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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : भरत का वन प्रस्थान। लक्ष्मण का क्रोध। राम भरत मिलाप।

रामायण : Episode 23

भरत का वन प्रस्थान। लक्ष्मण का क्रोध। राम भरत मिलाप।

पति वियोग में उदास उर्मिला को माण्डवी खुशी की समाचार देती है कि उसकी विरह की घड़ियाँ खत्म होने वाली है। आर्य भरत, राम लक्ष्मण और सीता को वापस लाने वन जा रहे हैं। अयोध्या की तमाम प्रजा भी उनके साथ जाती है। तीनों माताएं, गुरू वशिष्ठ मंत्रीगण और सेना साथ में है। मार्ग में श्रंगवेरपुर पड़ता है। यह राम के मित्र निषादराज गुह का राज्य है। एक प्रहरी निषादराज को सूचना देता है कि भरत सेना लेकर चित्रकूट जा रहे हैं। निषादराज को भ्रम होता है कि भरत राम को सदैव के लिये अपने रास्ते से हटाने के प्रयोजन से उनपर आक्रमण करने जा रहे हैं। वो युद्ध का नगाड़ा बजाकर भरत को गंगा किनारे ही घेर लेने का ऐलान कर देते हैं। तभी गाँव के पुरोहित निषादराज को भरत से मिलकर वास्तविकता जान लेने का परामर्श देते हैं। निषादराज अपनी सेना को झाड़ियों के पीछे सचेत कर भरत से मिलने जाते हैं। सुमन्त भरत को निषादराज और राम की मित्रता के बारे में बताते हैं। भरत से मिलकर निषादराज की आशंका गलत साबित होती है। वे भरत को बताते हैं कि राम और सीता घास के बिछौने पर सोये थे और नंगे पाँव चित्रकूट की तरफ गये हैं। दुखी होकर भरत खुद भी आगे की यात्रा नंगे पाँव पैदल करने का निर्णय लेते हैं। आगे बढ़ते हुए भरत भारद्वाज मुनि के आश्रम तक पहुँचते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। यात्रा जारी रखते हुए भरत सेना के साथ चित्रकूट की धरती पर पहुँचते हैं। कोल और भील लक्ष्मण को सूर्य पताकाओं को लेकर आगे बढ़ती सेना के बारे में सूचित करते हैं। लक्ष्मण वन में लकड़ियाँ काटना छोड़ वापस पर्णकुटी पहुँचते हैं और राम से कहते हैं कि भरत सेना लेकर उनपर आक्रमण करने आ रहा है। लक्ष्मण किसी सम्भावित आक्रमण का सामना करने के लिये धनुष बाण उठा लेते हैं और भरत का वध करने की घोषणा करते हैं। तभी बिजली कौंधने के साथ आकाशवाणी होती है कि लक्ष्मण को उचित अनुचित के बीच का अन्तर कर लेने के बाद ही कोई प्रण करना चाहिये। राम भी लक्ष्मण को अधीर होने से रोकते हैं। इस बीच भरत कुटिया में पहुँचते हैं और बड़े भाई राम के चरणों में गिर जाते हैं। राम उन्हें उठाकर हृदय से लगाते हैं। यह दृश्य देखकर लक्ष्मण आत्मग्लानि से भर उठते हैं और भरत के प्रति उठे अपने गलत विचारों के लिये उनसे क्षमा माँगते हैं। शत्रुघ्न भी वहाँ आ पहुँचते हैं। चारों भाईयों का आपस में मिलाप होता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Vali - वाली

वाली रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वह एक शक्तिशाली वानर राजा थे और किष्किंधा के राज्य का स्वामी थे। वाली का नाम उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के लिए प्रसिद्ध है। वाली का शरीर सुंदर और दिव्य था, और वह वानरों में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता था। उनकी पहचान गहरे सफेद रंग के बालों और बड़े-बड़े मुखरंद्र के साथ किया जाता था। वाली के बाल नाटकीय थे और उनकी चाल गर्व और दृढ़ता का प्रतीक थी।

वाली के पिता का नाम भाली था, जो एक पूर्ण भक्त हनुमान के रूप में भगवान शिव की कृपा पाने के बाद प्राप्त हुआ था। इसलिए, वाली को भी हनुमान के समान दिव्य गुण और शक्तियाँ मिली थीं। वाली बहुत ही धैर्यशील और विद्याशाली थे, और उन्होंने धरती के सभी विदेशों को यात्रा की थी और विभिन्न युद्ध कला और विज्ञान का अध्ययन किया था। उन्होंने एक विशाल सेना का निर्माण किया था और उनके साथ वानरों ने किष्किंधा को अपने विराट सेनापति का मुकाबला करने के लिए तैयार था।

वाली एक उत्कृष्ट योद्धा थे और उन्होंने कई युद्धों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता का वर्णन महाकाव्य रामायण में भी किया गया है। एक बार एक राक्षस नाम शुक को लड़ने के लिए उनके पास आया। वाली ने बड़े ही साहसपूर्वक और योग्यतापूर्वक उसे मार दिया। इसके बाद से उन्होंने शुक के द्वारा मारे जाने की गरिमा को प्राप्त कर ली और किष्किंधा का राजा बन गए। वाली की वीरता और पराक्रम सुनकर राक्षसों को भय और भ्रम के साथ भर देती थी।

वाली का मन्त्री और श्रद्धालु भक्त हनुमान भी थे, जो उन्हें अपने परिवार के साथ एकत्रित करने में सहायता करते थे। हनुमान वाली के सर्वोच्च मित्र थे और उनके बातचीत करने का अवसर बहुत ही कम होता था। हनुमान वाली की अनुकरणीयता और प्रेम को अच्छी तरह से समझते थे और वह उनके धर्म और कर्तव्यों का पालन करते थे।

वाली एक महान राजनेता भी थे और वह अपने प्रजा के प्रति समर्पित थे। उन्होंने किष्किंधा को विकासित किया था और उनके राज्य में सबका ख्याल रखने के लिए प्रयास किए थे। उन्होंने न्याय और धर्म का पालन किया और अपने प्रजा के साथ न्यायिक और सामरिक समस्याओं का समाधान किया। वाली का नामकरण किष्किंधा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है और उन्हें आदर्श शासक के रूप में याद किया जाता है।

वाली के बारे में रामायण में कई किस्से वर्णित हैं और उनके योगदान को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने राम के प्रणाम का स्वीकार किया था और उनके साथ रामायण युद्ध में उनकी सेना का सहयोग किया। वाली अपनी पराजय के बाद भी राम को आत्मसमर्पण करते हुए उन्हें अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था। वाली रामायण में एक अद्वितीय चरित्र हैं, जो अपनी वीरता, ज्ञान, धर्म, और सेवाभाव के लिए प्रसिद्ध हैं।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.