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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : हनुमान का समुद्र लाँघना। सुरसा का सामना। लंकिनी को परास्त करना। विभीषण से भेंट।

रामायण : Episode 43

हनुमान का समुद्र लाँघना। सुरसा का सामना। लंकिनी को परास्त करना। विभीषण से भेंट।

सीता की खोज में निकला वानर दल हनुमान को उनका विस्मृत बल याद दिलाता है कि किस प्रकार उन्होंने अपने बचपन में सूर्य को एक फल समझकर अपने मुँह में भर लिया था। इससे तीनों लोक में अन्धकार छा गया था। जब देवताओं ने आकर विनती की तब उन्होंने सूर्य को छोड़कर कष्ट निवारण किया था। जामवन्त हनुमान को यह भी याद दिलाते हैं कि वे हर दिन राम का नाम जपते रहे हैं और आज जब राम का काम आन पड़ा है तो उन्हें इसे पूर्ण करने के लिये अपना बल कौशल दिखाना होगा। बजरंग बली श्राप से मुक्त होते हैं, उन्हें अपना बल याद आता है और वे समुद्र लाँघने के लिये उड़ान भरते हैं। समुद्र के गर्भ से मैनाक पर्वत उभरता है और हनुमान से उसके शिखर पर कुछ देर विश्राम करने का निवेदन करता है किन्तु हनुमान को रामकाज किये बिना चैन कहाँ, सो वे बिना रुके अपनी यात्रा जारी रखते हैं। हनुमान के मार्ग में सुरसा राक्षसी उन्हें अपना आहार बनाने के लिये मुख खोले आती है। हनुमान सुरसा से निवेदन करते हैं कि वे सीता का पता लगाने के बाद वे स्वयं उसका आहार बनने के लिये वापस आ जायेंगे। सुरसा हनुमान को बताती है कि उसे ब्रह्मा का वरदान है, उसे लाँघ कर कोई आगे नहीं जा सकता, इसलिये हनुमान को उसके मुँह के अन्दर जाना ही पड़ेगा। हनुमान इस विपत्ति को टालने के लिये बल नहीं, बुद्धि का सहारा लेते हैं। वे अपना आकार बहुत बड़ा कर लेते हैं। उनको मुँह में समाने के लिये सुरसा को अपना बदन बढ़ाना पड़ता है। तभी हनुमान अति लघु रूप कर लेते हैं और सुरसा के मुख में प्रवेश कर फुर्ती से बाहर निकल आते हैं। इस तरह ब्रह्मा के वरदान की रक्षा भी हो जाती है। राक्षसी सुरसा भी एक सुन्दर नारी में परिवर्तित होकर बताती है कि वो नागमाता है और देवताओं के कहने पर वो उनके बल और बुद्धि की परीक्षा लेने आयी थीं। हनुमान के रास्ते एक और विचित्र बाधा आती है। बीच समुद्र में सिहिका निशाचरी रहती है। वो आकाश में उड़ने वाले पंछियों को उनकी परछायी से पकड़ कर खा जाती थी। सिहिका ने पानी में हनुमान की छाया को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लिया तो आकाश हनुमान का उड़ना रुक गया। सिहिका हनुमान की परछायी को पकड़कर उन्हें नीचे उतार लाती है और अपने मुख में रख लेती है तब हनुमान गदा प्रहार से उसका मस्तिष्क फाड़कर बाहर निकल आते हैं। सिहिका का प्राणान्त होता है। हनुमान सात योजन समन्दर पार करके लंका की धरती पर उतरते हैं और अति सूक्ष्म रूप धारण कर लंका में प्रवेश का प्रयास करते हैं लेकिन लंका की नगरदेवी लंकिनी की दृष्टि उनपर पड़ जाती है। वो हनुमान को रोकती है। हनुमान विशाल आकार धारण कर लंकिनी पर गदा से प्रहार करते हैं। घायल लंकिनी बताती है कि ब्रह्मा ने उससे कहा था था कि जब वो किसी वानर एक प्रहार से परास्त हो जाये तो समझ ले कि लंका के विनाश का समय आ गया है। वो हनुमान को अन्दर जाने देती है। अति सूक्ष्म रूप में हनुमान लंका का निरीक्षण करते हैं। महल में रावण को सोता देखकर हनुमान का मन एकबारगी उसे मार डालने का भी होता है। हनुमान सीता जी को नहीं पहचानते हैं। वे एक कक्ष में मन्दोदरी को सोता देखते हैं लेकिन उसके शान्त चित्त से समझ जाते हैं कि ये स्त्री सीता नहीं हो सकती। इसके बाद हनुमान विभीषण के महल में पहुँचते हैं। यहाँ राम का नाम सुनकर हनुमान ब्राह्मण का रूप रखकर विभीषण के सामने आते हैं। विभीषण उन्हें सीता को अशोक वाटिका में रखे जाने की जानकारी देते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Kaikeyi - कैकेयी

