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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : तपस्विनी स्वयंप्रभा और सम्पाति की वानरदल को मदद।

रामायण : Episode 42

तपस्विनी स्वयंप्रभा और सम्पाति की वानरदल को मदद।

दक्षिणगामी वानर दल में अंगद, हनुमान और जामवन्त हैं। वे अपने पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं। एक पर्वत कन्दरा से जलपक्षी बाहर निकलते देखकर उन्हें पानी मिलने की आशा है। प्यास बुझाने वे सभी अन्दर जाते हैं। वहाँ उन्हें तपस्विनी स्वयंप्रभा के दर्शन होते हैं। वे अपने तपोबल से सभी को पहचान लेती हैं। स्वयंप्रभा मेरूस्वार्नी की पुत्री हैं जिनका जन्म ब्रह्मा के वरदान से हुआ था। तपस्विनी स्वयंप्रभा ने सभी वानरों को क्षुधा शान्त करने के लिये फलादि प्रदान किये। उन्होने वानरदल की जिज्ञासा शान्त करते हुए बताया कि इस स्थान का निर्माण मय नामक दानव ने अपनी माया किया था। मय दानव का मन हेमा नाम की अप्सरा पर आ गया। तब मय ने अप्सरा को प्राप्त करने के लिये देवराज इन्द्र से युद्ध किया जिसमें वह मारा गया। इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने इस सुन्दर वन की रक्षा का दायित्व हेमा को सौंप दिया और हेमा ने स्वयंप्रभा को। तपस्विनी स्वयंप्रभा कहती हैं कि इस स्थान पर आने वाला जीवित वापस नहीं जाता है किन्तु वानर दल प्रभु श्रीराम के कार्य से आया है तो उसपर कोई विपत्ति नहीं आयेगी। पेट भरने के बाद वानरदल अब बाहर जाना चाहता लेकिन उन्हें मार्ग नहीं सूझता। तब हनुमान स्वयंप्रभा से विनती करते हैं। स्वयंप्रभा अपने तपोबल से सम्पूर्ण वानर दल को सीधे समुद्र तट तक पहुँचा देती हैं और खुद बद्रिक आश्रम की ओर प्रस्थान कर जाती हैं। सीता खोज के लिये निर्धारित एक मास की अवधि बीतने को है। अभियान को विफल होता देखकर अंगद समुद्र तट पर अन्न जल छोड़कर प्राण त्यागने का निर्णय लेते हैं। उनके साथ पूरा दल अनशन पर बैठ जाता है। इस स्थान के निकट रहने वाला गिद्धराज सम्पाति उनकी बातचीत सुनता है। सम्पाति को हनुमान से सीता हरण और रावण से यु़द्ध करके वीरगति को प्राप्त होने वाले जटायु के बारे में पता चलता है। सम्पाति जटायु का बड़ा भाई है। एक बार सम्पाति और जटायु अपनी शक्ति के मद में सूर्य तक पहुँचने के लिये उड़ान भरते हैं लेकिन सूर्य की प्रचण्ड गर्मी से दोनों जलने लगते हैं। तब सम्पाति अपने परों की छाया में अनुज जटायु को बचाकर धरती पर ले आता है। किन्तु उसके अपने पर जल जाते हैं। हनुमान की प्रार्थना पर सम्पाति अपनी गिद्धदृष्टि से लंका के अशोक वाटिका तक देख लेता है और बताता है कि सीता किसी वृक्ष के नीचे शोकग्रस्त बैठी हैं। अब उनके सामने समस्या चार सौ कोस समुद्र लाँघने की है। जामवन्त हनुमान को उनका अपार बल याद दिलाते हैं। वे कहते हैं कि हनुमान भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र हैं। हनुमान पवनपुत्र हैं और उनमें पवनवेग से उड़ने का साहस है। जामवन्त कथा सुनाते हैं कि उनका नाम हनुमान एक घटना के कारण पड़ा था। एक बार इन्द्र ने अज्ञानतावश पवनपुत्र पर वज्र से प्रहार कर दिया था। वे उदयगिरी पर्वत पर जाकर गिरे थे और उनकी ठुड्डी पर चोट लग गयी थी। तब से उनका नाम हनुमान पड़ा। जामवन्त बताते हैं कि बालकाल में बजरंगबली अपने बल का उपयोग कर तपस्या करने वाले ऋषियों मुनियों को बहुत सताया करते थे। तब एक ऋषि ने उन्हें अपनी सारी शक्तियाँ भूल जाने का श्राप दे दिया था किन्तु माता अंजनि के निवेदन पर ऋषि ने उपाय दिया था कि यथोचित समय पर हनुमान को शक्तियों की याद दिलाई जायेगी तो वह अपनी सारी शक्तियाँ पुनः हासिल कर लेंगे। जामवन्त हनुमान को उनकी भूली शक्तियाँ याद दिलाते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sita - सीता

