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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : नल-नील द्वारा सेतु बन्ध। श्री रामेश्वरम् की स्थापना। राम सेना का समुद्र पार करना।

रामायण : Episode 53

नल-नील द्वारा सेतु बन्ध। श्री रामेश्वरम् की स्थापना। राम सेना का समुद्र पार करना।

सागर पर सेतु बन्ध शुरू होता है। हनुमान हर पत्थर पर राम का नाम लिखते जाते हैं। वानर सेना इन पत्थरों को नल नील तक पहुँचाती है और वे दोनों भाई उन्हें सागर जल में तिराते जाते हैं। इन पत्थरों को समुद्रदेव सहारा देते हैं। पाँच दिनों में सेतु निर्माण पूर्ण होता है। इसके साथ ही राम द्वारा शिव पूजन भी पूर्ण होता है। राम भगवान शिव से कहते हैं कि आपके तमाम नाम हैं, अब वे उनका एक नाम और स्वीकार करें। आपको भक्त श्री रामेश्वर के नाम से भी जानें। रामेश्वर यानि राम के ईश्वर। राम सेतु पार करने से पहले अपनी सेना में उस्ताह भरते हैं। हर हर महादेव के साथ राम की सेना लंका को कूच करती है। राम उनका नेतृत्व करते हैं। सागर पर सेतुबन्ध के समाचार पर रावण को विश्वास नहीं होता। वह असहज होता है। वो जानता है कि यदि राम लंका पहुँच गये तो सीता कभी उसकी नहीं हो सकेगी। इसलिये वो सीता को राम की मौत की झूठी सूचना देने के लिये प्रपंच रचता है ताकि राम को मरा जानकर सीता उसकी पत्नी बनना स्वीकार कर ले। रावण अशोक वाटिका जाकर सीता के समक्ष एक थाल रखता है जिसपर उसकी माया द्वारा रचा राम का कटा हुआ सिर है। सीता स्तब्ध होती हैं। वे विचार कर परेशान होती हैं कि जब राम मृत्यु को प्राप्त हुए तो इसका भान उनकी सीता को क्यों नहीं हुआ। तभी एक सन्देश वाहक आकर कहता है कि युवराज इन्द्रजीत ने आवश्यक सभा बुलायी है और महाराज रावण को भी याद किया है। रावण अनिच्छापूर्वक वहाँ से जाता है। रावण के जाते ही उसकी माया द्वारा रचित राम का सिर भी अदृश्य हो जाता है। त्रिजटा सीता को बताती हैं कि राम सकुशल हैं और सागर पर सौ योजन लम्बा पुल बाँधकर वे सेना समेत लंका की धरती पर पहुँच चुके हैं। सीता धरती माता को ऐसे स्पर्श करती हैं मानो वे राम के चरण स्पर्श कर रही हों। राम सीता के इस स्पर्श का अनुभव करते हैं। विभीषण द्वारा बनायी गयी रणनीति के अनुसार लंका के बाहर राम की अस्थायी सैन्य छावनी का निर्माण होता है। लक्ष्मण बड़े भाई राम के ठहरने के लिये पर्ण कुटी बनाते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Ravana - रावण

रावण, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख पात्र है और भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह महाभारत काल से पहले के युग में राज करने वाले लंका के राजा थे। रावण एक महान विद्वान, ब्राह्मण, महर्षि, विशेषज्ञ योद्धा और शैलीशील राजा थे। वह राजा दशरथ के विरुद्ध भी लड़े और उनके पुत्र रामचंद्र को पराजित करने का प्रयास किया। रावण को माना जाता है कि उन्होंने दशरथ की पत्नी कौशल्या की प्रतीक्षा में अयोध्या में पहुंचने वाली विमला को अपहरण किया था, जिसके बाद उन्होंने उसे अपनी विरासती भारती रानी के रूप में शापित किया।

रावण की विशेषताएं उनके अस्त्र-शस्त्र विज्ञान में अद्वितीय थीं। उन्हें अस्त्र-शस्त्र और तंत्र-मंत्र की गहरी ज्ञान थी और उनकी ताकत को देखकर लोग उन्हें मानवीय शक्ति से भी प्रभावित होते थे। रावण के दस सिर थे, जिनमें हर एक का अपना विशेष महत्व था। इन सिरो में से एक सिर को ही उनकी अवधि यानी उम्र प्रतिनिधित्व करता था। इसके अलावा, रावण को अजेय बनाने के लिए उन्होंने अपने शरीर को अभिजीत करने के लिए विशेष तपस्या की थी।

रावण को एक अद्वितीय कवच भी प्राप्त था, जिसकी रक्षा उन्हें अजेय बनाती थी। वह ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त हुआ था और उन्हें मौनी सिद्धि भी प्राप्त थी, जिससे उन्हें अस्त्रों की शक्ति इच्छानुसार प्रयोग करने की अनुमति मिलती थी।

रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी थे, जिन्होंने उनके समर्थन में कई युद्ध किए थे। मेघनाद को वारुण देवता ने अजेयता दी थी और उन्हें अपराजित बना दिया था। रावण के इस पुत्र की सहायता से रावण ने बहुत सारे युद्ध जीते और ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी पराजित किया।

रावण को विशेष रूप से उनके तेज, यश और धन के कारण यहां तक कि सूर्य, चंद्रमा और अग्नि भी उनके समर्थन में रहते थे। उन्हें दया, करुणा और धर्म की अच्छी जानकारी थी, लेकिन उनका गर्व और अहंकार उन्हें अन्यायपूर्ण और अत्याचारी बना दिया।

रावण एक विशालकाय राक्षस राजा थे, जो सुंदर और प्रभावशाली राजमहल में बसते थे। उनकी ताकत, साहस और समर्पण उन्हें वीरता के प्रतीक बनाते थे। रावण का रंग काला था और उनके नेत्र लाल थे। उनके मुख पर विशेष तरीके से राजसी और आदर्शवादी मुद्रा थी।

रावण के चरित्र में विभिन्न रंग हैं। उन्हें अपराधी, अहंकारी, अत्याचारी और अधर्मी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, उनका प्रेम पत्नी मंदोदरी के प्रति गहरा और सच्चा था। वे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे, जो विश्वास को महत्व देते थे।

रावण के चरित्र का अध्ययन एक गहरा और महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि उनकी कथा और उनके विभिन्न पहलुओं में संघर्ष और पराजय की कथा है। वे एक उदाहरण हैं जो अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की नष्टि को देखते हैं। उनकी गरिमा और पात्रता के साथ उनके पापों की सीमाओं का अनुभव करने वाले लोग भी थे।

रावण एक रोचक पात्र है जिसके चरित्र में समय के साथ विकास हुआ है। वे सत्ता, शक्ति और दम्भ के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी अहंकारी और न्यायवादी स्वभाव ने उन्हें अवरोधित कर दिया। रावण का चरित्र अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है, जो हमें दिखा सकता है कि अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप न्याय और सत्य की पराजय कैसे होती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.