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जय श्री राम 🙏

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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राजा दशरथ की अन्त्येष्टि। भरत द्वारा राजसिंहासन को ठुकरना।

रामायण : Episode 22

राजा दशरथ की अन्त्येष्टि। भरत द्वारा राजसिंहासन को ठुकरना।

भरत माता कैकेयी पर क्रोधित हैं तो शत्रुघ्न मंथरा को पीटते हुए महल से निकाल रहे हैं। उन्हें पता चल जाता है कि इस षड्यन्त्र के पीछे मंथरा की ही कुटिल बुद्धि है। भरत शत्रुघ्न को भैया राम का वास्ता देकर हिंसा करने से रोकते हैं। भरत बड़ी माता कौशल्या से मिलने उनके कक्ष में जाते हैं। कौशल्या भरत से उन्हें राम के पास वन में भिजवाने को कहती हैं। भरत इससे दुःखी होते हैं। वे माता कौशल्या से कहते हैं कि वे उन्हें भैया राम के पास वन नहीं भेजेंगे बल्कि राम को वन से वापस लायेंगे। भरत के मन में ग्लानि से है कि पापकर्म उसकी माता ने किया है किन्तु सम्पूर्ण विश्व उसे भ्रातद्रोही कहेगा। महर्षि वशिष्ठ भरत को शोक त्याग कर पिता दशरथ के पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार करने का परामर्श देते हैं। पूरी अयोध्या नगरी अपने महाराज की अन्तिम यात्रा में शामिल होती है। दशरथ के सत्कर्मों की यादकर प्रजा उनकी जय जयकार करती है। भरत पिता की चिता को अग्नि देते हैं। जब अस्थि कलश को सरयू नदी में प्रवाहित करने की बारी आती है तो भरत भाव विह्वल होते हैं और कलश नदी में प्रवाहित नहीं कर पाते। वशिष्ठ उन्हें मोह त्यागकर विधान पूरा करने का उपदेश देते हैं। अगले दिन राजसभा में महर्षि वशिष्ठ और मंत्री परिषद भरत से राजसिंहासन सम्भालने को कहती है। सुमन्त कहते हैं कि राजा के बिना राज्य असुरक्षित रहता है। शत्रु हमला कर सकते हैं। तब भरत सवाल उठाते हैं कि जब यही सभा युवराज राम को राजा चुन चुकी थी और महाराज ने अपनी रानी के कहने पर युवराज को वन भेज दिया था तो किसी मंत्री ने इसके विरूद्ध आवाज क्यों नहीं उठायी। भरत कहते हैं कि ज्येष्ठ होने के कारण राम ही राजसिंहासन के अधिकारी हैं। भरत पूरी राजसभा को कहते हैं कि वो उन्हें राम को वन से वापस लाने में सहयोग करे। वशिष्ठ भरत की प्रशंसा करते हैं। भरत माता कौशल्या को भी साथ चलने के लिये राजी कर लेते हैं और कहते हैं कि वे वन में ही भैया राम का राज्याभिषेक करेंगे। रानी कैकेयी को भी अब अपनी गलती का अहसास है। वो भी पश्चाताप करने भरत के साथ वन जाने का अनुरोध करती है। कौशल्या के कहने पर भरत इस पर सहमत होते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vishwamitra - मुनि विश्वामित्र

मुनि विश्वामित्र रामायण में एक महत्वपूर्ण चरित्र हैं। वह एक प्राचीन ऋषि थे और महाराज जनक के दरबार में राजगुरु के रूप में सेवा करते थे। विश्वामित्र ऋषि की खासता थी, वे बहुत ही तेजस्वी थे और शक्तिशाली तपस्वी ऋषि माने जाते थे। उन्होंने अपने तपस्या के बाल परमेश्वर से इतना वरदान प्राप्त किया था कि वे दैत्यों और राक्षसों को भी चुनौती दे सकते थे।

विश्वामित्र का जन्म एक राजपुरोहित के घर में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही ध्यान और तपस्या में रत थे। उनकी मां ने उन्हें धर्म, त्याग, और सत्य के महत्व के बारे में शिक्षा दी थी। विश्वामित्र ने अपनी मां की शिक्षा का पालन किया और उन्होंने ऋषि बनने का संकल्प बना लिया।

विश्वामित्र की शक्तियों और तपस्या के बारे में सबको ज्ञान हो गया था। एक बार वे राजा जनक के यज्ञ को नष्ट करने वाले राक्षस तड़का के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए देखे गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया और तड़का को पराजित कर दिया। इसके बाद से विश्वामित्र की मान्यता और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

विश्वामित्र को एक और महत्वपूर्ण कार्य देने के लिए राजा जनक ने उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया। वह कार्य था स्वयंवर में धनुष तोड़ने का। स्वयंवर में शानदा नामक देवी धनुष उठाने वाले वीर श्रीराम को अपनी पत्नी बनाने का प्रतिश्रवण किया गया था। विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ स्वयंवर में गए और वहां उन्होंने राम को धनुष तोड़ने के लिए प्रेरित किया। राम ने धनुष तोड़ दिया और शानदा को जीता लिया। यह घटना विश्वामित्र के लिए बहुत गर्व की बात थी।

विश्वामित्र के पश्चात् राम को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने का निमंत्रण मिला। राम और लक्ष्मण ने उसे स्वीकार कर लिया और वे विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में गए। आश्रम में विश्वामित्र ने राम को वेद, धर्म, युद्ध, और अन्य ज्ञान की शिक्षा दी। राम ने उनकी शिक्षा को गहराई से समझा और उनके मार्गदर्शन में उनका आदर्श बनाया।

विश्वामित्र के साथ बिताए दिन राम और लक्ष्मण के लिए अनुभवमय और सीखदायक रहे। विश्वामित्र ने उन्हें विभिन्न राक्षसों और दुष्ट शक्तियों से लड़ने की कला सिखाई और उन्हें योग्यता और धैर्य के साथ लड़ाई लड़ने का अभ्यास कराया। विश्वामित्र की मार्गदर्शन में राम ने अनेक दुष्ट राक्षसों को विजयी किया और उनकी शक्तियों को नष्ट किया।

विश्वामित्र राम को न शिर्षासन की कला, न सचेतता, और नींद के समय कौन से आश्रय स्थल में सोना चाहिए, जैसे की तपस्या के दौरान आपको ध्यान और सचेत रहना चाहिए। विश्वामित्र ने राम को अनेक उपयोगी वरदान दिए जैसे की ब्रह्मास्त्र और शक्ति अस्त्र।

मुनि विश्वामित्र रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं और उनका चरित्र विशेष रूप से उनकी शक्तियों, तपस्या और गुरुत्व के कारण प्रमुख बन गया है। उनकी सीख और मार्गदर्शन से राम ने अनेक संघर्षों का सामना किया और अद्वितीय वीरता प्रदर्शित की। विश्वामित्र का परिचय महारामायण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उनका चरित्र धर्म, त्याग, और सत्य के मार्ग का प्रतिष्ठान करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.