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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राजा जनक का न्याय। भरत का राम की चरण पादुकाओं के साथ अयोध्या लौटना।

रामायण : Episode 25

राजा जनक का न्याय। भरत का राम की चरण पादुकाओं के साथ अयोध्या लौटना।

भरत के बाद राजा जनक भी राम से मिलने चित्रकूट पहुँच जाते हैं। सभी में आशा जागती है कि राजा जनक अपने वचनों से राम को अयोध्या वापस जाने के लिये राजी कर लेंगे। सीता अपने माता पिता से मिलती हैं। बेटी को तपस्विनी वेश में देखकर पिता भावुक होते हैं लेकिन अपनी बेटी के संस्कारों को देखकर उन्हें गर्व की अनुभूति भी होती है। रानी सुनयना राजा जनक को सभी की इच्छा से अवगत कराती हैं कि वे राम को अयोध्या लौटने के लिये प्रेरित करें। भरत भी माता कौशल्या को राजी करने का प्रयास करते हैं कि वे माता के विशेषाधिकार का प्रयोग कर राम को अयोध्या लौटने का आदेश दें। उधर कैकेयी राम के पास जाती हैं और कहती हैं कि यदि वो उसे अपनी माँ मानता है तो उसकी आज्ञा मानकर अयोध्या चले। राम फिर तर्कों का सहारा लेते हैं और कहते हैं कि यदि वो उन्हें एक तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर करना चाहती हैं तो वह अयोध्या वापस चलने को तैयार हैं। कैकेयी को निरुपाय होना पड़ता है। अगले दिन सभा की अध्यक्षता राजा जनक को सौंपी जाती है। राम जनक की आज्ञा का वचन देते हैं। भरत भी उनसे निष्पक्ष न्याय की गुहार लगाते हैं और राम के वहीं वन में राज्याभिषेक की माँग करते हैं। भगवान शंकर का स्मरण कर राजा जनक न्याय करने बैठते हैं। पहले वे कहते हैं कि भगवान भी भक्त के निश्चल प्रेम के आगे विवश होते हैं। यहाँ भरत का अपने भाई के प्रति भक्ति और प्रेम अथाह है इसलिये उनका पलड़ा भारी है। राजा जनक के ये वचन सुन भरत समेत सभी के चेहरे खिल उठते हैं। लेकिन अगले ही पल जनक प्रेम का दूसरा पक्ष भी रखते हैं और कहते हैं कि प्रेम निस्वार्थ होना चाहिये। प्रेम कुछ माँग नहीं सकता बल्कि अपने प्रेमी को कुछ देता है, उसके सुख के लिये सब कुछ लुटा देता है। जनक भरत से कहते हैं कि वे राम से उनकी प्रसन्नता पूछें और उसे पूजा समझ कर पूरा करें। भरत राम के चरणों में बैठकर उनकी इच्छा पूछते हैं। राम भी भरत के प्रेम के आगे हारकर अयोध्या का राज्य स्वीकार करते हैं किन्तु पिता का वचन पूरा करने के लिये वनवास की चौदह साल की अवधि पूरी होने तक भरत को राज्य की देखभाल का दायित्व सौंपते हैं। भरत राम को उनके वचन से बाँधने के लिये घोषणा करते हैं कि यदि उन्होंने चौदह साल से एक दिन भी देरी लगाई तो वे अग्निप्रवेश कर लेगें। भरत राम से उनकी चरण पादुकाएं लेते हैं ताकि उन्हें राज सिंहासन पर रखकर वे राम के प्रतिनिधि के रूप में राजकाज सम्भालें। भरत बड़े भाई की चरण पादुकाएं शीश पर रखकर लौटते हैं। विदाई के इस भावुक पल में सभी की आँखों से अश्रुधारा बहती है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sugriva - सुग्रीव

सुग्रीव, एक प्रमुख पाताल देश का राजा था, जिसे "किष्किंधा" के नाम से भी जाना जाता है। रामायण में सुग्रीव को वानरराजा के रूप में जाना जाता है और वह एक महान सामरिक कौशल से युक्त था। सुग्रीव के बाल उत्तेजनाएँ और उसके शक्तिशाली देह से प्रकट होने वाला उसका रंग, सभी वानरों को उनके युद्ध क्षेत्र में अद्वितीय बनाता था। उसके मुख पर आकर्षक ब्राह्मणी मुद्रा थी, जो उसकी प्रभावशाली प्रतिष्ठा को और बढ़ाती थी।

