रामायण का यह दूसरा अध्याय "कुम्भकरण का युद्ध प्रस्थान | विभीषण कुम्भकरण संवाद | कुम्भकरण युद्ध और परमगति |" था। इस अध्याय में वीर योद्धा कुम्भकरण का परिचय होता है। कुम्भकरण रावण के मित्र और महासेनापति था। उसकी अद्भुत शक्ति के कारण उसे निद्रावती सुत्तला यानि बारह दिन के लिए ही नींद आती थी। राम, लक्ष्मण, विभीषण और अंगद ने कुम्भकरण के पास जाकर उससे युद्ध के लिए बधाई दी। विभीषण ने उससे अनुरोध किया कि वह धर्म की रक्षा करें और राम की सेना में शामिल हों। वह उसे बताते हैं कि रावण धर्म का पालन नहीं करता है और किसी के लिए भी वचन नहीं रखता है। इसके बाद कुम्भकरण ने विभीषण के साथ संवाद किया और उसे आश्चर्यजनक बातें बताईं। युद्ध के दिन पर, कुम्भकरण ने अपनी विशाल सेना के साथ राम के विरुद्ध उत्पन्न हुई। उसने बहुत सारे योद्धा सहित अद्भुत विमान और गज युद्ध यंत्रों का उपयो गम किया। कुम्भकरण ने वीरताप से युद्ध किया और अनेकों वीरों को मार गिराया। लेकिन अंत में, राम ने उसकी विशाल गर्दन को वध किया। कुम्भकरण अपनी परमगति प्राप्त करते हुए धर्मराज यमराज के पास चला गया। राम ने उसे सम्मानित किया और उसकी मूल स्वरूप गर्भवास स्थली में वापस भेजा। इस अध्याय में कुम्भकरण का वीरगति प्रस्थान और रामायण की महान लड़ाई का वर्णन है। यह अध्याय धर्म, युद्ध की वीरता, और भक्ति के महत्व को प्रकट करता है।

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रामायण : कुम्भकरण का युद्ध प्रस्थान | विभीषण कुम्भकरण संवाद | कुम्भकरण युद्ध और परमगति |

रामायण : Episode 62

कुम्भकरण का युद्ध प्रस्थान | विभीषण कुम्भकरण संवाद | कुम्भकरण युद्ध और परमगति |

रामायण का यह दूसरा अध्याय "कुम्भकरण का युद्ध प्रस्थान | विभीषण कुम्भकरण संवाद | कुम्भकरण युद्ध और परमगति |" था। इस अध्याय में वीर योद्धा कुम्भकरण का परिचय होता है। कुम्भकरण रावण के मित्र और महासेनापति था। उसकी अद्भुत शक्ति के कारण उसे निद्रावती सुत्तला यानि बारह दिन के लिए ही नींद आती थी। राम, लक्ष्मण, विभीषण और अंगद ने कुम्भकरण के पास जाकर उससे युद्ध के लिए बधाई दी। विभीषण ने उससे अनुरोध किया कि वह धर्म की रक्षा करें और राम की सेना में शामिल हों। वह उसे बताते हैं कि रावण धर्म का पालन नहीं करता है और किसी के लिए भी वचन नहीं रखता है। इसके बाद कुम्भकरण ने विभीषण के साथ संवाद किया और उसे आश्चर्यजनक बातें बताईं। युद्ध के दिन पर, कुम्भकरण ने अपनी विशाल सेना के साथ राम के विरुद्ध उत्पन्न हुई। उसने बहुत सारे योद्धा सहित अद्भुत विमान और गज युद्ध यंत्रों का उपयो गम किया। कुम्भकरण ने वीरताप से युद्ध किया और अनेकों वीरों को मार गिराया। लेकिन अंत में, राम ने उसकी विशाल गर्दन को वध किया। कुम्भकरण अपनी परमगति प्राप्त करते हुए धर्मराज यमराज के पास चला गया। राम ने उसे सम्मानित किया और उसकी मूल स्वरूप गर्भवास स्थली में वापस भेजा। इस अध्याय में कुम्भकरण का वीरगति प्रस्थान और रामायण की महान लड़ाई का वर्णन है। यह अध्याय धर्म, युद्ध की वीरता, और भक्ति के महत्व को प्रकट करता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Jatayu - जटायु

रामायण में जटायु एक महत्वपूर्ण पात्र है जो योद्धा और वानर वंश का सदस्य है। वह एक गरुड़ विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, जो सूर्य और वायु देवताओं के बेटे के रूप में प्रस्तुत होता है। जटायु का नाम उसकी बाहुओं के झुलसने के लिए उन्हें एक झूला जैसा आकार देने वाले विशेष पट्टों से प्राप्त हुआ है।

जटायु एक महान स्वतंत्र जीवी हैं, जो पहाड़ों और जंगलों में घूमते रहते हैं। वह बड़े पंखों और संचालन क्षमता वाले मुखवाले के साथ एक विशाल शरीर हैं जो उसे ऊँची ऊँची उड़ानें भरने की क्षमता प्रदान करता है। जटायु के पंख पीले और धूसर रंग के होते हैं, जिनमें धूप के बीजों के समान चमक होती है। उसकी आंखें तेज और प्रज्वलित होती हैं, जैसे कि वह अस्त चमक और तपती धूप के सामर्थ्य का प्रतीक है।

जटायु को उसकी विशेष बुद्धिमत्ता के लिए भी पहचाना जाता है। वह बहुत ही ज्ञानी और सत्यनिष्ठ हैं, और उसका विचारधारा परम धर्मवत सत्य के आधार पर निर्मित है। जटायु ने अपना जीवन वीरता और निष्ठा के साथ बिताया है और उसकी प्रामाणिकता और निष्ठा के कारण वह अपने वंश के बीच मान्यता प्राप्त करता है।

जटायु की प्रमुख भूमिका रामायण में समय आती है, जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान रावण द्वारा हरण किए जाते हैं। जब राम और लक्ष्मण रावण की खोज में निकलते हैं, तो जटायु उन्हें देखकर वन में दौड़ता है और रक्षा के लिए आगे आता है। वह रावण के साथ लड़ता है और उसकी विपरीत बल से जूझता है, लेकिन दुःख के साथ, उसे हार का सामना करना पड़ता है।

जटायु के महान कर्तव्य के बीच, उसके पास परमात्मा राम का दर्शन होता है। राम उसके पास जाते हैं और जटायु के शरण में अपनी दुःखभरी कथा सुनते हैं। जटायु राम को उसकी प्राणों की गाथा बताता है और उसे द्वंद्व निद्रा में से जगाकर रक्षा करता है। जब जटायु इस युद्ध में मारा जाता है, तो राम उसे अपने आवागमन के लिए सलामी देते हैं और उसकी महिमा को मान्यता देते हैं।

जटायु का पात्र रामायण में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो विशेष रूप से सेवा और बलिदान का प्रतीक है। उसकी प्रमाणिकता, त्याग, और शक्ति दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। जटायु ने धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ समर्पित किया और अपनी वीरता और विश्वास के कारण एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.