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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : अतिकाय वध। मेघनाद का यु़द्ध में जाने का निर्णय।

रामायण : Episode 64

अतिकाय वध। मेघनाद का यु़द्ध में जाने का निर्णय।

रणभूमि में हनुमान रावण के तीसरे पुत्र त्रिशिरा का उसी के अस्त्र से वध कर देते हैं। सुग्रीव के हाथों रावण का सेनापति अकम्पन मारा जाता है। रावण के दो अन्य पराक्रमी योद्धा कुम्भ और निकुम्भ भी इस लड़ाई में मारे जाते हैं। उधर लक्ष्मण और अतिकाय के बीच जारी युद्ध अनिर्णीत है। अतिकाय अपना रथ आकाश में ले जाता है और लक्ष्मण से माया युद्ध करता है। हनुमान लक्ष्मण से कहते हैं कि अतिकाय आकाशीय रथ पर है और वे धरती पर पैदल। मायावी अतिकाय इसका लाभ ले सकता है। हनुमान के अनुरोध पर लक्ष्मण उनके कन्धे पर बैठते हैं और हनुमान हवा में उड़कर लक्ष्मण को अतिकाय के रथ के बराबर ले जाते हैं। फिर भी लक्ष्मण के बाण अतिकाय को नहीं भेद पाते। तब इन्द्र पवनदेव के माध्यम से लक्ष्मण तक यह रहस्य पहुँचाते हैं कि अतिकाय को ब्रह्म कवच प्राप्त है इसलिये उसे केवल ब्रह्मास्त्र से ही भेदा जा सकता है। तब लक्ष्मण धनुष पर ब्रह्मास्त्र का संधान करते हैं और अतिकाय के ब्रह्म कवच को भेद कर उसका वध करते हैं। आज के रक्तपात और युद्धभूमि को हजारों शवों से पटा देखकर राम भारी मन से कहते हैं कि मानव का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं युद्ध है। मानव संस्कृति की पूर्ण विजय तब होगी जब संसार में सत्य और न्याय के लिये मानव को युद्ध की आवश्यकता न हो। उधर लंका जहाँ कभी संगीत सभाएं सजती थीं, वहाँ आज केवल मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है। बीच बीच में इस सन्नाटे को चीरता रानी धन्यमालिनी का विलाप गूँजता है। धन्यमालिनी अपने पति को कोसते हुए कहती है कि क्या वह पित्तरों को पानी देने के लिये अपने अन्तिम जीवित पुत्र मेघनाद की भी बलि चढ़ाना चाहते हैं। तभी मेघनाद महल में प्रवेश करके अपनी छोटी माँ को विलाप करने से मना करता है और अपने हर भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये स्वयं युद्ध में जाने की घोषणा करता है। किन्तु रावण मेघनाद को युद्ध में भेजने को लेकर असमन्जस में है। वह पुत्र मेघनाद को लंका का भविष्य बताकर उसे सुरक्षित रखना चाहता है। रावण कहता है कि पाताल लोक से अपने भाई अहिरावण को बुलाकर उसकी माया की सहायता लेना चाहता है। किन्तु मेघनाद रावण को इसके लिये मना करते हुए युद्धोन्मत स्वर में कहता है कि यदि वह आज सूर्यास्त से पहले विजय पताका फहरा कर नहीं लौटा तो सदैव के लिये शस्त्रों का त्याग करके जल समाधि ले लेगा। रावण मेघनाद के दृढ़ विश्वास को देखते हुए उसे कूच करने की आज्ञा दे देता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Shurpanakha - शूर्पणखा

शूर्पणखा भारतीय महाकाव्य रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र है। वह एक राक्षसी है जिसे वाल्मीकि द्वारा दिए गए महाकाव्य में विस्तार से वर्णित किया गया है। शूर्पणखा का नाम संस्कृत में "चुभने वाली नखें" का अर्थ होता है। वह रावण की बहन है और खूबसूरती और अत्यधिक बुद्धिमान होने के कारण अपने भाई के नेतृत्व में राक्षसों की सेना में शामिल होती है।

शूर्पणखा का वर्णन रामायण में बहुत ही रोचक है। वह सुंदरता की प्रतीक है और उसकी बड़ी नखें उसके चेहरे को और अधिक आकर्षक बनाती हैं। उसके बाल लम्बे और काले होते हैं और उसकी आँखों में शातिरता और कर्मठता की चमक होती है। शूर्पणखा वाल्मीकि के काव्य में अभिप्रेत पात्रों में से एक है जो रामायण की कहानी को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम करती है।

शूर्पणखा के पास असाधारण शक्ति होती है और वह दूसरों को राक्षस बनाने की क्षमता रखती है। उसका स्वभाव उत्तेजित और प्रबल होता है और वह आसानी से राक्षसों की सेना का नेतृत्व कर सकती है। शूर्पणखा की प्रधान पहचान उसकी खुदाई की जाती है, जिसमें उसके पैरों के निशान भी दिखाई देते हैं। वह उसे अपनी राक्षसी शक्ति और प्रबलता का प्रतीक मानती है और इसे अपने भाई रावण को दिखाने के लिए उपयोग करती है।

शूर्पणखा के अभिप्रेत कार्यों में से एक राम के पास पहुंचकर उसे प्रेम करने का प्रयास करना है। जब वह राम को देखती है, तो उसकी सुंदरता और प्रभाव में मग्न हो जाती है और उसे उससे प्रेम हो जाता है। वह राम को प्रतिबिंबित करने के लिए अपने भाई खर और दूषण के साथ राम के निवासस्थान पर आती है।

हालांकि, शूर्पणखा का प्रेम प्रकट होने पर राम उसे अपनी पत्नी सीता के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, शूर्पणखा भयानक रूप में तब्दील हो जाती है और उसे लक्ष्मण द्वारा नास्तिक्रियता का दंड दिया जाता है।

शूर्पणखा का पात्र रामायण के कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बदलाव प्रदान करता है। उसकी प्रेम कथा उसकी उच्चता और विपरीतता को दर्शाती है जहां प्रेम निःस्वार्थ और सत्य होने के बावजूद उसका परिणाम विनाशकारी हो जाता है। शूर्पणखा का चरित्र रामायण के पुरुषार्थ, धर्म, और नर और नारी के संबंधों को गहराई से समझने का एक माध्यम है। उसकी कथा द्वारा हमें यह भी सिखाया जाता है कि न केवल दया और प्रेम में ही जीवन का अर्थ होता है, बल्कि सत्य, धर्म, और अपने कर्तव्यों का पालन करना भी महत्वपूर्ण है।

शूर्पणखा रामायण की एक प्रमुख चरित्र है जो राम, सीता, और लक्ष्मण की कथा में एक महत्वपूर्ण संचालक है। उसका पात्र उदारता, सुंदरता, अपार बुद्धिमत्ता, और राक्षसी शक्ति के साथ भरा होता है। शूर्पणखा की कथा हमें अदालती, स्वार्थ, और सम्प्रेषण के मामलों में विवेचना करने के लिए प्रेरित करती है। उसकी कथा द्वारा हमें यह भी समझने का अवसर मिलता है कि आत्म-प्रतिष्ठा और विश्वास का महत्व क्या होता है और धर्म के मार्ग में बरकरार रहना क्यों जरूरी है। शूर्पणखा रामायण की पाठशाला में एक महत्वपूर्ण चरित्र है जो हमें धर्म, नैतिकता, और जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को समझाने में मदद करता है।



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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.