सुग्रीव के बारे में कहानी बताती है कि उसका भाई वाली ने उसे वन में अनुचित तरीके से उठा लिया था और उसे उसकी राजसत्ता से वंचित कर दिया था। सुग्रीव की प्रतिष्ठा और वानरों की सेना उसे वानरराजा के रूप में मान्यता देती थी, लेकिन उसके अधिकार को छिन लेने के लिए उसे किष्किंधा के अंदर जेल में बंद कर दिया गया था। सुग्रीव ने वानर वंश की उत्पत्ति के संबंध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब उसने पूरे वन के वानरों को उनके मूल स्थान पर लौटाया और उन्हें वानर संस्कृति के गर्व से जोड़ा।

जब सुग्रीव वन में विचरण कर रहा था, तो उसे श्रीराम की प्रेमिका सीता द्वारा श्रीराम का चित्र प्राप्त हुआ। उसने देखा कि सीता श्रीराम के साथ अयोध्या को छोड़कर वन में आई थी और उसे रावण ने हरण कर लिया था। सुग्रीव ने श्रीराम का साथ देने का निश्चय किया और उसने अपने अद्वितीय सेना के साथ किष्किंधा के बाहरी क्षेत्र में श्रीराम की खोज शुरू की।

श्रीराम के साथ लंका यात्रा करते समय, सुग्रीव ने हनुमान को भेजकर सीता की खोज करने के लिए नेतृत्व करने का निर्णय लिया। हनुमान ने सीता को ढूंढ़ने के लिए लंका में गुप्त रूप से प्रवेश किया और उसे मिलकर सीता के संदेश और राम के पत्र ले आया। सुग्रीव ने अपनी सेना के साथ राम को सहायता प्रदान करने के लिए लंका के विलाप क्षेत्र में जुट गया।

सुग्रीव की एक महत्वपूर्ण विशेषता उसकी मित्रता और वचनवद्धता थी। उसने श्रीराम के साथ वचन बंध किया कि जब वह लंका में वापस लौटेंगे, तो सुग्रीव अपने राज्य को वापस प्राप्त करेगा। श्रीराम ने सुग्रीव की मित्रता को स्वीकार करते हुए अपना वायदा किया और उन्होंने युद्ध में सामरिक सहायता प्रदान की।

सुग्रीव की प्रमुखता और धैर्य के कारण, श्रीराम ने उसे लंका के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका दी और उसे रावण के पुत्र मेघनाद के साथ संघर्ष करने के लिए चुना। सुग्रीव ने मेघनाद के साथ युद्ध करते समय वीरता का परिचय दिया और उसे अंतिम रूप से जीत दिया। उसने रावण के निधन के बाद लंका में श्रीराम को विजय प्राप्त कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सुग्रीव के बारे में कही गई एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे श्रीराम के साथ अपने प्रेमिका तारा की साझा भाग्यविधान मिली। सुग्रीव ने तारा को अपनी धर्मपत्नी के रूप में स्वीकार किया और उससे उत्तम संबंध बनाए रखा। यह उनकी प्रेम और साहचर्य की अद्वितीय उदाहरण थी, जो सुग्रीव को श्रीराम की विशेष प्रीति का प्रमाण दिखाती थी।

सुग्रीव का चरित्र रामायण में महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह एक विश्वासपात्र, धैर्यशाली और सामरिक दक्षता का प्रतीक है। उसकी मित्रता, वचनवद्धता और सेवाभाव ने उसे एक महान वानरराजा बना दिया है, जिसने श्रीराम को उसकी यात्रा में साथ दिया और उसकी सहायता की। उसकी प्रेमिका तारा के साथ उसका धार्मिक और नैतिक संबंध भी उसके चरित्र की महिमा को बढ़ाते हैं। सुग्रीव रामायण में एक प्रमुख चरित्र है, जिसका योगदान पूरी कथा को मजबूती और महिमा प्रदान करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.