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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ व श्री राम का जन्म

रामायण : Episode 1

राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ व श्री राम का जन्म

ब्रह्मा और महादेव के वरदान से राक्षसराज रावण को असीम शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। रावण इन शक्तियों का उपयोग पृथ्वी और देव लोक के विनाश के लिये करने लगता है। उसके पापकर्मो से पृथ्वी पर धर्म और सत्य की हानि होने लगती है। पृथ्वी पर असुरों की शक्तियाँ बढ़ने लगती हैं और साधु-सन्तों की शक्तियाँ उनका प्रतिकार नहीं कर पाती है। रावण से भयभीत सभी देवी देवता जानते हैं कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ने लगता है तो धर्म की पुनर्स्थापना के लिये भगवान को मानव रूप में अवतार लेना होता है। इसी आशा के साथ वे सभी भगवान विष्णु के पास गुहार लगाने जाते हैं। उधर पृथ्वी पर अयोध्या के राजा दशरथ अपनी कोई सन्तान न होने के कारण चिन्तित हैं। उन्हें अपने राज्य के लिए उत्तराधिकारी चाहिये। समस्या निवारण के लिये राजा अपनी रानियों के साथ महर्षि वशिष्ठ के पास जाते हैं। वशिष्ठ उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्ठि यज्ञ का उपाय सुझाते हैं। रानी कौशल्या महर्षि वशिष्ठ से यज्ञ करने का निवेदन करती हैं किन्तु वशिष्ठ उन्हें बताते हैं कि इस यज्ञ को अथर्व वेद के ज्ञाता श्रृंग मुनि ही सम्पन्न करा सकते हैं। छोटी रानी कैकेयी श्रृंग मुनि को आमंत्रित करने की बात कहती हैं, किन्तु महर्षि वशिष्ठ उन्हें टोकते हैं कि दशरथ को राजा बनकर नहीं, एक याची के रूप में स्वयं उनके पास जाना होगा। राजा दशरथ नंगे पांव श्रृंग मुनि के आश्रम जाते हैं और अपने आँसुओं से उनकी चरण वन्दना करते हैं। श्रृंग मुनि अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और उनका मनोरथ पूर्ण करने के लिये यज्ञ करते हैं। यज्ञकुण्ड से अग्निदेव प्रकट होते हैं और राजा दशरथ को खीर के एक पात्र के साथ इच्छापूर्ति का वरदान देते हैं। दशरथ वह खीर कौशल्या व कैकेयी को खाने के लिये दे देते हैं। दोनो रानियां स्नेहवश अपनी खीर का आधा-आधा अंश छोटी रानी सुमित्रा को दे देती हैं। समय बीतने के साथ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में तीनों रानियों को पुत्र प्राप्ति होती है। बड़ी रानी कौशल्या और मंझली रानी कैकेयी को एक-एक पुत्र और खीर के दो अंश मिलने के कारण छोटी रानी सुमित्रा को जुड़वां पुत्र होते हैं। इसके साथ ही देवी-देवताओ और पृथ्वीवासियों की प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त होती है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा चारो बच्चों का नामकरण किया जाता है। वशिष्ठ कहते हैं कि धर्म और सत्य की रक्षा करने के लिए और अखिल विश्व को आनंद देने आये ज्येष्ठ पुत्र का दो अक्षर का नाम “राम“ होगा, रानी कैकेयी के पुत्र का नाम “भरत“ और रानी सुमित्रा के जुड़वाँ पुत्रों के नाम “लक्ष्मण और शत्रुघ्न“ होंगे। महर्षि वशिष्ठ चारों भ्राताओं में परस्पर अटूट प्रेम रहने की भविष्यवाणी भी करते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sugriva - सुग्रीव

सुग्रीव, एक प्रमुख पाताल देश का राजा था, जिसे "किष्किंधा" के नाम से भी जाना जाता है। रामायण में सुग्रीव को वानरराजा के रूप में जाना जाता है और वह एक महान सामरिक कौशल से युक्त था। सुग्रीव के बाल उत्तेजनाएँ और उसके शक्तिशाली देह से प्रकट होने वाला उसका रंग, सभी वानरों को उनके युद्ध क्षेत्र में अद्वितीय बनाता था। उसके मुख पर आकर्षक ब्राह्मणी मुद्रा थी, जो उसकी प्रभावशाली प्रतिष्ठा को और बढ़ाती थी।

