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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : भरत-शत्रुघ्न ननिहाल जाते हैं । दशरथ राम के राज्याभिषेक का निर्णय लेते हैं।

रामायण : Episode 12

भरत-शत्रुघ्न ननिहाल जाते हैं । दशरथ राम के राज्याभिषेक का निर्णय लेते हैं।

भरत के विवाहोत्सव में शामिल होने के लिये उनके मामा युधाजित अयोध्या में हैं। कुछ दिन बाद रानी कैकेयी के पिता राजा अश्वपति का स्वास्थ्य खराब होने की सूचना आती है इसलिए कैकेयी भरत-शत्रुघ्न को अपने मामा के साथ कैकेय प्रदेश जाने के लिये कहती हैं। भरत शत्रुघ्न पितातुल्य अग्रज राम और भाभी सीता का आशीर्वाद लेते हैं। राम अपने भाई से दूर नहीं रहना चाहते इसलिये उनका मन भरत संग जाने का है लेकिन वे माता पिता की सेवा के लिये अयोध्या में ही रूकते हैं। ऋषि विश्वामित्र भी अब अयोध्या से विदा लेना चाहते हैं। राजा दशरथ उनसे रूकने का आग्रह करते हैं किन्तु विश्वामित्र जानते हैं कि यदि वे राजमहल की मोहमाया में फँसते हैं तो वे पुनः अपने कर्तव्य पथ से विमुख हो जायेंगे। ऋषि विश्वामित्र उन्हें अपनी कथा सुनाते हैं कि किस प्रकार इन्द्र ने मेनका को उनकी तपस्या भंग करने के लिये भेजा था। मेनका ने अपनी अदाओं से उनको मोहित किया था और उनकी तपस्या भंग कर दी थी। महर्षि वशिष्ठ भी दशरथ को समझाते हैं कि नदी और साधु का एक स्थान पर रूकना ठीक नहीं होता। विश्वामित्र जी के जाने के बाद भी उनके ये वचन राजा दशरथ के कानों में गूँजते रहते हैं कि सांसारिक कर्तव्य पूरे करने के बाद मनुष्य को अपने पारिवारिक बन्धन तोड़कर अध्यात्म की तरफ मुड़ जाना चाहिये। दशरथ महर्षि वशिष्ठ के आश्रम जाकर उनसे एकान्त में अपनी मन की बात कहते हैं कि वे राम को राजपाट सौंपना चाहते हैं। वशिष्ठ उनसे इसके लिये वंश परम्परानुसार राजसभा बुलाने का परामर्श देते हैं। राजसभा में सर्वसम्मति से राम के राज्याभिषेक का अनुमोदन होता है। राम को राजसभा में बुलाया जाता है। सभा में वशिष्ठ राम से राज्यभार सम्भालने को कहते हैं। राम अपने पिता का राज सिंहासन ग्रहण करने को अनुचित बताकर इस निर्णय को अस्वीकार कर देते हैं। दशरथ राम को पुत्र-धर्म का भान कराते हैं। वशिष्ठ भी राम को बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिये दशरथ का वानप्रस्थ आवश्यक है। अन्ततः राम भारी मन से इस निर्णय को राजाज्ञा मानकर स्वीकार करते हैं। पूरे सभागृह में राजा रामचन्द्र की जय जयकार होती है। राम के राज्याभिषेक का समाचार राजमहल पहुँचता है। माता कौशल्या की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं है। छोटी रानी सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मण को राजा राम के आधीन करती हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sumitra - सुमित्रा

सुमित्रा, भगवान राम के पिता राजा दशरथ की तीसरी पत्नी और भरत की मां थीं। वह एक समझदार, सुंदर और धैर्यशाली महिला थीं जिन्हें उनकी पति और परिवार द्वारा गहरी सम्मान प्राप्त थी। सुमित्रा के द्वारा भी कई महत्वपूर्ण कार्यों को संपादित किया गया था। वह राजमहल में उच्च स्थान पर होती थीं और रानी के रूप में अपने दायित्वों को सम्भालती थीं।

सुमित्रा को सभी लोग एक सज्जन, नेतृत्व कुशल और संतानों के प्रति विशेष स्नेह रखने वाली महिला के रूप में जानते थे। वह अपनी महान पतिव्रता और उदारता के लिए प्रसिद्ध थीं। सुमित्रा ने दशरथ राजा के प्रेम को पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ स्वीकार किया और राजमहल में एक मान्य और सम्मानित स्थान प्राप्त किया। वह राजमहल की सभी महिलाओं के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक थीं।

सुमित्रा की पत्नी और माता के रूप में वह अपनी संतानों को नहीं सिखाती थीं, बल्कि उनके बारे में अपनी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संचालन करती थीं। वह अपने पति के और बाकी सभी परिवार सदस्यों के साथ मिलकर मित्रता और समझौते की भावना को बढ़ावा देती थीं। सुमित्रा ने सुंदरकांड में अपने त्याग और निर्भयता के लिए प्रसिद्ध हुईं।

सुमित्रा ने अपनी संतानों के उच्चतम मूल्यों के प्रति आदर्शवादी भावना को बढ़ावा दिया। वह अपने पुत्र भरत के साथ विचार-विमर्श करती थीं और उन्हें सही मार्गदर्शन देने का प्रयास करती थीं। उन्होंने भरत के धर्म, नैतिकता और न्याय के प्रति अपार सम्मान रखा था। उन्होंने भरत के साथ भाई-भाई के नाते की उच्चता और मान्यता को सदैव बनाए रखा।

सुमित्रा ने सीता की पत्नी और रामचंद्र जी की सहधर्मीन के रूप में भी अपने पात्र को सच्ची भावना के साथ निभाया। वह सीता के प्रति आदर्श दौलती थीं और अपने पुत्र लक्ष्मण के साथ उनकी सेवा में सहायता करती थीं। सुमित्रा के माध्यम से आदर्श प्रेम, सदभाव, एकता और परिवार के महत्व की महानता का संदेश सभी लोगों तक पहुंचा।

सुमित्रा राजा दशरथ की प्रिय पत्नी थीं, जो उन्हें धार्मिक और सामरिक विचारों में समर्थन देती थीं। उन्होंने अपने पति के और अन्य परिवार सदस्यों के साथ सामंजस्य और एकता को स्थापित किया। सुमित्रा राजमहल में विभिन्न कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ परिवारिक और सामाजिक जीवन का संचालन करती थीं।

सुमित्रा की मूल्यवान गुणों की सूची में सहानुभूति, संयम, समर्पण, त्याग, धैर्य, उदारता और संवेदनशीलता शामिल थी। उन्होंने अपने पुत्रों को समय और प्रेम के साथ पाला, जो उन्हें सभी लोगों की नजरों में प्रशंसा के योग्य बनाता था। सुमित्रा रामायण में एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी नेतृत्व कौशल के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.