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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : तारा का विलाप। बालि का अन्तिम संस्कार।

रामायण : Episode 39

तारा का विलाप। बालि का अन्तिम संस्कार।

बालि मरते समय सुग्रीव से क्षमा माँग कर किष्किंधा का राज्य उसे देता है। सुग्रीव को भी पछतावा है कि उसने भाई को मरवा दिया। बालि इसे पूर्वजन्मों का दोष मानता है कि एक माँ जाए होने के बावजूद दोनों भाई साथ साथ प्रेमपूर्वक नहीं रह सके। बालि अपने गले में पड़ी इन्द्र देव की कीर्तिभ माला भी सुग्रीव को देता है। इस माला के प्रभाव से ही युद्धभूमि में बालि को अपने शत्रु की आधी शक्ति मिल जाती थी। बालि अपने पुत्र अंगद को भी सुग्रीव के हवाले करता है और अपनी पत्नी तारा का तिरस्कार न करने का वचन लेता है। तभी रानी तारा विलाप करते हुए वहाँ पहुँचती है। तारा को आशंका है कि पिता की हत्या के विक्षोभ में डूबा पुत्र अंगद, काका सुग्रीव के संरक्षण में कैसे रह पायेगा। तब बालि राम से अंगद को सुग्रीव की भाँति अपनी शरण में लेने का अनुनय करता है। बालि अंगद को उपदेश देता है कि वो सुग्रीव का विश्वासपात्र बनकर रहे और उसे ही अपना पितातुल्य माने। तारा विलाप करते हुए बालि के साथ जाने की आग्रह करती है। हनुमान उसे समझाते हैं कि उनका विलाप अनन्त पथ पर जाने को अग्रसर पति की आत्मा को वेदना पहुँचा रहा है। उन्हें शान्त चित्त से प्राण त्यागने दीजिये। बालि राम राम कहते हुए प्राण त्यागता है। क्षुब्ध तारा बालि के कलेजे से निकला बाण उठाकर राम के पास ले जाती है और कहती है कि इसी बाण से वे उसका भी अन्त कर दे। तारा कहती है कि यदि राम उसे मारेगें तो उन्हें स्त्री हत्या का पाप नहीं लगेगा बल्कि कन्या दान का पुण्य प्राप्त होगा। तारा कहती है कि राम पिता की भाँति उसे पुत्री मानें और उसके पति के पास परम धाम भेज दें। हनुमान तारा को अब अपने पुत्र अंगद के भविष्य के लिये जीने का उपदेश देते हैं। राम किष्किंधा नरेश बालि का राजकीय सम्मान के साथ अन्तयेष्टि कराते हैं। सुग्रीव का मन आत्मग्लानि से भरता है। वह राज्यसत्ता स्वीकार करने की बजाय सन्यास धारण करने की बात कहता है। राम सुग्रीव की भावनाओं की प्रशंसा करते हैं किन्तु उनके वैराग्य भाव को शमशान वैराग्य बताते हैं। राम कहते हैं कि जब भी किसी व्यक्ति के निकट सम्बन्धी की मृत्यु होती है तो उसके मन में यही शमशान वैराग्य उत्पन्न होता है किन्तु यह भाव अल्पकाल ही रहता है और वह फिर से सांसारिक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। अतएव सुग्रीव को इस वैराग्य भाव से बाहर आकर किष्किंधा का राज्य सम्भालना चाहिये। राम कहते हैं कि वैराग्य का भाव लिये हुआ व्यक्ति ही श्रेष्ठ राजा बन सकता है। राम सुग्रीव से अपने राज्याभिषेक के साथ अंगद को युवराज घोषित करने का परामर्श देते हैं। जामवन्त राम से सुग्रीव के राज्याभिषेक में किष्किंधा नगरी पधारने का निमन्त्रण देते हैं लेकिन राम चौदह वर्ष के वनवास में है तो वे नगर में प्रवेश से इनकार करते हैं और लक्ष्मण को सुग्रीव का राजतिलक करने के लिये कहते है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Ravana - रावण