सीता हिन्दू धर्म की महान पुराणिक कथाओं और एपिक महाभारत और रामायण के अनुसार एक महान महिला चरित्र है। उनका वर्णन भारतीय साहित्य में सुंदरता, सामरिक योग्यता, पतिव्रता, संयम, त्याग और प्रेम के साथ जोड़ा जाता है। सीता का जन्म मिथिला राज्य के राजा जनक के घर में हुआ था। वे एक अत्यंत सुंदर, आकर्षक और सुशील महिला थीं। उनकी कामुकता और अनुशासनशीलता के कारण उन्हें जनकपुरी में 'जनकनंदिनी' के रूप में पुकारा जाता था। सीता की विवाह कथा महाराज दशरथ के पुत्र भगवान राम से जुड़ी है। वे राम की पत्नी और मान्यता हैं। सीता को अपनी पति के प्रेम का प्रतीक माना जाता है और उन्होंने अपने पति के लिए बड़ी परीक्षा का सामना किया। उन्होंने रावण के द्वारा किये गए अपहरण का सामना किया और अयोध्या वापस आने के बाद भी राम ने उन्हें अग्नि परीक्षा में भेजा। सीता ने इन परीक्षाओं का सामना किया और अपने पति की वफादारी और पतिव्रता का प्रमाण द िया। सीता का वर्णन करते समय उनकी सुंदरता को न छोड़ा जा सकता है। उनका चेहरा अत्यंत प्रकृष्ट और प्रकाशमय होता था। उनकी नेत्र अत्यंत मनोहारी थीं और उनके बाल लंबे, काले और चमकदार थे। वे हमेशा सर्वत्र प्रकृष्ट वस्त्रों में बांधी रहती थीं और उनके आभूषण भी अत्यंत सुंदर और मोहक होते थे। सीता की परीक्षाएं और वफादारी ने उन्हें भारतीय समाज में महिलाओं के लिए आदर्श बना दिया है। उन्होंने संयम और समर्पण की उच्चता का प्रतीक दिखाया। वे अपने पति की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार थीं। उन्होंने पतिव्रता की महत्ता को साबित किया और उनका प्रेम विश्वासयोग्यता और त्याग के उदाहरण के रूप में उठाया गया है। सीता ने अपनी पति और परिवार के लिए बहुत कुछ संभाला है। उन्होंने अपनी सभी परिस्थितियों में धैर्य और सहनशीलता दिखाई है। उन्होंने अपने पति राम के साथ वनवास काल में अपने पूत्र लव और क ुश की पालना की है। वे एक माता के रूप में बहुत सम्मानित हैं और उनकी मातृभूमि को महत्त्व दिया जाता है। सीता का वर्णन करते समय, उनके धर्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वे धार्मिकता, ईमानदारी, न्याय और सच्चाई के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन को धर्म के मार्ग पर बिताया और अपनी मान्यताओं और नियमों का पालन किया। सीता का वर्णन करते समय, हमें उनके अनन्य प्रेम का भी स्मरण करना चाहिए। उन्होंने अपने पति और परिवार के प्रति अपार प्रेम और समर्पण दिखाया है। उनकी प्रेम पूर्ण और निःस्वार्थ है, जो एक पत्नी और माता के लिए आदर्श होना चाहिए। सीता हिन्दू धर्म की एक महान महिला चरित्र हैं, जिन्हें आदर्श और प्रेरणा के रूप में मान्यता दी जाती है। उनका वर्णन हमें सुंदरता, सामरिक योग्यता, पतिव्रता, संयम, त्याग और प्रेम की महत्ता समझाता है। सीता ने अपने जीवन के माध्यम से हमें नैतिकता, सामरिक योग्यता, और पतिव्रता के आदर्श का पालन करने की प्रेरणा दी है। उनकी बातों और कृतियों के माध्यम से हमें जीवन में सत्य, ईमानदारी, त्याग, सहनशीलता, और प्रेम की महत्ता को समझने का अवसर मिलता है। सीता का वर्णन हमें एक साथियक और आदर्श पत्नी की उपासना करने का उत्साह प्रदान करता है। उनके महान गुणों की सराहना करते हुए हम उन्हें एक अद्वितीय महिला चरित्र के रूप में स्वीकार कर सकते हैं और उनकी प्रेरणा से एक महिला के जीवन को उज्ज्वल और सार्थक बना सकते हैं।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.