कैकेयी एक प्रमुख चरित्र है जो प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण में दिखाई देती है। वह माता कैकेयी थीं, और उन्होंने अयोध्या के राजा दशरथ की रानी के रूप में भी जानी जाती है। कैकेयी का चरित्र व्यापक रूप से विवरणशील रूप से विकसित किया गया है और उनके भूमिका ने कहानी को महत्वपूर्ण धाराओं पर प्रभाव डाला है। कैकेयी के जीवन की घटनाओं ने रामायण के प्लॉट को प्रभावित किया है, खासकर उनके पति दशरथ और पुत्र राम की जीवन पर।

कैकेयी को परंपरागत रूप से सुंदरी, शक्तिशाली, और साहसिक राजमाता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। उन्हें समाज की महत्त्वाकांक्षी और आदर्श नारी के रूप में दिखाया जाता है, जो अपनी परिवारिक महत्त्वाकांक्षाओं के लिए अत्यंत साहसिक और कट्टरता के साथ काम करती है। वे राजमहल के बाहर स्वतंत्र रूप से राजनीतिक कार्यों में हिस्सा लेती हैं और अपनी आत्मविश्वास और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करती हैं। कैकेयी एक महत्त्वाकांक्षी रानी की भूमिका में पूर्णता के साथ उभरती हैं और राजनीतिक निर्णयों के लिए उदार और प्रगट होती हैं।

कैकेयी के कई गुणों ने उन्हें एक विवादास्पद पात्री बनाया है। उनकी सबसे महत्वपूर्ण गुणधर्म उनकी नीति और बुद्धिमत्ता हैं, जो उन्हें अपने परिवार की रक्षा करने के लिए उच्चतम समाजिक और नैतिक मानकों का पालन करने पर मजबूर करती हैं। हालांकि, इसके बावजूद, उनके कदमों ने रामायण की कथा में घमंड और नीतिबद्धता की उच्चता को भी दर्शाया है। उन्होंने राजा दशरथ को दशरथ नहीं होने के लिए दोषी ठहराया जब उन्होंने राम को अयोध्या के राजा के रूप में चुनने की मांग की। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने राम को वनवास भेजने का निर्णय लिया, जो राम के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया।

कैकेयी का चरित्र द्वितीयकांड के दौरान विस्तारपूर्वक विकसित किया गया है। उनके चरित्र में बदलाव देखने के लिए कई पात्रों के साथ उनके संवाद और प्रतिक्रियाएँ दिखाई गई हैं। उनका मूख्य उद्देश्य अपने पुत्र भरत को राजमहल के राजा के रूप में चुनने की होती है, और उन्होंने इसके लिए उनके पति दशरथ को मनाने के लिए विभिन्न रचनात्मक उपाय अपनाए। उनके चरित्र का यह पहलु दिखाता है कि वे मातृभाव की महत्त्वाकांक्षाओं के लिए उत्साहवान हैं और उन्हें अपने परिवार के लिए उच्चतम भूमिका में देखना चाहती हैं।

कैकेयी का चरित्र भारतीय साहित्य में अपनी विवादास्पद प्रकृति के लिए प्रसिद्ध है। उन्हें प्रशंसा और निंदा दोनों का शिकार किया गया है। कुछ लोग कैकेयी को अनुशासनशील, साहसिक, और स्वाभिमानी महिला के रूप में मानते हैं, जो अपने परिवार की सुरक्षा के लिए लड़ती हैं। वे उनकी नीतिबद्धता की प्रशंसा करते हैं और उन्हें अपनी प्रबल व्यक्तित्व के कारण समर्थन देते हैं। हालांकि, दूसरी ओर, कुछ लोग कैकेयी को भ्रष्ट, आदर्शों से विचलित, और अहंकारी महिला के रूप में देखते हैं, जो अपनी नीतिबद्धता के लिए अपराधी मानी जाती है। उन्हें उनके कदमों के कारण घमंड और स्वार्थपरता का दोषी ठहराया जाता है।

समग्र रूप से कहें तो, कैकेयी एक महिला है जिसे उसकी परिवारिक और सामाजिक महत्त्वाकांक्षाएं निरंतर मुड़ाती रहती हैं। उनका चरित्र व्यापकता से विकसित है, जो उन्हें साहसिकता, नीतिबद्धता, और स्वतंत्रता के साथ दिखाता है। वे परिवार के लिए उच्चतम भूमिका का ख्याल रखती हैं, जिसके लिए वे नकारात्मक परिणामों को भी सहन करने को तैयार हैं। कैकेयी का चरित्र एक द्वंद्वात्मक पात्री की उदाहरण है, जिसने विवादास्पद परिणाम लाए हैं और जिसके कारण उन्हें प्रशंसा और निंदा दोनों का हिस्सा बना दिया है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.