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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राम बारात की विदाई। अयोध्या में सीता का स्वागत और राम का एक पत्नीव्रत

रामायण : Episode 11

राम बारात की विदाई। अयोध्या में सीता का स्वागत और राम का एक पत्नीव्रत

अयोध्या में तीनों रानियाँ बारात वापसी की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही हैं। किन्तु राजा जनक व पूरी बारात लम्बी अवधि से मिथिला में अतिथि बनकर रूकी हुई है। मंझली रानी कैकेयी का मत है कि महाराज दशरथ वरपक्ष वाले हैं, वे अधिकारपूर्वक बारात विदा करने की बात राजा जनक से कह सकते हैं। उधर मिथिला में मंत्री सुमन्त का भी यही भाव है किन्तु दशरथ राजा जनक के इस दर्द को समझते हैं कि एक पिता के लिये अपनी बेटी को विदा करना कितना कठिन होता है। तब सुमन्त उन्हें राजधर्म का स्मरण कराते हैं। आखिरकार ऋषि विश्वामित्र और ऋषि शतानन्द द्वारा सांसारिक नियम समझाने पर राजा जनक चारों पुत्रियों को विदा करने पर सहमत होते हैं। रनिवास में रानी सुनयना चारों पुत्रियों को नारी धर्म की शिक्षा देती हैं। पति, सास और ससुर की सेवा करने और ससुराल का मान रखने की सीख भी देती हैं। राम अपने तीनों भाईयों के साथ विदाई कराने रनिवास पहुँचते हैं। राजा जनक भाव विहवल ढंग से अपनी बेटियाँ राजा दशरथ को सौंपते हुए उनकी किसी भी गलती पर क्षमा करने की गुहार करते हैं। राजा दशरथ विनय भाव से घोषणा करते हैं कि सीता आने वाले समय में अयोध्या की महारानी बनेंगी इसलिये उसका आदर सत्कार किसी रानी की भाँति होगा। अपनी दुलारी सीता को डोली में बैठाते समय जनक उसे ससुराल में मायके की कीर्ति को नष्ट न होने देने की सीख देते हैं। बारात वापसी का अयोध्या में भव्य स्वागत होता है। अयोध्या स्वयं को धन्य महसूस करती है। द्वारचार पश्चात गुरू वशिष्ठ कुल देवता सूर्य का पूजन सम्पन्न कराते हैं। रानियाँ अपने चारों पुत्रों व पुत्रवधुओं के बीच दूध भात खिलाने की रस्म अदा कराती हैं। राम दूध भरे पात्र से कंगन ढूँढने की रस्म में सीता को जीतने देते हैं। भाईयों के बीच खूब चुहल होती है। प्रथम मिलन की रात्रि राम सीता को एक अनूठा उपहार देते हैं। वे कहते हैं कि राजकुलों में बहुविवाह की परम्परा है किन्तु उन्होंने सीता को अर्धांगिनी बनाना स्वीकार कर एक पत्नीव्रत की प्रतिज्ञा की है। अन्त में रामानन्द सागर अपनी मीमांसा में बताते हैं कि रामायण में इस प्रसंग के साथ बालकाण्ड का समापन होता है।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sumitra - सुमित्रा

सुमित्रा, भगवान राम के पिता राजा दशरथ की तीसरी पत्नी और भरत की मां थीं। वह एक समझदार, सुंदर और धैर्यशाली महिला थीं जिन्हें उनकी पति और परिवार द्वारा गहरी सम्मान प्राप्त थी। सुमित्रा के द्वारा भी कई महत्वपूर्ण कार्यों को संपादित किया गया था। वह राजमहल में उच्च स्थान पर होती थीं और रानी के रूप में अपने दायित्वों को सम्भालती थीं।

सुमित्रा को सभी लोग एक सज्जन, नेतृत्व कुशल और संतानों के प्रति विशेष स्नेह रखने वाली महिला के रूप में जानते थे। वह अपनी महान पतिव्रता और उदारता के लिए प्रसिद्ध थीं। सुमित्रा ने दशरथ राजा के प्रेम को पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ स्वीकार किया और राजमहल में एक मान्य और सम्मानित स्थान प्राप्त किया। वह राजमहल की सभी महिलाओं के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक थीं।

सुमित्रा की पत्नी और माता के रूप में वह अपनी संतानों को नहीं सिखाती थीं, बल्कि उनके बारे में अपनी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संचालन करती थीं। वह अपने पति के और बाकी सभी परिवार सदस्यों के साथ मिलकर मित्रता और समझौते की भावना को बढ़ावा देती थीं। सुमित्रा ने सुंदरकांड में अपने त्याग और निर्भयता के लिए प्रसिद्ध हुईं।

सुमित्रा ने अपनी संतानों के उच्चतम मूल्यों के प्रति आदर्शवादी भावना को बढ़ावा दिया। वह अपने पुत्र भरत के साथ विचार-विमर्श करती थीं और उन्हें सही मार्गदर्शन देने का प्रयास करती थीं। उन्होंने भरत के धर्म, नैतिकता और न्याय के प्रति अपार सम्मान रखा था। उन्होंने भरत के साथ भाई-भाई के नाते की उच्चता और मान्यता को सदैव बनाए रखा।

सुमित्रा ने सीता की पत्नी और रामचंद्र जी की सहधर्मीन के रूप में भी अपने पात्र को सच्ची भावना के साथ निभाया। वह सीता के प्रति आदर्श दौलती थीं और अपने पुत्र लक्ष्मण के साथ उनकी सेवा में सहायता करती थीं। सुमित्रा के माध्यम से आदर्श प्रेम, सदभाव, एकता और परिवार के महत्व की महानता का संदेश सभी लोगों तक पहुंचा।

सुमित्रा राजा दशरथ की प्रिय पत्नी थीं, जो उन्हें धार्मिक और सामरिक विचारों में समर्थन देती थीं। उन्होंने अपने पति के और अन्य परिवार सदस्यों के साथ सामंजस्य और एकता को स्थापित किया। सुमित्रा राजमहल में विभिन्न कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ परिवारिक और सामाजिक जीवन का संचालन करती थीं।

सुमित्रा की मूल्यवान गुणों की सूची में सहानुभूति, संयम, समर्पण, त्याग, धैर्य, उदारता और संवेदनशीलता शामिल थी। उन्होंने अपने पुत्रों को समय और प्रेम के साथ पाला, जो उन्हें सभी लोगों की नजरों में प्रशंसा के योग्य बनाता था। सुमित्रा रामायण में एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी नेतृत्व कौशल के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.