सुग्रीव के बारे में कहानी बताती है कि उसका भाई वाली ने उसे वन में अनुचित तरीके से उठा लिया था और उसे उसकी राजसत्ता से वंचित कर दिया था। सुग्रीव की प्रतिष्ठा और वानरों की सेना उसे वानरराजा के रूप में मान्यता देती थी, लेकिन उसके अधिकार को छिन लेने के लिए उसे किष्किंधा के अंदर जेल में बंद कर दिया गया था। सुग्रीव ने वानर वंश की उत्पत्ति के संबंध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब उसने पूरे वन के वानरों को उनके मूल स्थान पर लौटाया और उन्हें वानर संस्कृति के गर्व से जोड़ा।

जब सुग्रीव वन में विचरण कर रहा था, तो उसे श्रीराम की प्रेमिका सीता द्वारा श्रीराम का चित्र प्राप्त हुआ। उसने देखा कि सीता श्रीराम के साथ अयोध्या को छोड़कर वन में आई थी और उसे रावण ने हरण कर लिया था। सुग्रीव ने श्रीराम का साथ देने का निश्चय किया और उसने अपने अद्वितीय सेना के साथ किष्किंधा के बाहरी क्षेत्र में श्रीराम की खोज शुरू की।

श्रीराम के साथ लंका यात्रा करते समय, सुग्रीव ने हनुमान को भेजकर सीता की खोज करने के लिए नेतृत्व करने का निर्णय लिया। हनुमान ने सीता को ढूंढ़ने के लिए लंका में गुप्त रूप से प्रवेश किया और उसे मिलकर सीता के संदेश और राम के पत्र ले आया। सुग्रीव ने अपनी सेना के साथ राम को सहायता प्रदान करने के लिए लंका के विलाप क्षेत्र में जुट गया।

सुग्रीव की एक महत्वपूर्ण विशेषता उसकी मित्रता और वचनवद्धता थी। उसने श्रीराम के साथ वचन बंध किया कि जब वह लंका में वापस लौटेंगे, तो सुग्रीव अपने राज्य को वापस प्राप्त करेगा। श्रीराम ने सुग्रीव की मित्रता को स्वीकार करते हुए अपना वायदा किया और उन्होंने युद्ध में सामरिक सहायता प्रदान की।

सुग्रीव की प्रमुखता और धैर्य के कारण, श्रीराम ने उसे लंका के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका दी और उसे रावण के पुत्र मेघनाद के साथ संघर्ष करने के लिए चुना। सुग्रीव ने मेघनाद के साथ युद्ध करते समय वीरता का परिचय दिया और उसे अंतिम रूप से जीत दिया। उसने रावण के निधन के बाद लंका में श्रीराम को विजय प्राप्त कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सुग्रीव के बारे में कही गई एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे श्रीराम के साथ अपने प्रेमिका तारा की साझा भाग्यविधान मिली। सुग्रीव ने तारा को अपनी धर्मपत्नी के रूप में स्वीकार किया और उससे उत्तम संबंध बनाए रखा। यह उनकी प्रेम और साहचर्य की अद्वितीय उदाहरण थी, जो सुग्रीव को श्रीराम की विशेष प्रीति का प्रमाण दिखाती थी।

सुग्रीव का चरित्र रामायण में महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह एक विश्वासपात्र, धैर्यशाली और सामरिक दक्षता का प्रतीक है। उसकी मित्रता, वचनवद्धता और सेवाभाव ने उसे एक महान वानरराजा बना दिया है, जिसने श्रीराम को उसकी यात्रा में साथ दिया और उसकी सहायता की। उसकी प्रेमिका तारा के साथ उसका धार्मिक और नैतिक संबंध भी उसके चरित्र की महिमा को बढ़ाते हैं। सुग्रीव रामायण में एक प्रमुख चरित्र है, जिसका योगदान पूरी कथा को मजबूती और महिमा प्रदान करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.