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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : रावण की अन्त्येष्टि । विभीषण राज्याभिषेक । सीता की अग्नि परीक्षा ।

रामायण : Episode 76

रावण की अन्त्येष्टि । विभीषण राज्याभिषेक । सीता की अग्नि परीक्षा ।

लंकापति रावण का पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार होता है। विभीषण अपने अग्रज की चिता को मुखाग्नि देते हैं। विभीषण अभी भी पश्चाताप में डूबे हैं। वह भाई की मौत से टूट चुके हैं। राम उन्हें समझाते हैं कि वह शमशान वैराग्य की स्थिति से बाहर निकलें व लंका का शासन सम्भालें। राम के आदेश पर लक्ष्मण लंका नगरी जाकर विभीषण का वैदिक मन्त्रोच्चार के बीच राज्याभिषेक करते हैं। राम सीता का सन्देश लाने के लिये हनुमान को अशोक वाटिका भेजते हैं। हनुमान को देखकर वैदेही प्रसन्न हो उठती हैं। वह हनुमान से कहती हैं कि वह उनके स्वामी से कहें कि शीघ्राशीघ्र वे अपनी सीता को अपने पास बुलाएं। हनुमान से यह सन्देश पाकर राम विभीषण से सीता को अशोक वाटिका से मुक्त करने को कहते हैं। सबके प्रस्थान के बाद राम लक्ष्मण से अग्नि का प्रबन्ध करने को कहते हैं। वह कहते हैं कि सीता को अग्निद्वार लाँघकर राम के पास आना होगा। भाभी की इस प्रकार अग्नि परीक्षा लिये जाने की बात सुनकर लक्ष्मण आवेश में आते हैं। वह भैया राम को सीता द्वारा उठाये गये दुःखों को गिनाकर कहते हैं कि यदि उनकी माता समान भाभी की अग्निपरीक्षा ली गयी तो वह अपने बड़े भाई के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हैं। राम कहते हैं कि उन्हें सीता के सतीत्व पर पूर्ण विश्वास है। यहाँ राम लक्ष्मण के समक्ष एक बहुत बड़े रहस्य का खुलासा करते हैं। वह कहते हैं कि यदि रावण असली सीता को हाथ लगाता तो उसके परम तेज से रावण के हाथ जल जाते। राम बताते हैं कि पर्णकुटी वास के दौरान एक दिन जब लक्ष्मण वन में लकड़ी लेने गये थे, तब उन्होंने सीता से कहा कि उन्हें नरलीला करनी है। राम ने सीता को अग्निदेव के संरक्षण में रहने को कहा। सीता ने अग्नि प्रज्वलित की और उसमें प्रवेश कर गयीं। राम के पास सीता का प्रतिबिम्ब रहा गया। रावण इन्हीं छायासीता को हर ले गया था। अब राम छायासीता को अग्नि में प्रवेश कराकर असली सीता वापस लाना चाहते हैं। तभी कोलाहल गूँजता है। हनुमान सीता की पालकी लेकर आते हैं। वानरों में सीता के सबसे पहले दर्शन करने के लिये होड़ मचती है। सीता पालकी से उतर कर धीमे पग से राम की ओर बढ़ती है। यह मनोरम दृश्य देखने के लिये आकाश में देवता भी आतुर हैं। किन्तु राम सीता को रुकने और पहले अपनी शुद्धता का प्रमाणित करने के लिये अग्नि परीक्षा देने को कहते हैं। सीता लक्ष्मण को पावक की व्यवस्था करने को कहती हैं। लक्ष्मण मंत्रों से अग्नि प्रज्वलित करते हैं। सीता अग्निदेव को प्रणाम कर कहती हैं कि यदि मैंने सच्चे मन कर्म और वचन से अपने हृदय में केवल अपने पति का वास रखा हो और किसी परपुरुष का विचार भी मन में न आया हो तो अग्निदेव श्रीखण्ड के समान मेरी शुद्धता प्रमाणित करें। सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं। अग्नि की ज्वाला में छायासीता का लोप होता है और अग्निदेव असली सीता को लेकर प्रकट होते हैं। राम सीता का पुनर्मिलन होता है। एपीसोड के अन्त में निदेशक रामानन्द सागर बताते हैं कि छायासीता का प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस के आरण्य काण्ड और लंका काण्ड मिलता है। वह स्पष्टीकरण देते हैं कि मेघनाद की पत्नी सुलोचना के सती होने का प्रसंग उन्होने आज के परिवेश को ध्यान में रखकर नहीं दिखाया था। वह यह भी कहते हैं वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की मानस और तमिल रामायाण में सुलोचना के सती होना का वर्णन नहीं मिलता है। वे कहते हैं कि रामेश्वरम में रावण द्वारा पूजा और मरते समय रावण द्वारा लक्ष्मण को उपदेश जैसे प्रसंग भी क्षेपक हैं, इस कारण उन्होंने चित्रपट पर इन्हें भी नहीं दिखाया है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Shurpanakha - शूर्पणखा

