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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राम लक्ष्मण और विश्वामित्र का जनकपुर आगमन। पुष्पवाटिका में राम सीता दर्शन

रामायण : Episode 6

राम लक्ष्मण और विश्वामित्र का जनकपुर आगमन। पुष्पवाटिका में राम सीता दर्शन

ऋषि विश्वामित्र के आदेश का पालन करते हुए श्रीराम राक्षसी ताड़का का वध कर देते हैं। राम के बारे में अपना आंकलन सही देखकर ऋषि विश्वामित्र अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। उनको विश्वास हो जाता है कि भविष्य के सभी संकटों पर राम विजय प्राप्त कर सकते हैं। ऋषि विश्वामित्र राम को दिव्यास्त्रों का ज्ञान देने का निश्चय करते हैं। वे उन्हें क्षत्रिय धर्म का महत्व बताते हैं और सचेत करते हैं कि क्षत्रिय को धर्मपालक के रूप में शस्त्र धारण करना चाहिये। उसे न तो अकारण अस्त्र-शस्त्र का उपयोग करना चाहिये और न ही किसी निर्दोष पर शस्त्र प्रहार करना चाहिये। ऋषि विश्वामित्र राम को दिव्यास्त्रों का महत्व और उनके मंत्र बताते हैं। दिव्य अस्त्र कितने प्रकार के होते हैं, इसका ज्ञान देते हुए वे श्रीराम को शिव का शूलमक नामक अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, श्रीनारायण अस्त्र आदि दिव्यास्त्रों से राम को आत्मसात कराते हैं। ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहुति के दिन आश्रम में रावण के गुप्तचर असुर सुबाहु और मारीच आते है और यज्ञ में विघ्न डालने की चेष्टा करते हैं। भ्राता लक्ष्मण के साथ वहाँ पहरा दे रहे श्रीराम सुबाहु का वध कर देते हैं। राम जी के बाण से आहत होकर मारीचि दूर दक्षिण में समुद्र तट पर जा गिरता है। इससे प्रसन्न होकर ऋषि विश्वामित्र श्रीराम का आभार मानते हैं। वे राम को आपने साथ मिथिला चलने के लिये आमंत्रित करते है जहाँ सीता जी का स्वयंवर होने वाला है। मिथिला नरेश जनक के पास भगवान शिव का एक अनोखा धनुष है जिस पर प्रत्यन्चा चढ़ाने वाले वीर से सीता का विवाह करने की जनक ने प्रतिज्ञा ली होती है। मार्ग में ऋषि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को पवित्र नदी गंगा के दर्शन करवाते है और गंगावतरण की कथा सुनाते हैं। वे राम लक्ष्मण को बताते हैं कि गंगा मैया किस प्रकार पृथ्वी को उनके एक पूर्वज की देन है। इक्ष्वाकु वंश में एक राजा सगर हुआ करते थे। एक बार राजा सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। इन्द्र उनसे ईर्ष्या करता था। वह राजा सगर के यज्ञ का घोड़ा चुराकर पाताल लोक ले गया और वहाँ कपिल मुनि के आश्रम में छोड़ गया। राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूंढ़ते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और वहाँ उन्होने मुनिवर का अपमान किया। इससे कपिल मुनि क्रोधित हुए और उन्होंने श्राप देकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। आगे चलकर राजा सगर के वंशज भगीरथ ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और उनसे अपने पूर्वजों को तारने के के लिये गंगाजी को पृथ्वी पर भेजने का वर मांगा। किन्तु गंगा का वेग पृथ्वी सम्भाल नहीं सकती थीं तो ब्रह्मा जी के कहने पर महाराज भगीरथ ने पुनः तप करके शिवजी को प्रसन्न किया। शिवजी प्रकट हुए। महादेव ने भगीरथ को वचन दिया वो गंगा को अपने शीश पर धारण कर लेगें। ब्रह्मा के आदेश पर भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर गंगा जी आकाश से धरती पर आयी। शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया और उनकी एक धारा को धरती पर बहने दिया। गंगा के अवतरण से पाताल लोक और पृथ्वी लोक पर सबका कल्याण हुआ। इसके पश्चात ऋषि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अहिल्या की कथा भी सुनाते हैं कि किस प्रकार देवराज इंद्र के कपट से अहिल्या जी को अपने पति गौतम ऋषि से श्राप मिलता है और वे शिला बन जाती है। तब राम जी के चरण स्पर्श से अहिल्या का उद्धार होता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Tara - तारा

श्रीमद् रामायण में तारा का चरित्र एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण रूप से उभरता है। तारा, किष्किंधा नगर के महान वानर राजा वाली की पत्नी थीं। वाली और तारा का विवाह वानर समुदाय में प्रेम के एक उदाहरण के रूप में माना जाता था। तारा का पूरा नाम अत्यंत सुंदरी ताराका था, जो उनकी सुंदरता को व्यक्त करता था। उनकी स्नेही और सदैव परोपकारी स्वभाव ने उन्हें वानर समुदाय में महत्वपूर्ण बना दिया था।

तारा एक बुद्धिमान, विद्वान् और साहसिक महिला थीं। वाली की साहसिक गुणवत्ता के कारण, उन्होंने वानरों के बीच एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बनाया था। उन्होंने वानर समुदाय के सभी सदस्यों का सम्मान किया और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए प्रयास किए। तारा बुद्धिमान वैद्यकीय ज्ञान की धारा थीं और उन्होंने वानर सेना की चिकित्सा और उनकी सेवाओं का प्रबंधन किया। वानर समुदाय में उनका उदाहरणीय आदर्श स्थान था और वे वानरों के लिए एक माता के समान थीं।

तारा की उपस्थिति वानर सेना के लिए एक आधारभूत सामर्थ्य थी। वाली द्वारा नेतृत्व किए जाने वाले सेनानायक के रूप में तारा की बुद्धि और वाणी का महत्वपूर्ण योगदान था। वानर सेना के प्रमुख नेता के रूप में, उन्होंने वानरों के बीच न्याय और समानता के सिद्धांत को स्थापित किया। तारा वाली के साथ एक ऐसी जीवन जीती थी जिसमें संयम और न्याय का महत्वपूर्ण स्थान था।

तारा अपनी श्रद्धा और निष्ठा के लिए भी प्रसिद्ध थीं। उन्होंने वानर समुदाय में आध्यात्मिक संघ के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने वानर समुदाय के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा दी और उनके आध्यात्मिक विकास का समर्थन किया। तारा धार्मिक और मनोवैज्ञानिक सुधारों को समर्थन करती थीं और उन्होंने वानर समुदाय के सदस्यों को धार्मिकता के मार्ग पर अग्रसर किया।

तारा रामचरितमानस में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वाल्मीकि जी महर्षि द्वारा लिखित इस ग्रंथ में उनका वर्णन किया गया है और उनकी साहसिकता, विवेक और धार्मिकता की प्रशंसा की गई है। उन्होंने लक्ष्मण के साथ राम को सम्पूर्णता के रूप में शरण दी और उन्हें वानर सेना का नेतृत्व सौंपा।

तारा की प्रतिभा, शक्ति और साहस ने उन्हें एक प्रमुख चरित्र बना दिया है। उनका प्रेम और समर्पण उन्हें वानर समुदाय में महत्वपूर्ण स्थान देता है और उन्हें एक आदर्श पत्नी के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। उनका चरित्र रामायण के महान काव्य में सुंदरता और प्रेरणा का स्रोत बनता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.