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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : रावण द्वारा सुग्रीव को सन्धि प्रस्ताव, सुग्रीव द्वारा अस्वीकार।

रामायण : Episode 51

रावण द्वारा सुग्रीव को सन्धि प्रस्ताव, सुग्रीव द्वारा अस्वीकार।

रावण को गुप्तचर शार्दूल से राम की छावनी का हाल मिलता है। मेघनाद का मत है कि राम की सेना सागर पार करे, इसके पहले आकाश में उड़ने वाले राक्षसों के माध्यम से उन पर आक्रमण बोल देना चाहिये। किन्तु सेनापति अकम्पन की राय अलग है। वह कहता है कि अपनी भूमि पर युद्ध लड़ना अधिक सुरक्षित रहता है। शत्रु की भूमि पर तभी युद्ध करना चाहिये, जब उसके राज्य पर कब्जा करना हो। नाना माल्यवान कहता है कि राम सागर तट तक आ पहुँचें हैं तो इसे पार करने की योजना भी उनके पास जरूर होगी। रावण कूटनीतिक निर्णय लेता है कि सुग्रीव की राम के साथ हुई सन्धि को तोड़कर उसे अपने साथ मिला लिया जाये। रावण शूक नामक मायावी गुप्तचर को सुग्रीव को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करने के लिये भेजता है। शूक पक्षी का रूप रखकर राम छावनी में घुसता है, सैनिकों का वार्तालाप सुनता है। विभीषण की नजर पक्षी रूपी शूक पर पड़ जाती है। वो उसे पहचान जाते हैं और उसका पीछा करते हुए सुग्रीव के शिविर तक पहुँचते हैं। शूक अपने वास्तविक रूप में आकर सुग्रीव को रावण का सन्देश देता है। शूक कहता है कि रावण उनसे बालि की भाँति मित्रता स्थापित करना चाहता है। वह सुग्रीव से रावण के साथ सैन्य संधि करने का प्रस्ताव रखकर धन सम्पदा और भोग विलास के साधनों का प्रलोभन देता है। शूक यह भी स्पष्ट करता है कि यह संधि प्रस्ताव ठुकराने पर रावण सुग्रीव का अहित कर सकता है। सुग्रीव कहते हैं कि रावण ने जिस बालि का हवाला देकर मित्रता प्रस्ताव भेजा है, उन्हीं बालि ने मरते समय उनसे श्रीराम का साथ देने का निर्देश दिया था। सुग्रीव शूक को उलटे पाँव वापस भेज देते हैं। विभीषण छिपकर दोनों की बातचीत सुनते हैं और सुग्रीव की सत्यनिष्ठा पर प्रसन्न होते हैं। सागर तट पर मंत्रणा करते हुए राम विभीषण से सागर पार जाने का उपाय पूछते हैं। विभीषण कहते हैं कि आकाश मार्ग से जाने की असुर विद्या वानरों को नहीं सिखायी जा सकती है और यदि वानर सेना नाव से जाती है तो उस पार उतरने से पहले रावण के यन्त्र उनकी नावें डुबो देंगे। विभीषण राम से कहते हैं कि उनके पूर्वज राजा सगर ने धरती खुदवा कर समुद्र को विशालता प्रदान की थी। इस उपकार के बदले वे समुद्र से लंका तक जाने के लिये रास्ता छोड़ने की प्रार्थना करें। हालाँकि लक्ष्मण माँगने के विरूद्ध हैं। वह बड़े भाई से क्षत्रिय की भाँति धनुष पर अग्निबाण का संधान कर समुद्र सुखाने को कहते हैं। राम लक्ष्मण से असहमत होते हैं और अन्न जल त्याग कर समुद्रदेव की उपासना प्रारम्भ करते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Jatayu - जटायु

रामायण में जटायु एक महत्वपूर्ण पात्र है जो योद्धा और वानर वंश का सदस्य है। वह एक गरुड़ विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, जो सूर्य और वायु देवताओं के बेटे के रूप में प्रस्तुत होता है। जटायु का नाम उसकी बाहुओं के झुलसने के लिए उन्हें एक झूला जैसा आकार देने वाले विशेष पट्टों से प्राप्त हुआ है।

जटायु एक महान स्वतंत्र जीवी हैं, जो पहाड़ों और जंगलों में घूमते रहते हैं। वह बड़े पंखों और संचालन क्षमता वाले मुखवाले के साथ एक विशाल शरीर हैं जो उसे ऊँची ऊँची उड़ानें भरने की क्षमता प्रदान करता है। जटायु के पंख पीले और धूसर रंग के होते हैं, जिनमें धूप के बीजों के समान चमक होती है। उसकी आंखें तेज और प्रज्वलित होती हैं, जैसे कि वह अस्त चमक और तपती धूप के सामर्थ्य का प्रतीक है।

जटायु को उसकी विशेष बुद्धिमत्ता के लिए भी पहचाना जाता है। वह बहुत ही ज्ञानी और सत्यनिष्ठ हैं, और उसका विचारधारा परम धर्मवत सत्य के आधार पर निर्मित है। जटायु ने अपना जीवन वीरता और निष्ठा के साथ बिताया है और उसकी प्रामाणिकता और निष्ठा के कारण वह अपने वंश के बीच मान्यता प्राप्त करता है।

जटायु की प्रमुख भूमिका रामायण में समय आती है, जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान रावण द्वारा हरण किए जाते हैं। जब राम और लक्ष्मण रावण की खोज में निकलते हैं, तो जटायु उन्हें देखकर वन में दौड़ता है और रक्षा के लिए आगे आता है। वह रावण के साथ लड़ता है और उसकी विपरीत बल से जूझता है, लेकिन दुःख के साथ, उसे हार का सामना करना पड़ता है।

जटायु के महान कर्तव्य के बीच, उसके पास परमात्मा राम का दर्शन होता है। राम उसके पास जाते हैं और जटायु के शरण में अपनी दुःखभरी कथा सुनते हैं। जटायु राम को उसकी प्राणों की गाथा बताता है और उसे द्वंद्व निद्रा में से जगाकर रक्षा करता है। जब जटायु इस युद्ध में मारा जाता है, तो राम उसे अपने आवागमन के लिए सलामी देते हैं और उसकी महिमा को मान्यता देते हैं।

जटायु का पात्र रामायण में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो विशेष रूप से सेवा और बलिदान का प्रतीक है। उसकी प्रमाणिकता, त्याग, और शक्ति दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। जटायु ने धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ समर्पित किया और अपनी वीरता और विश्वास के कारण एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.