शूर्पणखा भारतीय महाकाव्य रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र है। वह एक राक्षसी है जिसे वाल्मीकि द्वारा दिए गए महाकाव्य में विस्तार से वर्णित किया गया है। शूर्पणखा का नाम संस्कृत में "चुभने वाली नखें" का अर्थ होता है। वह रावण की बहन है और खूबसूरती और अत्यधिक बुद्धिमान होने के कारण अपने भाई के नेतृत्व में राक्षसों की सेना में शामिल होती है।

शूर्पणखा का वर्णन रामायण में बहुत ही रोचक है। वह सुंदरता की प्रतीक है और उसकी बड़ी नखें उसके चेहरे को और अधिक आकर्षक बनाती हैं। उसके बाल लम्बे और काले होते हैं और उसकी आँखों में शातिरता और कर्मठता की चमक होती है। शूर्पणखा वाल्मीकि के काव्य में अभिप्रेत पात्रों में से एक है जो रामायण की कहानी को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम करती है।

शूर्पणखा के पास असाधारण शक्ति होती है और वह दूसरों को राक्षस बनाने की क्षमता रखती है। उसका स्वभाव उत्तेजित और प्रबल होता है और वह आसानी से राक्षसों की सेना का नेतृत्व कर सकती है। शूर्पणखा की प्रधान पहचान उसकी खुदाई की जाती है, जिसमें उसके पैरों के निशान भी दिखाई देते हैं। वह उसे अपनी राक्षसी शक्ति और प्रबलता का प्रतीक मानती है और इसे अपने भाई रावण को दिखाने के लिए उपयोग करती है।

शूर्पणखा के अभिप्रेत कार्यों में से एक राम के पास पहुंचकर उसे प्रेम करने का प्रयास करना है। जब वह राम को देखती है, तो उसकी सुंदरता और प्रभाव में मग्न हो जाती है और उसे उससे प्रेम हो जाता है। वह राम को प्रतिबिंबित करने के लिए अपने भाई खर और दूषण के साथ राम के निवासस्थान पर आती है।

हालांकि, शूर्पणखा का प्रेम प्रकट होने पर राम उसे अपनी पत्नी सीता के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, शूर्पणखा भयानक रूप में तब्दील हो जाती है और उसे लक्ष्मण द्वारा नास्तिक्रियता का दंड दिया जाता है।

शूर्पणखा का पात्र रामायण के कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बदलाव प्रदान करता है। उसकी प्रेम कथा उसकी उच्चता और विपरीतता को दर्शाती है जहां प्रेम निःस्वार्थ और सत्य होने के बावजूद उसका परिणाम विनाशकारी हो जाता है। शूर्पणखा का चरित्र रामायण के पुरुषार्थ, धर्म, और नर और नारी के संबंधों को गहराई से समझने का एक माध्यम है। उसकी कथा द्वारा हमें यह भी सिखाया जाता है कि न केवल दया और प्रेम में ही जीवन का अर्थ होता है, बल्कि सत्य, धर्म, और अपने कर्तव्यों का पालन करना भी महत्वपूर्ण है।

शूर्पणखा रामायण की एक प्रमुख चरित्र है जो राम, सीता, और लक्ष्मण की कथा में एक महत्वपूर्ण संचालक है। उसका पात्र उदारता, सुंदरता, अपार बुद्धिमत्ता, और राक्षसी शक्ति के साथ भरा होता है। शूर्पणखा की कथा हमें अदालती, स्वार्थ, और सम्प्रेषण के मामलों में विवेचना करने के लिए प्रेरित करती है। उसकी कथा द्वारा हमें यह भी समझने का अवसर मिलता है कि आत्म-प्रतिष्ठा और विश्वास का महत्व क्या होता है और धर्म के मार्ग में बरकरार रहना क्यों जरूरी है। शूर्पणखा रामायण की पाठशाला में एक महत्वपूर्ण चरित्र है जो हमें धर्म, नैतिकता, और जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को समझाने में मदद करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.