। उन्होंने राम को अपना सही शासक माना और राम की मान और वापसी की गरिमा को संरक्षित रखने के लिए अपनी सारी क्षमता से काम किया। भरत का बलिदान और परिवार के प्रति अपनी समर्पणा बढ़ाते हैं, जो पीढ़ी-पीढ़ी के लिए सम्मान और प्रेम की महत्वपूर्ण वस्तुओं को दर्शाते हैं।

भरत का प्रभाव इस महाकाव्य के बाहर भी फैलता है और हिंदी साहित्य और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में प्रवेश करता है। उनकी कथा को विभिन्न रूपों में पुनर्रचित किया और अनुकरण किया गया है, जिसमें नाटक, फिल्में और टेलीविजन सीरीज शामिल हैं। इन अनुकरणों में अक्सर भरत द्वारा प्रतिष्ठित मूल्यों को उजागर किया जाता है, जो उनके चरित्र की मूल विशेषताओं को पकड़ते हैं और उनके प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।

हिंद ी साहित्य में, भरत को अक्सर न्यायपूर्णता और निःस्वार्थता का प्रतीक के रूप में दर्शाया जाता है। लेखकों और कवियों ने भरत के चरित्र से प्रेरणा ली है ताकि नैतिक संदेश प्रस्तुत कर सकें और वफादारी, कर्तव्य और त्याग जैसे विषयों का अन्वेषण कर सकें। उनकी राम के प्रति अटल भक्ति ने हिंदी लेखकों को प्रेरित किया है कि वे उनी गुणों और सिद्धांतों का मान्यतापूर्ण काव्य और लेखन बनाएं।

भरत के चरित्र का प्रभाव हिंदी प्रदर्शन कला तक फैलता है, विशेष रूप से परंपरागत रंगमंच जैसे कि रामलीला। रामलीला रामायण के नाटकीय पुनर्मान होती है, और इन प्रदर्शनों में भरत की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। भरत का किरदार निभाने वाले अभिनेता भरत की अटल निष्ठा, धार्मिक चेहरा और राम के प्रति गहरे प्यार को प्रदर्शित करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते हैं।

इसके अलावा, भरत का प्रभाव आधुनिक मीडिया तक भी फैला है। रामायण प र बनी टेलीविजन सीरीज और फिल्मों में भरत का किरदार अक्सर अहम भूमिका निभाता है। उनके वफादार और न्यायप्रिय चरित्र ने दर्शकों के दिलों में स्थान बनाया है और उन्हें सामरिकता, सहभागिता और धर्मनिष्ठा के महत्व को याद दिलाया है।

भरत की रामायण हिंदी साहित्य और संस्कृति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्करण है जो अद्वितीय विरासत और प्रभाव साझा करता है। उनके न्यायपूर्ण चरित्र, वफादारी, कर्तव्यनिष्ठा और भगवान राम के प्रति अटल प्रेम ने हिंदी साहित्य में गहरी प्रभावशाली छाप छोड़ी है। उनकी कथा, मूल्यों और सिद्धांतों के आधार पर, उनका प्रभाव हिंदी लेखकों, नाटककारों और अभिनेताओं तक पहुंचता है, और वे उन्हें आधारभूत मूल्यों की महत्वपूर्णता को याद दिलाते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Dasharatha - दशरथ

दशरथ एक महान और प्रसिद्ध राजा थे, जो त्रेतायुग में आये। वे कोसल राजवंश के अंतर्गत राजा थे। दशरथ का जन्म अयोध्या नगर में हुआ। उनके माता-पिता का नाम ऋष्यरेखा और श्रृंगर था। दशरथ की माता ऋष्यरेखा उनके पिता की दूसरी पत्नी थीं। दशरथ की प्रथम पत्नी का नाम कौशल्या था, जो उनकी पत्नी के रूप में सदैव निर्देशक और सहायक थी।

