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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : कबन्ध उद्धार। शबरी के बेर। सुग्रीव का पता मिलना।

रामायण : Episode 34

कबन्ध उद्धार। शबरी के बेर। सुग्रीव का पता मिलना।

सीता की खोज में राम और लक्ष्मण को एक स्थान पर सीता द्वारा फेंके गये आभूषण मिलते हैं। इससे उन्हें ज्ञात होता है कि वे सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। तभी वन में उनका सामना कबन्ध राक्षस से होता है। कबन्ध एक विशालकाय डरावना राक्षस है जिसकी एक आँख है, गर्दन नहीं है। उसका शरीर मोटे मास के पिण्ड जैसा है। वह अपनी एक योजन लम्बी भुजाएं बढ़ाकर राम लक्ष्मण को घेर लेता है। लक्ष्मण तलवार से दोनों भुजाएं काट देते हैं। कबन्ध राम और लक्ष्मण को अपना वास्तविक परिचय देकर बताता है कि ऋषि स्थूलशिरा के श्राप के कारण वह गन्धर्व से राक्षस बन गया है। कबन्ध को ब्रह्मा का वरदान है कि उसे किसी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। इसलिये कबन्ध राम लक्ष्मण से कहता है कि वे उसके शरीर को गड्ढे में डालकर जला दें, इससे वह शापमुक्त हो जायेगा और गन्धर्व रूप में वापस आकर सीता का पता बताने में उनकी मदद करेगा। राम कबन्ध की चिता जलाते हैं। शापमुक्त गन्धर्व दनु प्रकट होता है और राम को रावण के कुल के बारे में बताता है और परामर्श देता है कि दक्षिण की ओर जाने पर उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर वानरराज सुग्रीव मिलेंगे। उनसे मित्रता करके वे सीता की खोज कर सकेंगे और अन्त में रावण पर विजय पायेंगे। गन्धर्व यह भी कहता है कि सुग्रीव तक जाने का सम्पूर्ण मार्ग उन्हें भीलनी शबरी दिखायेगी जो मतंग ऋषि की शिष्या है और वो वर्षों से प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा कर रही है। शबरी हर रोज वन से पुष्प चुनकर अपनी कुटिया के मार्ग पर बिछाती है। उसे विश्वास है कि एक न एक दिन उसके प्रभु राम के चरण उसकी कुटिया में पड़ेंगे। आखिरकार वो घड़ी आती है। राम लक्ष्मण शबरी की कुटिया में प्रवेश करते हैं। शबरी उन्हें खाने के लिये बेर देती है। हर बेर मीठा हो, यह सुनिश्चित करने के लिये शबरी ने उन्हें चखा हुआ है। राम उसकी भक्ति पर अभिभूत हैं। वे चाव से बेर खाते हैं। लक्ष्मण राम को शबरी के जूठे बेर खाता देकर मुँह बनाते हैं लेकिन बड़े भाई की आज्ञा पर उन्हें भी शबरी के जूठे बेर खाने पड़ते हैं। शबरी उन्हें बताती है कि उनके गुरु के तपोबल के कारण मतंग वन के हिंसक पशु भी हिंसा छोड़ चुके हैं। वनस्पति सदैव हरी भरी रहती है। शबरी यह भी कहती है कि ऋषि मतंग उसे सीता की खोज में निकले राम को सुग्रीव का पता बताने की आज्ञा देकर परलोक सिधार गये थे। शबरी बताती है कि यहाँ से आगे जाने पर उन्हें पम्पापुर सरोवर मिलेगा। उसके निकट दो पर्वत श्रेणियों पर उन्हें सुग्रीव और हनुमान मिलेंगे। इसके बाद राम शबरी के साथ ऋषि मतंग के दिव्य साधना स्थल के दर्शन करने जाते हैं। राम शबरी की प्रार्थना पर उसे भक्ति ज्ञान देते हैं। शबरी राम की आज्ञा लेकर यहाँ से परम धाम की ओर प्रस्थान करती है। इस प्रसंग के साथ रामायण के अरण्य काण्ड का समापन होता है। अन्त में रामानन्द सागर शबरी प्रसंग का उल्लेख करते हुए सीख देते हैं कि यदि यह देश रामायण को मानता है तो यहाँ ऊँच नीच और जात पात की बात नहीं की जानी चाहिये।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vasishta - मुनि वसिष्ठ

