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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : मेघनाद का युद्ध । राम और लक्ष्मण का नागपाश में बँधना ।

रामायण : Episode 65

मेघनाद का युद्ध । राम और लक्ष्मण का नागपाश में बँधना ।

मेघनाद युद्ध में जाने का निर्णय लेता है। उसकी माता मन्दोदरी अपनी पुत्रवधू सुलोचना के पास जाकर अपने मन का डर कहती है। किन्तु सुलोचना स्थिर भाव से कहती है कि उसका पति कोई पहली बार युद्ध में नहीं जा रहा है। मेघनाद कवच धारण करता है और कुलदेवी निकुम्भला की तांत्रिक साधना करके कई दिव्यास्त्र अर्जित करता है। देवी निकुम्भला माँ भवानी का ही एक रूप हैं। सुलोचना अपने पति को विजय तिलक लगाकर युद्ध के लिये भेजती है। विभीषण राम व लक्ष्मण को बताते हैं कि आज रावण ने अपना सबसे अनमोल रत्न युद्ध के दाँव पर लगाया है। मेघनाद विलक्षण प्रतिभाएं लेकर जन्मा था। उसने पैदा होते ही मेघ की तरह गर्जन किया था इसलिये रावण ने उसका नाम मेघनाद रखा था। किशोरावस्था में पहुँचने तक मेघनाद ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की सहायता से तान्त्रिक अनुष्ठान करके देवी निकुम्भला को प्रसन्न कर लिया था। देवी ने उसे इच्छानुसार चलने वाला दिव्य रथ, तामसी माया, अक्षय तरकस और अजेय धनुष प्रदान किये। इन्द्र को जीतने के कारण भगवान ब्रह्मा ने उसे इन्द्रजीत का अलंकरण दिया था। युद्धभूमि में मेघनाद के सामने पहले सुग्रीव आते हैं लेकिन बहुत देर टिक नहीं पाते। बाद में यही हाल अंगद का होता है। इसके बाद मेघनाद की ललकार सुन लक्ष्मण आते हैं। दोनों के बीच कांटे का संघर्ष होता है। मेघनाद के कुछ प्रहारों को हनुमान लक्ष्मण तक पहुँचने से पहले ढाल बनकर रोक देते हैं। मेघनाद के बाण वानर सेना को बड़ी क्षति पहुँचाते हैं। फिर लक्ष्मण अपने भाई का स्मरण करके मेघनाद के कई दिव्यास्त्र निष्फल करते हैं। विभीषण राम से रण में हस्तक्षेप करने को कहते हैं क्योंकि सूर्यास्त के बाद मेघनाद अपनी तामसी शक्तियों का प्रयोग करके अदृश्य युद्ध कर सकता है। विभीषण का अनुमान सच साबित होता है। राम को आता देखकर मेघनाद अपना इच्छाशँक्ति वाला दिव्य रथ आकाश में ले जाता है और वहाँ अदृश्य होकर नागपाश चलाता है। नागपाश के प्रहार से राम लक्ष्मण मूर्च्छित हो जाते हैं और नाग उनके शरीरों को बाँध लेते हैं। राक्षस सेना विजयोत्सव मनाती दुर्ग में वापस लौटती है। वानर सेना में हताशा है किन्तु अचानक हनुमान की आँखें किसी उपाय का विचार कर चमक उठती हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Ravana - रावण

रावण, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख पात्र है और भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह महाभारत काल से पहले के युग में राज करने वाले लंका के राजा थे। रावण एक महान विद्वान, ब्राह्मण, महर्षि, विशेषज्ञ योद्धा और शैलीशील राजा थे। वह राजा दशरथ के विरुद्ध भी लड़े और उनके पुत्र रामचंद्र को पराजित करने का प्रयास किया। रावण को माना जाता है कि उन्होंने दशरथ की पत्नी कौशल्या की प्रतीक्षा में अयोध्या में पहुंचने वाली विमला को अपहरण किया था, जिसके बाद उन्होंने उसे अपनी विरासती भारती रानी के रूप में शापित किया।

रावण की विशेषताएं उनके अस्त्र-शस्त्र विज्ञान में अद्वितीय थीं। उन्हें अस्त्र-शस्त्र और तंत्र-मंत्र की गहरी ज्ञान थी और उनकी ताकत को देखकर लोग उन्हें मानवीय शक्ति से भी प्रभावित होते थे। रावण के दस सिर थे, जिनमें हर एक का अपना विशेष महत्व था। इन सिरो में से एक सिर को ही उनकी अवधि यानी उम्र प्रतिनिधित्व करता था। इसके अलावा, रावण को अजेय बनाने के लिए उन्होंने अपने शरीर को अभिजीत करने के लिए विशेष तपस्या की थी।

रावण को एक अद्वितीय कवच भी प्राप्त था, जिसकी रक्षा उन्हें अजेय बनाती थी। वह ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त हुआ था और उन्हें मौनी सिद्धि भी प्राप्त थी, जिससे उन्हें अस्त्रों की शक्ति इच्छानुसार प्रयोग करने की अनुमति मिलती थी।

रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी थे, जिन्होंने उनके समर्थन में कई युद्ध किए थे। मेघनाद को वारुण देवता ने अजेयता दी थी और उन्हें अपराजित बना दिया था। रावण के इस पुत्र की सहायता से रावण ने बहुत सारे युद्ध जीते और ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी पराजित किया।

रावण को विशेष रूप से उनके तेज, यश और धन के कारण यहां तक कि सूर्य, चंद्रमा और अग्नि भी उनके समर्थन में रहते थे। उन्हें दया, करुणा और धर्म की अच्छी जानकारी थी, लेकिन उनका गर्व और अहंकार उन्हें अन्यायपूर्ण और अत्याचारी बना दिया।

रावण एक विशालकाय राक्षस राजा थे, जो सुंदर और प्रभावशाली राजमहल में बसते थे। उनकी ताकत, साहस और समर्पण उन्हें वीरता के प्रतीक बनाते थे। रावण का रंग काला था और उनके नेत्र लाल थे। उनके मुख पर विशेष तरीके से राजसी और आदर्शवादी मुद्रा थी।

रावण के चरित्र में विभिन्न रंग हैं। उन्हें अपराधी, अहंकारी, अत्याचारी और अधर्मी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, उनका प्रेम पत्नी मंदोदरी के प्रति गहरा और सच्चा था। वे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे, जो विश्वास को महत्व देते थे।

रावण के चरित्र का अध्ययन एक गहरा और महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि उनकी कथा और उनके विभिन्न पहलुओं में संघर्ष और पराजय की कथा है। वे एक उदाहरण हैं जो अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की नष्टि को देखते हैं। उनकी गरिमा और पात्रता के साथ उनके पापों की सीमाओं का अनुभव करने वाले लोग भी थे।

रावण एक रोचक पात्र है जिसके चरित्र में समय के साथ विकास हुआ है। वे सत्ता, शक्ति और दम्भ के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी अहंकारी और न्यायवादी स्वभाव ने उन्हें अवरोधित कर दिया। रावण का चरित्र अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है, जो हमें दिखा सकता है कि अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप न्याय और सत्य की पराजय कैसे होती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.