दशरथ का रंग गहरे मिटटी के बराबर सुनहरा था, और उनके बाल मध्यम लंबाई के साथ काले थे। वे बहुत ही शक्तिशाली और ब्राह्मण गुणों से युक्त थे। दशरथ धर्मिक और सामर्थ्यपूर्ण शासक थे, जो अपने राज्य की अच्छी तरह से देखभाल करते थे। वे एक मानवीय राजा थे जिन्होंने न्याय, सच्चाई और धर्म को अपना मूल मंत्र बनाया था।

दशरथ के विद्यालयी शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा था। वे वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान रखते थे। उन्होंने सभी धर्मों को समान दृष्टि से स्वीकार किया और अपने राज्य की न्यायिक प्रणाली को न्यायपूर्ण और उच्चतम मानकों पर स्थापित किया।

दशरथ एक सामर्थ्यशाली सेनापति भी थे। वे बड़े ही साहसी और पराक्रमी योद्धा थे, जो अपने शत्रुओं को हरा देने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उन्होंने अपनी सेना के साथ कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया और वीरता से वापस आए। दशरथ की सेना का नागरिकों के द्वारा बहुत सम्मान किया जाता था और उन्हें उनके साहस और समर्पण के लिए प्रशंसा मिलती थी।

दशरथ एक आदर्श पिता भी थे। वे अपने तीन पुत्रों को बहुत प्रेम करते थे और उन्हें सबकुछ प्रदान करने के लिए तत्पर रहते थे। दशरथ के पुत्रों के नाम राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। वे सभी धर्मात्मा और धर्म के पुजारी थे। दशरथ के प्रति उनके पुत्रों का आदर बहुत गहरा था और वे उनके उच्च संस्कारों को सीखते थे।

दशरथ एक सच्चे और वचनबद्ध दोस्त भी थे। वे अपने मित्रों की सहायता करने में निपुण थे और उन्हें हमेशा समर्थन देते थे। उनकी मित्रता और संगठनशीलता के कारण वे अपने देश में बड़े ही प्रसिद्ध थे।

दशरथ एक सामरिक कला के प्रेमी भी थे। वे धनुर्विद्या और आयुध शस्त्रों में माहिर थे और युद्ध कला के उदात्त संगीत का भी ज्ञान रखते थे। उन्हें शास्त्रों की गहरी ज्ञान थी और वे अपने शिष्यों को भी शिक्षा देते थे। उनकी सामरिक कला में निपुणता के कारण वे आदर्श योद्धा माने जाते थे।

दशरथ एक सामर्थ्यशाली और दायालु राजा थे। वे अपने राज्य के लोगों के प्रति मानवीयता और सद्भावना का पालन करते थे। दशरथ अपने लोगों के लिए निरंतर विकास की योजनाएं बनाते और सुनिश्चित करते थे। वे अपने राज्य की संपत्ति को न्यायपूर्ण और सामर्थ्यपूर्ण तरीके से व्यय करते थे।

एक शांतिप्रिय और धर्माचार्य राजा के रूप में, दशरथ को अपने पुत्र राम के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित करना पड़ा। उन्होंने संपूर्ण राज्य को आमंत्रित किया और अपने राजमहल में एक विशाल सभा स्थापित की। दशरथ के स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों ने भाग लिया और राम ने सीता का चयन किया, जो बाद में उनकी पत्नी बनी।

दशरथ के बारे में कहा जाता है कि वे एक विद्वान्, धर्मात्मा, धैर्यशाली और सदैव न्यायप्रिय राजा थे। उनकी प्रशासनिक क्षमता और वीरता के कारण वे अपने समय के मशहूर और प्रमुख राजाओं में गिने जाते थे। दशरथ की मृत्यु ने राजवंश को भारी नुकसान पहुंचाया और उनके निधन के बाद उनके पुत्र राम को अयोध्या का राजा बनाया गया। दशरथ की साधुपन्थी और न्यायप्रिय व्यक्तित्व ने उन्हें देश और विदेश में विख्यात बनाया।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.