मुनि वसिष्ठ रामायण महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वह एक प्रमुख ऋषि हैं और वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के कथानक में महाराज दशरथ के परिवार के गुरु बने हुए हैं। मुनि वसिष्ठ एक पूर्वज ब्रह्मा जी के मनस्पुत्र और सृष्टि के पिता हैं। वे ब्रह्मा जी के आदेश पर आकाशगंगा से उत्पन्न हुए थे।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत ज्ञानी और साधु ऋषि हैं। उन्होंने अनेकों शिष्यों को ज्ञान और आध्यात्मिकता की शिक्षा दी है। वे शान्तिपूर्ण, धर्मात्मा, और न्यायप्रिय हैं। मुनि वसिष्ठ का आदर्श जीवन और आचरण उन्हें एक प्रमुख आचार्य बनाता है। उन्होंने सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

मुनि वसिष्ठ का शरीर और मन शुद्ध और पवित्र है। वे संतानों के सच्चे पिता के रूप में माने जाते हैं। उनकी महानता और तपस्या ने उन्हें देवर्षि के रूप में प्रस्तुत किया है। मुनि वसिष्ठ को दिव्य दृष्टि है और वे भूत, भविष्य और वर्तमान की ज्ञानी हैं।

मुनि वसिष्ठ ने महाराज दशरथ को धर्म का अच्छा पालन करने की सलाह दी और उन्हें वेदों का ज्ञान दिया। वे राजा के मन्त्री हैं और राजनीतिक मामलों में महाराज की सलाह देते हैं। उनके अद्वितीय बुद्धि और न्यायप्रिय मतों के कारण उन्हें राजा और प्रजा का आदर्श आचार्य माना जाता है।

मुनि वसिष्ठ के आध्यात्मिक शिष्यों में से एक थे राजा हरिष्चंद्र और उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया। मुनि वसिष्ठ का ज्ञान और अनुभव उन्हें आध्यात्मिक और लोकाचार सम्प्रदाय का समझदार और अच्छा नेतृत्व करने में मदद करता है।

मुनि वसिष्ठ एक परम ऋषि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ गुरु भी हैं। उनके पास अद्वितीय ज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति और तत्त्वज्ञान की अमूल्य धारा है। मुनि वसिष्ठ ने श्री राम को शास्त्रों का ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। उनकी आध्यात्मिक शिक्षा ने श्री राम को धार्मिक और मानवीय मूल्यों का समझने में मदद की।

मुनि वसिष्ठ ने अपने जीवन में अनेक यज्ञ और तप किए हैं। उन्होंने देवताओं के लिए हवन और पूजा की विधि का ज्ञान प्राप्त किया है। वे तपस्या और आध्यात्मिक साधना में प्रवीण थे और इसलिए देवर्षि के रूप में अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त करते हैं।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत गर्वित और विनम्र व्यक्ति हैं। उनके प्रति लोगों का सम्मान और आदर्शन अपार है। उनका विचारधारा और उपदेश लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उनका प्रतिष्ठान पूरे ऋषि समुदाय में उच्च है और उन्हें आदर्श ऋषि का दर्जा प्राप्त है।

यथार्थ में, मुनि वसिष्ठ एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनकी सच्ची भक्ति, न्यायप्रिय मतभेद और आध्यात्मिक शक्ति उन्हें अद्वितीय बनाती हैं। उनका चरित्र और आचरण लोगों के मन, विचार और जीवन को प्रभावित करता है।

यहां तक कि आज भी, मुनि वसिष्ठ का चरित्र और जीवन लोगों के द्वारा मान्यता प्राप्त करते हैं और उन्हें एक महान आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्मरण किया जाता है। उनका योगदान रामायण की कथा में महत्वपूर्ण है और उन्होंने श्री राम को आध्यात्मिक और धार्मिक राजनीति का ज्ञान दिया है।

समर्पित ऋषि और आचार्य के रूप में, मुनि वसिष्ठ ने लोगों को धार्मिकता, सत्य, न्याय और आध्यात्मिकता के मार्ग पर प्रेरित किया है। उनकी गहन ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान मिला है। वे एक महान व्यक्ति हैं जिनका योगदान रामायण के कथानक को आध्यात्मिक और धार्मिक रूप में संपूर्ण करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.