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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राम रावण संग्राम

रामायण : Episode 73

राम रावण संग्राम

रावण रणभूमि में उतरता है। रावण की तैयारियों को देखने उपरान्त विभीषण का मन तमाम आशंकाओं से घिरता है। वह राम से कहते हैं कि रावण कवच धारण कर रथ पर आरूढ़ है जबकि राम कवच विहीन, रथ विहीन और नंगे पाँव हैं। वे किस भाँति पराक्रमी रावण का सामना कर पायेंगे। तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहते हैं कि मनुष्य को जीत के लिये लोहे और लकड़ी से बना रथ नहीं चाहिये। जीत के लिये आवश्यक रथ के पहिये शौर्य और धैर्य के बने होते हैं, सत्य और शील जिसकी दृढ़ पताका और ध्वजा है। बल, विवेक, दम और परोपकार ये चार घोड़े हैं जो क्षमा, दया और क्षमतारूपी डोरी से रथ में जोड़े गये हैं। ईश्वर भजन उस रथ का सारथी है और गुरुजनों का पूजन अभेद्य कवच है। ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो, वह अजेय शत्रु को भी जीत सकता है। रावण का रथ वानर सेना को क्षति पहुँचाते हुए आगे बढ़ता है। हनुमान और अंगद भी उसे बहुत देर रोक नहीं पाते। लक्ष्मण बड़े भाई राम से आज्ञा लेकर रावण के सामने आते हैं। रावण लक्ष्मण के कई प्रहारों को विफल करता है। तब राम स्वयं रण में आते हैं। राम रावण से कहते हैं कि वह अपनी वीरता काफी बखानता रहा है, अब वह इसे करके भी दिखाये। राम रावण मोह और मृत्यु का भय त्याग कर युद्ध आरम्भ करते हैं। एक ओर धर्मपथगामी राम हैं तो दूसरी तरफ कामी फलकामी रावण है। सत्य और असत्य के बीच महासंग्राम में निर्णय की घड़ी आन पड़ती है। तभी रावण की दृष्टि विभीषण पर पड़ती है। वह उसे कुलद्रोही कहकर उसपर प्रचण्ड शक्ति आघात करता है। राम विभीषण को पीछे ढकेल कर शक्ति आघात को अपने वक्ष पर झेल जाते हैं। यह देखकर विभीषण, हनुमान, सुग्रीव और जामवन्त मिलकर रावण पर प्रहार करते हैं और उसे मूर्च्छित कर देते हैं। चतुर सारथी अपने महाराज पर संकट आया जान, रथ रणभूमि से बाहर ले जाता है। चेतना लौटने पर रावण सारथी पर क्रोधित होता है और वापस रणभूमि में ले चलने का आदेश देता है। विभीषण भी राम से शिविर में चलकर घावों का उपचार कराने को कहते हैं किन्तु राम छोटे मोटे घावों को क्षत्रिय की शोभा बताते हैं। राम रावण के बीच पुनः युद्ध आरम्भ होता है। दोनों तरफ से दिव्यास्त्रों का प्रयोग होता है। राम अपने चारों ओर एक अभिमंत्रित सुरक्षा कवच बनाते हैं और फिर रावण को अपने बाणों से ऐसा परेशान करते हैं मानो वे उसके साथ युद्ध नहीं कर रहे वरन् कोई खेल खेल रहे हों। सूर्य अस्त होता। अंगद युद्ध विराम का शंख बजाते हैं। रावण अगले दिन राम को काल के गाल में भेजने का दम्भ भरता है। राम रावण को अपना परलोक सुधारने की सीख देते हैं। आज का युद्ध अनिर्णीत रहता है। शिविर में लक्ष्मण राम के घावों पर औषधि का लेप लगाते हैं। लक्ष्मण को पश्चाताप होता है कि यदि वह उस दिन भाभी सीता के कटु वचनों को बर्दाश्त कर लेते और कुटिया से बाहर न जाते तो आज उनके जीवन में लंकाकाण्ड न लिखा जाता। राम उन्हें सांत्वना देते हैं कि यह सब विधि का विधान है। सम्भवतः धरती से पापियों के नाश की भूमिका रचने के लिये ही विधाता ने सीता हरण का अध्याय लिखा है। राम लक्ष्मण को अगले दिन युद्ध से पहले विश्राम करने भेजते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Kabandha - कबंध

कबंध रामायण महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण पात्र है, जो हनुमान का पहला लड़ाका था। कबंध एक विशालकाय राक्षस था जिसकी विशेषता थी कि उसके दो पैर, दो हाथ और दो मुख थे। उसके एक पैर और एक हाथ के नुकीले नख थे जिन्हें वह लोगों को दहला देने के लिए प्रयोग करता था। कबंध को लंका के राजा रावण ने अपने राजमहल में निवास कराया था।

कबंध के बारे में कहानी रामायण महाकाव्य में समरेश्वर हनुमान के मुख्य भूमिका को विस्तृत करती है। हनुमान ने सूंदरकांड के दौरान कबंध को मार दिया था।

हनुमान कबंध के पास पहुंचे और उससे युद्ध के लिए मुक़ाबला करने का आग्रह किया। वह ज्ञात करने के लिए पूछता है कि कौन हैं वे और उनका धर्म क्या है। कबंध उसे जवाब देता है कि वह एक राक्षस है और उसका धर्म अहंकार को दृढ़ करना है। उसने कहा कि वह उसे छोड़ देगा जो भगवान श्रीराम का स्वरूप है।

हनुमान कबंध के बारे में और बेहतर जानने के लिए उससे विस्तृत बातचीत करते हैं। इसके पश्चात हनुमान ने कबंध को युद्ध के लिए मुक़ाबला करने का प्रस्ताव दिया। हनुमान और कबंध के बीच हुए युद्ध में हनुमान ने अपनी भयंकर शक्ति दिखाई और उसने उसके दोनों हाथ और एक पैर को काट दिया।

इस रूप में कबंध बिना उसकी कुछ शक्तियों के लड़ नहीं सकता था। हनुमान कबंध के प्राण लेने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन प्राण लेने से पहले उसने कबंध के मुंह से सुना कि राम कौन है और उसके बारे में जानने की इच्छा की है। यह सुनकर कबंध ने अपने अपने अंतिम शब्दों में हनुमान को बताया कि राम सबके श्रेष्ठ और परम आत्मा हैं, और उनका ध्यान और भक्ति सबके लिए मोक्ष का साधन है।

कबंध की मृत्यु के बाद, हनुमान ने उसके पूरे शरीर को आग के समान जला दिया। यह भगवान राम के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास था, क्योंकि उसने राक्षसों के संगठन में दंगा मचाया था और उनका सर्वनाश किया था। इस तरह, कबंध रामायण के कथा में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पात्र के रूप में प्रस्तुत होता है, जो हनुमान के पाठकों को राम के महान गुणों का अनुभव कराता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.