रावण, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख पात्र है और भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। वह महाभारत काल से पहले के युग में राज करने वाले लंका के राजा थे। रावण एक महान विद्वान, ब्राह्मण, महर्षि, विशेषज्ञ योद्धा और शैलीशील राजा थे। वह राजा दशरथ के विरुद्ध भी लड़े और उनके पुत्र रामचंद्र को पराजित करने का प्रयास किया। रावण को माना जाता है कि उन्होंने दशरथ की पत्नी कौशल्या की प्रतीक्षा में अयोध्या में पहुंचने वाली विमला को अपहरण किया था, जिसके बाद उन्होंने उसे अपनी विरासती भारती रानी के रूप में शापित किया।

रावण की विशेषताएं उनके अस्त्र-शस्त्र विज्ञान में अद्वितीय थीं। उन्हें अस्त्र-शस्त्र और तंत्र-मंत्र की गहरी ज्ञान थी और उनकी ताकत को देखकर लोग उन्हें मानवीय शक्ति से भी प्रभावित होते थे। रावण के दस सिर थे, जिनमें हर एक का अपना विशेष महत्व था। इन सिरो में से एक सिर को ही उनकी अवधि यानी उम्र प्रतिनिधित्व करता था। इसके अलावा, रावण को अजेय बनाने के लिए उन्होंने अपने शरीर को अभिजीत करने के लिए विशेष तपस्या की थी।

रावण को एक अद्वितीय कवच भी प्राप्त था, जिसकी रक्षा उन्हें अजेय बनाती थी। वह ब्रह्मा के वरदान से प्राप्त हुआ था और उन्हें मौनी सिद्धि भी प्राप्त थी, जिससे उन्हें अस्त्रों की शक्ति इच्छानुसार प्रयोग करने की अनुमति मिलती थी।

रावण के शक्तिशाली पुत्र मेघनाद भी थे, जिन्होंने उनके समर्थन में कई युद्ध किए थे। मेघनाद को वारुण देवता ने अजेयता दी थी और उन्हें अपराजित बना दिया था। रावण के इस पुत्र की सहायता से रावण ने बहुत सारे युद्ध जीते और ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी पराजित किया।

रावण को विशेष रूप से उनके तेज, यश और धन के कारण यहां तक कि सूर्य, चंद्रमा और अग्नि भी उनके समर्थन में रहते थे। उन्हें दया, करुणा और धर्म की अच्छी जानकारी थी, लेकिन उनका गर्व और अहंकार उन्हें अन्यायपूर्ण और अत्याचारी बना दिया।

रावण एक विशालकाय राक्षस राजा थे, जो सुंदर और प्रभावशाली राजमहल में बसते थे। उनकी ताकत, साहस और समर्पण उन्हें वीरता के प्रतीक बनाते थे। रावण का रंग काला था और उनके नेत्र लाल थे। उनके मुख पर विशेष तरीके से राजसी और आदर्शवादी मुद्रा थी।

रावण के चरित्र में विभिन्न रंग हैं। उन्हें अपराधी, अहंकारी, अत्याचारी और अधर्मी के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, उनका प्रेम पत्नी मंदोदरी के प्रति गहरा और सच्चा था। वे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय व्यक्ति भी थे, जो विश्वास को महत्व देते थे।

रावण के चरित्र का अध्ययन एक गहरा और महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि उनकी कथा और उनके विभिन्न पहलुओं में संघर्ष और पराजय की कथा है। वे एक उदाहरण हैं जो अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की नष्टि को देखते हैं। उनकी गरिमा और पात्रता के साथ उनके पापों की सीमाओं का अनुभव करने वाले लोग भी थे।

रावण एक रोचक पात्र है जिसके चरित्र में समय के साथ विकास हुआ है। वे सत्ता, शक्ति और दम्भ के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी अहंकारी और न्यायवादी स्वभाव ने उन्हें अवरोधित कर दिया। रावण का चरित्र अध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है, जो हमें दिखा सकता है कि अधर्म के मार्ग पर चलने के परिणामस्वरूप न्याय और सत्य की पराजय कैसे होती है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.